25 दिसम्बर – क्रिसमस डे या तुलसी दिवस

25 दिसम्बर - क्रिसमस डे या तुलसी दिवस

नीलू शेखावत 

25 दिसम्बर - क्रिसमस डे या तुलसी दिवस25 दिसम्बर – क्रिसमस डे या तुलसी दिवस

मानव समाज उत्सवधर्मी है। जीवन की जटिल यात्रा में उत्सव रूपी क्षणिक विराम शांति और सुकून देते हैं। उत्सव का अभिप्रेत ही प्रसन्न होना और प्रसन्नता बाँटना है। विभिन्न भौगोलिक खंडों और समाजों में इन्हें मनाने के तौर-तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, किन्तु आनंद की अनुभूति इन सबके मूल में है। किन्तु आज इस उत्सवधार्मिता के मायने बदल गए हैं। अब आनंद से अधिक आवश्यक धन और वस्तुओं का संग्रह है। दोनों का अधिक उपार्जन किसी बड़ी कीमत पर ही होता है जिनमें प्रकृति, पर्यावरण और सामाजिक मूल्य प्रमुख हैं। इनका अप्राकृतिक क्षरण कालांतर से मानवता की ही हानि है। किन्तु यह बात समझने तक इंसानी हाथों से बहुत कुछ निकल चुका होगा। 

दिसंबर की ठंड शुरू होते ही सब ओर क्रिसमस ट्री सजने लग गए हैं। चूंकि यह बर्फीले क्षेत्रों का उत्सव है, जहाँ फर या चीड़ के शंक्वाकार पेड़ पाए जाते हैं। इन्हें कठोर शीतकाल में भी जीवट के साथ उगे रहने के कारण प्रेरक माना जाता है और उसी स्मृति में इनको सजाया जाता है। किन्तु इंसानी प्रेम कब पाश का रूप धारण कर ले, कोई नहीं जानता। इन पेड़ों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। वह स्वयं पेड़ों के पास जाने के बजाय उन्हें ही काटकर घर लाने लगा। धीरे-धीरे यह काम बाजार ने संभाला और यहीं से शुरू हुई इनकी बेमाप कटाई, जिसकी चिंता कई पर्यावरण-प्रेमी संस्थाएं और लोग जता चुके हैं।

इसके विस्तृत आंकड़ों से तो इंटरनेट भरा पड़ा है, किन्तु इसका समाधान क्या है, इस पर चर्चा करना यहाँ प्रासंगिक होगा। कुछ लोग इनके विकल्प के रूप में कृत्रिम क्रिसमस पेड़ों के उपयोग का सुझाव देते हैं (भारत में तो इसी का उपयोग होता है ) किन्तु इनके उपयोग के आंकड़े तो पहले वाले से भी अधिक भयावह हैं। कम से कम भारत में तो इसे किसी पर्यावरण हितैषी पेड़-पौधे से रिप्लेस किया जा सकता है। यह प्रयास वैश्विक पटल पर भारत की प्रतिबद्धता में भी सहायक सिद्ध होगा, जिसके अंतर्गत 2030 तक कार्बन तीव्रता में 45% की कटौती करने का लक्ष्य है। भली बात यह है कि यह सोच पिछले कई वर्षों से न केवल समर्थन पा रही है बल्कि एक अभियान के रूप में बड़े स्तर पर प्रसारित भी की जा रही है, जिसके अंतर्गत 25 दिसम्बर ‘तुलसी पूजन दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। यद्यपि इस प्रयास की हँसी उड़ाने वाले लोगों की भी कमी नहीं है, किन्तु एक संवेदनशील विश्वमानव के रूप में किसी को तो कभी पर्यावरण रक्षा का दायित्व लेना होगा। उत्सव के नाम पर करोड़ों पेड़ों की कटाई या प्लास्टिक के पेड़ों से उत्सर्जित अथाह कार्बन से यह विकल्प कितना बेहतर है। यहाँ प्रश्न है कि तुलसी ही क्यों? अन्य कोई वृक्ष क्यों नहीं? पहला तो – आपको इसे काटकर या उखाड़ कर लाने की आवश्यकता नहीं, इसे जीवित अवस्था में घर में रख सकते हैं। दूसरा -छोटे आकार के कारण पोर्टेबल भी है और स्वास्थ्य की दृष्टि से अद्भुत औरा तथा औषधीय गुणों से सम्पन्न भी। तुलसी तनाव को कम करती है, सहनशक्ति बढ़ाती है, शरीर की समग्र रक्षा प्रणाली में सुधार करने में सक्षम है। (भारतीय औषधीय पौधे तुलसी और इसका औषधीय महत्व। रिसर्च जे. मेडिसिनकोग्नोसी और फाइटोकेमिस्ट्री 2010; 2(2):93-101)

तुलसी एक नेचुरल एयर प्यूरिफायर है। तिरुपति के एस.वी. विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, तुलसी का पौधा उच्छ्वास में ओजोन वायु छोड़ता है। कार्बन उत्सर्जन और ओजोन उत्सर्जन में से आप अपने पर्यावरण के लिए क्या चुनेंगे, यह आपके विवेक पर निर्भर है।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *