13 जून, 1922 : क्राँतिकारी नानक भील का बलिदान
रमेश शर्मा
13 जून, 1922 : क्राँतिकारी नानक भील का बलिदान
स्वतंत्रता के बाद भी अँग्रेजों के बाँटो और राज करो षड्यंत्र की सोच रखने वाले लोगों के लिये बलिदानी नानक भील एक बड़ा उदाहरण हैं। वे वनवासी थे, लेकिन उन्होंने एक सशक्त किसान आँदोलन चलाया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान खाली हुआ अपना खजाना भरने के लिये अंग्रेजों ने भारत में बलपूर्वक वसूली शुरू कर दी थी। किसान इससे सर्वाधिक प्रभावित थे। अंग्रेजों द्वारा नियुक्त सैनिकों ने गांव गांव जाकर उन्हें वसूली के लिये प्रताड़ित करना आरंभ कर दिया था। इस प्रताड़ना के विरुद्ध पूरा देश एकजुट हो गया था। राजस्थान के बूँदी जिले में क्राँतिकारी नानक भील इसके प्रणेता थे।
नानक भील का जन्म राजस्थान के बूँदी जिला अंतर्गत बराड़ क्षेत्र के गाँव धनेश्वर में हुआ था। उनके जन्म की तिथि और जीवन का विवरण कहीं नहीं मिलता। अंग्रेजों के पुलिस रिकार्ड में नाम, आयु, पिता का नाम और गाँव का नाम मिलता है। स्थानीय लेखकों ने लोक जीवन की चर्चाओं के आधार पर जीवनी तैयार की है। अंग्रेजों के पुलिस रिकार्ड में दर्ज आयु के अनुसार इनका जन्म वर्ष 1890 माना गया है। इनके पिता का नाम भेरू भील था। वे जंगल से वनोपज लाकर धनेश्वर गांव में बेचते थे। समय के साथ पिता ने गांव में एक कच्चा घर बना लिया था। नानक भील का जन्म इसी गाँव में हुआ था। वे बचपन से ही निडर और साहसी थे। उनकी वनवासी युवा मित्रों की एक बड़ी टोली थी। समय के साथ उन्होंने भी वनोपज लाकर गाँवों में बेचनी आरंभ कर दी। इससे उनका संपर्क आसपास के गाँवों में भी बन गया। उन्हीं दिनों क्षेत्र के समाजसेवी गोविंद गुरु और मोतीलाल तेजावत ने अंग्रेजों के बलपूर्वक वसूली अभियान के विरुद्ध आँदोलन आरंभ किया। इसके लिये उन्होंने नानक भील को जोड़ा। नानक भील इस आंदोलन से जुड़ गये और अपनी युवा टोली के साथ पूरे क्षेत्र में झंडा गीतों के माध्यम से अंग्रेजों के विरुद्ध जन जागरण अभियान चलाने लगे। वे गीत भी अच्छा गाते थे और हाट बाजार में लोगों को एकत्र करके अंग्रेजों के षड्यंत्र से अवगत भी कराते थे, साथ ही गाँवों में किसानों की सभाएँ भी करते थे। ऐसी ही एक सभा 13 जून 1923 को डाबी में आयोजित की गई थी। अचानक वहां पर अंग्रेज पुलिस पहुँच गई और पूरे स्थान को घेर लिया। उस समय नानक भील सभा को संबोधित कर रहे थे। पुलिस को देखकर सभा में भगदड़ मच गई। लेकिन नानक भील बिल्कुल विचलित न हुए और झंडा लहराते हुए झंडा गीत गाने लगे। इससे अंग्रेज कमांडर क्रोधित हो गया। उसने नानक भील को गोली मारने के आदेश दे दिए। एक सिपाही ने नानक भील के सीने पर गोली मार दी। नानक भील भूमि पर गिरे और बलिदान हो गये। लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ न गया। पूरे वन क्षेत्र में इसकी प्रतिक्रिया हुई और आँदोलन ने जोर पकड़ लिया। परिणामस्वरूप अंग्रेजी शासन ने वसूली व्यवस्था में कुछ परिवर्तन किया और उन किसानों पर सख्ती कम कर दी, जिनकी फसल खराब हो गई थी।
नानक भील ने जितने क्षेत्र में सभाएँ करके जन जागरण किया, उस क्षेत्र में अब बराड़ क्षेत्र के 13 ग्राम पंचायत क्षेत्र आते हैं। स्वतंत्रता के बाद धनेश्वर और बराड़ में अमर बलिदानी नानक भील की स्मृति में प्रतिमा स्थापित की गई है और बराड़ में वार्षिक मेले का आयोजन भी आरंभ हो गया है।