अजमेर सेक्स स्कैंडल : लड़कियों को ले जाने के लिए स्कूल के बाहर खड़ी रहती थी आरोपियों की गाड़ी

अजमेर सेक्स स्कैंडल : लड़कियों को ले जाने के लिए स्कूल के बाहर खड़ी रहती थी आरोपियों की गाड़ी

अजमेर सेक्स स्कैंडल : लड़कियों को ले जाने के लिए स्कूल के बाहर खड़ी रहती थी आरोपियों की गाड़ीअजमेर सेक्स स्कैंडल : लड़कियों को ले जाने के लिए स्कूल के बाहर खड़ी रहती थी आरोपियों की गाड़ी

अजमेर। 100 से अधिक लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार करने वालों में से 6 को स्पेशल पॉक्सो कोर्ट के जज रंजन सिंह ने आजीवन कारावास और 5-5 लाख रुपए जुर्माने की सज़ा सुनाई है। 32 वर्ष पुराने इस सेक्स स्कैंडल में अदालत ने नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ़ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन को दोषी माना है। मामला 1992 का है, जिसमें दरगाह के खादिमों और कॉन्ग्रेस नेताओं का हाथ सामने आया था। इस सेक्स स्कैंडल की शिकार स्कूल जाने वाली 11-20 वर्ष की बच्चियां थीं। बताया जाता है कि उस समय आरोपियों की फिएट कार लड़कियों के स्कूल के बाहर खड़ी रहती थी, जो अलग-अलग दिन अलग-अलग लड़कियों को शहर के अलग-अलग ठिकानों पर ले जाती थी और उनके साथ रेप किया जाता था। इस सबसे परेशान होकर कइयों ने तो अपने जीवन की डोर ही काट ली थी। रसूखदार अपराधियों के आगे बच्चियों के माता-पिता भी विवश थे। 

उस समय इस मामले को उठाने का साहस साप्ताहिक समाचार पत्र ‘लहरों की बरखा’ चलाने वाले मदन सिंह ने किया था, जिनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद मामले को उठाया दैनिक नवज्योति ने। एक सुबह लोगों ने समाचार पत्र की हेडिंग पढ़ी – “बड़े लोगों की पुत्रियां ब्लैकमेल की शिकार”, तो अजमेर में जैसे भूकम्प आ गया। समाचार के साथ तस्वीरें भी थीं। इसके बाद तो खुलासों का क्रम चल पड़ा। 

उस समय कुछ ऐसे मीडियाकर्मी भी थे, जो बहती नदी में हाथ धो रहे थे। बच्चियों की फोटो हाथ में आने पर उन्हें व उनके परिजनों को ब्लैकमेल कर रहे थे। तत्कालीन DIG ओमेंद्र भारद्वाज ने बिना जाँच ही लड़कियों के चरित्र पर प्रश्न उठा दिए थे।

स्कैंडल सामने आने के बाद 18 आरोपितों पर ट्रायल चला, जिनमें कलर लैब का मैनेजर हरीश डोलानी, यूथ कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष रहा फारूख चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, जॉइंट सेक्रेटरी अनवर चिश्ती, लैब डेवलपर पुरुषोत्तम, इकबाल भाटी, कैलाश सोनी, सलीम चिश्ती, सोहेल गनी, जमीर हुसैन, अल्मास महाराज, इशरत अली, परवेज अंसारी, मोइजुल्लाह उर्फ़ पूतन इलाहाबादी, नसीम उर्फ़ टार्जन, कलर लैब का मालिक महेश डोलानी, ड्राइवर शम्शू उर्फ़ माराडोना एवं नेता जउर चिश्ती के नाम शामिल थे। इनमें से 5 अपनी सज़ा काट चुके हैं और 6 को अब सज़ा सुनाई गई है। बाकी बचे सात में से एक पुरुषोत्तम ने 1994 में आत्महत्या कर ली थी। इशरत अली, अनवर चिश्ती, मोइजुल्लाह और शमशुद्दीन को 2003 में आजीवन कारावास की सजा मिली थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 10 वर्ष के कारावास में बदल दिया, अब ये भी सजा पूरी कर रिहा हो चुके हैं। अल्मास विदेश भाग गया था, उसके विरुद्ध रेड कॉर्नर नोटिस जारी है।

इस सेक्स स्कैंडल की शुरुआत अजमेर के एक बड़े बिजनेसमैन के बेटे से हुई थी। आरोपियों ने पहले उससे दोस्ती की, फिर उसके साथ कुकर्म कर उसकी अश्लील तस्वीरें निकालीं। इन तस्वीरों के माध्यम से उसे ब्लैकमेल करते हुए पीड़ित की गर्लफ्रेंड को एक पोल्ट्री फार्म पर बुलाया। आरोपियों ने उस लड़की के साथ रेप किया और उसकी अश्लील तस्वीरें निकाल लीं। फिर उन तस्वीरों के माध्यम से लड़की को ब्लैकमेल करते हुए आरोपियों ने उस पर अपनी अन्य दोस्तों को बुलाने का दबाव बनाया। बदनामी से बचने के लिए लड़की धोखे से अपने दोस्तों को आरोपियों के ठिकानों पर ले जाने लगी। ब्लैकमेलिंग की शुरुआत यूथ कांग्रेस के नेता फारूख चिश्ती, अनवर चिश्ती और नफीस चिश्ती ने की, बाद में और लोग जुड़ते गए।

इस तरह खुला मामला

आरोपियों ने लड़कियों की न्यूड तस्वीरें डेवलप करने का काम शहर के एक फोटो स्टूडियो को दे रखा था। उस स्टूडियो की लैब में काम कर रहे टेक्नीशियन की लड़कियों की न्यूड तस्वीरें देख नीयत बिगड़ गई और फिर लैब से तस्वीरें मार्केट में आने लगीं। फिर ये तस्वीरें जिसके हाथ लगीं, उसी ने लड़की को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया। पुलिस ने फोटो के आधार पर पीड़िताओं को खोजना शुरू किया, तो लोक लाज के डर से कइयों ने आत्महत्या कर ली और कुछ ने चुपचाप शहर ही छोड़ दिया। आरोपियों को कोर्ट तक पहुंचाने का साहस मात्र 18 पीड़िताएं ही जुटा पाईं।

अजमेर में हुआ था जोरदार हंगामा

इस मामले के सामने आने के बाद अजमेर में हंगामा मच गया था। अधिकांश आरोपी मुस्लिम थे। इनमें कई पीड़िताएं ऐसी भी थीं जिनके मां-बाप अधिकारी थे। शहर में कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन हुआ था। उस समय राज्य में भाजपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे भैरोसिंह शेखावत। उन्होंने यह केस सीआईडी व सीबीआई को सौंप दिया। इसके बाद 31 मई 1992 को जांच शुरू हुई। बदनामी के डर से 6 लड़कियों ने सुसाइड कर लिया था। कई पीड़िताएं आज भी अपने नाम और पहचान को छिपाकर अलग-अलग शहरों में रह रही हैं। मंगलवार को जब अदालत ने इस मामले में 6 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई तो फिर से यह मामला सबके ध्यान में आ गया।

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