अहिल्याबाई कुशल शासक होने के साथ ही शौर्य, साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति थीं- मनोज कुमार

अहिल्याबाई कुशल शासक होने के साथ ही शौर्य, साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति थीं- मनोज कुमार

अहिल्याबाई कुशल शासक होने के साथ ही शौर्य, साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति थीं- मनोज कुमारअहिल्याबाई कुशल शासक होने के साथ ही शौर्य, साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति थीं- मनोज कुमार

उरई। अहिल्याबाई न केवल मालवा राज्य की कुशल शासक थीं, बल्कि उन्होंने महिला शिक्षा के प्रसार के लिए भी अद्वितीय योगदान दिया। वे सत्ता संचालन की कला में निपुण थीं। वे शौर्य, साहस और वीरता की प्रतिमूर्ति थीं। उनका कृतित्व आज भी समाज के लिए अनुकरणीय है। ये विचार अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री मनोज कुमार ने जालौन के अखिल भारतीय साहित्य परिषद की जिला इकाई द्वारा स्टेशन रोड स्थित सिटी सेंटर में आयोजित संगोष्ठी और सम्मान समारोह में व्यक्त किए। 

उन्होंने कहा, अहिल्याबाई होल्कर भारतीय इतिहास की एक महान वीरांगना और क्रांतिकारी शासिका थीं, जिन्होंने अपने शासनकाल में न केवल मालवा राज्य को कुशलता से संभाला बल्कि समाज और धर्म के क्षेत्र में भी महान कार्य किए। उनका जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौड़ी गाँव में हुआ था, जो वर्तमान में अहमदनगर जिले के जामखेड़ तालुका में स्थित है। अहिल्याबाई ने समाज में नारी शक्ति और नेतृत्व का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने सड़कों, घाटों, मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया तथा महिला शिक्षा व सामाजिक सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण कदम उठाए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रीय संयुक्त संगठन मंत्री डॉ. पवन पुत्र बादल ने भारतीय संस्कृति के महत्व पर जोर दिया और कहा कि सभी अपने परिवार व बच्चों में भारतीय संस्कारों और संस्कृति को बढ़ावा दें। बुंदेलखंड विकास बोर्ड के सदस्य शंभूदयाल ने अहिल्याबाई को एक अनुकरणीय व्यक्तित्व बताया और कहा कि वे मराठा और मालवा संस्कृति की संरक्षिका थीं। उन्होंने युद्धकला में भी अपनी दक्षता दिखाई और एक विदुषी राजमाता के रूप में जानी गईं।

इस अवसर पर प्रेमनारायण दीक्षित ‘प्रेम’ द्वारा रचित पुस्तक जय श्री राधा और जितेंद्र कुमार निरंजन की पुस्तक यात्रा वृतांत का विमोचन किया गया।

समारोह में शिक्षा, समाजसेवा, साहित्य, कला और संगीत के क्षेत्र में योगदान देने वाली बिटोली देवी, अनीता तिवारी, रेनू पाठक, गरिमा पाठक, प्रतीक्षा सिंह, श्वेता यादव, अवंतिका तिवारी, अनूप मिश्रा, सलिल तिवारी और रामलखन औदीच्य को सम्मानित किया गया।

 

इस आयोजन में पं. प्रयाग नारायण त्रिपाठी, भगवानदास त्रिपाठी, शालिग्राम शास्त्री, राजेश चंद्र पांडेय, दिगंबर तिवारी, मंजूलता, प्रगति मिश्रा, ब्रह्म प्रकाश अवस्थी, अजय, सुरेश चंद्र त्रिपाठी और कई अन्य प्रतिष्ठित लोग उपस्थित रहे। 

कार्यक्रम में साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श किया गया, जो भारतीय समाज के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास को बनाए रखने में सहायक सिद्ध होगा। कार्यक्रम का संचालन अश्वनी मिश्रा ने किया।

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