नव रूप प्रकृति में छायेगा, नव वर्ष स्वयं आ जायेगा (कविता)

नव रूप प्रकृति में छायेगा, नव वर्ष स्वयं आ जायेगा (कविता)

(13 अप्रैल – हिन्दू नव वर्ष)

डॉ. श्रीकांत भारती

नव रूप प्रकृति में छायेगा, नव वर्ष स्वयं आ जायेगा (कविता)

नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥

यह प्रथा नहीं बिल्कुल अच्छी,
यह मेल नहीं इतिहासों से।
यह कालचक्र की गणना, बस,
गणितीय तुच्छ परिहासों से।
ग्रेगर से कोई भीति नहीं,
पश्चिम से अपनी प्रीति नहीं।
बच्चों का खेल इसे समझें,
भारत की ऐसी रीति नहीं॥
पश्चिम का ज्ञान भरत भू को,
क्या अब गिनती सिखलाएगा ?
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥1॥

कोहरा जब घोर घना भू पर,
छाया हो शीत कड़क ऊपर।
लम्बी-ठिठुरी जब रातें हों,
बर्फीली बिछी बिसातें हों॥
सृष्टी नव-रूप धरे कैसे ?
इसको नव वर्ष कहें कैसे ?
जन क्या आनन्द उठायेगा ?
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥2॥

ठण्डी के रहने वाले जो,
ठण्डा नव वर्ष मनाते हैं।
हम तो भारत के वासी हैं,
हर ऋतु का लाभ उठाते हैं।
लेकिन, नव वर्ष हमारा जो,
वह सृष्टि सनातन से चलता।
उसके प्रवेश का द्वार सहज,
मधु ऋतु के आँगन में खुलता।
मधु ऋतु का मधुर-मधुर मौसम,
सन्देश सदा शुभ लायेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥3॥

कुछ गजक-रेवड़ी खाने दो,
चूल्हे में तिल चटकाने दो।
दिनकर को शौर्य दिखाने दो,
संकष्टी को घबराने दो ।
बासन्तिक पर्व सुहायेगा,
जन-जन आनन्द मनायेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥4॥

सूरज का शासन आने दो,
सिंहासन पर चढ़ जाने दो,
शीतों को शीश झुकाने दो,
कुछ दिवस बड़े हो जाने दो।
भू पर नव वर्ष सुहायेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥5॥

पावक अलाव की घटने दो,
धरती पर धूप बिखरने दो,
फिर कम्बल,शाॅल,रजाई को,
स्वेटर को भीतर रखने दो।
जब तन हल्का हो जायेगा,
नव वर्ष स्वयं आ जायेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥6॥

वृक्षों पर पतझड़ होने दो,
खेतों में फसलें पकने दो,
शाखा पर पुष्प लटकने दो,
आमों पर बौर महकने दो।
नव रूप प्रकृति में छायेगा,
नव वर्ष स्वयं आ जायेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥7॥

दिनमणि का आतप बढ़ने दो,
शीतल तुषार को झड़ने दो,
टेसू के फूल टपकने दो,
फागुन के रंग चमकने दो।
नव-अन्न घरों में आएगा,
नव वर्ष स्वयं आ जायेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥8॥

सृष्टी का रूप सुहाने दो,
होली को लपट उठाने दो,
चित्रा को छटा बिछाने दो,
ग्रीष्मावकाश आने को हो।
मन में आनन्द बढ़ायेगा,
नव वर्ष स्वयं आ जायेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥9॥

वृक्षों पर कोपल फूटेंगी,
डालों पर कोयल कूकेंगी।
वन में मयूर फिर नाचेंगे,
वे मोर-पंखियाँ बाँटेंगे।
भू-मन उल्लास मनायेगा,
नव वर्ष उसी पल आयेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥10॥

थोड़ी-सी और प्रतीक्षा है,
बस केवल इतनी इच्छा है।
सूरज का चक्कर पूरा कर,
धरती लौटे, क्रम अच्छा है।
दिन वर्ष प्रतिपदा आयेगा,
नव वर्ष वही कहलायेगा।
नव वर्ष उसी क्षण आयेगा।
नव वर्ष समय पर आयेगा।
नव वर्ष धरा पर छायेगा॥11॥

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