देश में आपातकाल लगाने के विरोध में इस्तीफा देने वाले एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नरीमन नहीं रहे
कौशल अरोड़ा
देश में आपातकाल लगाने के विरोध में इस्तीफा देने वाले एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नरीमन नहीं रहे
उच्चतम न्यायालय में सबसे लम्बी सेवाएं देने वाले एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) फली एस नरीमन उत्कृष्ट कानूनविद और बुद्धिजीवियों में से एक थे। उन्होंने अपना जीवन आम नागरिकों को न्याय सुलभ कराने के लिए समर्पित कर दिया।
वह हमेशा सार्वजनिक जीवन से जुड़े रहे और सिद्धांतों के लिए अटल रहे। नरीमन ने वर्ष 1950 में मुंबई हाईकोर्ट से वकालत प्रारम्भ की। अपने 10 वर्ष के कार्यकाल को पूर्ण करते ही उन्हें वर्ष 1961 में वरिष्ठ वकील नामित किया गया। नरीमन ने कई ऐतिहासिक मामलों में पैरवी की। इनमें भोपाल गैस त्रासदी, ‘टीएमए पाई फाउंडेशन’ और जयललिता का आय से अधिक संपत्ति जैसे मामले भी शामिल हैं। इसके अलावा वह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के चर्चित मामले से भी जुड़े रहे। इस आयोग को उच्चतम न्यायालय ने भंग कर दिया था।
वर्ष 1972 में उन्हें एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया। हालांकि वर्ष 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया तो नरीमन ने अपने पद एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) से त्यागपत्र दे दिया। आपातकाल के बाद उन्होंने निजी प्रैक्टिस प्रारम्भ कर दी। उनके पुत्र रोहिंग्टन नरीमन बाद में देश के सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया बने और सुप्रीम कोर्ट के जज भी बने। फली एस नरीमन 1991-2010 तक बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। वर्ष 1991 में वे पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित हुए।
वर्ष 1993 के प्रसिद्ध ‘द सेकंड जजेज केस’ के वकील नरीमन थे। इस केस में उनकी विजय हुई। इसी के बाद जजों की नियुक्ति के लिए वर्तमान ‘कॉलेजियम सिस्टम’ देश में प्रचलन में आया। नरीमन को उनकी विद्वता के कारण ही वर्ष 1994 में अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थ परिषद का अध्यक्ष बनाया गया। इसी के नाते वे जिनेवा में न्यायिक आयोग की कार्यकारी समिति में अध्यक्ष रहे। वर्ष 1999 से 2005 के बीच वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे।
95 वर्ष की लम्बी आयु में सरकार और राजनैतिक दलों से अपनी अलग राय रखने वाले रंगून में जन्में विख्यात कानूनविद फली एस नरीमन दिल्ली में अपनी अन्तिम यात्रा को पूर्ण कर गए। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें सदैव याद किया जाता रहेगा।