आनासागर : प्रदूषण के चलते मुंह मोड़ रहे प्रवासी पक्षी
आनासागर : प्रदूषण के चलते मुंह मोड़ रहे प्रवासी पक्षी
आनासागर झील, जो कभी प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग मानी जाती थी, अब उन्हें आकर्षित नहीं कर रही है। कुछ बरस पहले तक यह साइबेरियन क्रेन, पेलिकन, फ्लेमिंगो और कई अन्य दुर्लभ पक्षियों का ठिकाना हुआ करती थी। सर्दियों में यहां पक्षियों का कलरव इसे जीवंत बना देता था। लेकिन अब इन पक्षियों की संख्या में भारी कमी देखी जा रही है। केवल कुछ सामान्य प्रजातियां, जैसे बगुले और जलमुर्गियां ही यहां दिखाई देती हैं।
इस परिवर्तन के कई कारण हैं। झील में जलकुंभी की अत्यधिक वृद्धि ने पानी के बहाव और जैव विविधता को बुरी तरह प्रभावित किया है। जलकुंभी का मुख्य कारण झील में गंदे नालों से गिरता प्रदूषित पानी है। इन नालों से आने वाला घरेलू और औद्योगिक कचरा झील की स्वच्छता को समाप्त कर रहा है। पानी में जैविक ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर बढ़ गया है, जिससे ऑक्सीजन की कमी हो रही है। इसके परिणामस्वरूप न केवल पक्षियों के लिए भोजन की उपलब्धता कम हो गई है, बल्कि मछलियों और अन्य जलीय जीवों की संख्या भी घट रही है।
राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान (नीरी) की टीम ने अजमेर की आनासागर झील का सर्वेक्षण करते हुए पाया कि झील में अब भी 17 नालों का गंदा पानी गिर रहा है। इनमें मित्तल हॉस्पिटल, रीजनल कॉलेज चौपाटी, बर्ड पार्क, गुलमोहर पार्क, बांडी नदी, काजी का नाला, आंतेड़ और अन्य क्षेत्रों के नालों का पानी सम्मिलित है। झील में 500×500 के 13 स्थानों पर चिन्हित कर वहां से पानी और तल में उपस्थित मिट्टी के नमूने एकत्र किए गए। इन नमूनों को लैब में परीक्षण के लिए सील किया गया है। टीम का नेतृत्व नागपुर से आए डॉ. अमित बंशीवाल कर रहे हैं, साथ में चार वैज्ञानिकों की टीम सहयोग कर रही है। टीम झील के पानी में बॉयलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD), ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा का अध्ययन करेगी। इससे पानी की गुणवत्ता और झील की जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण किया जाएगा। नगर निगम के अधीक्षण अभियंता मनोहर सोनगरा ने बताया कि झील की स्थिति सुधारने और गंदे नालों को झील में गिरने से रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। नीरी की रिपोर्ट आने के बाद झील के संरक्षण के लिए ठोस कार्य योजना बनाई जाएगी।
आनासागर झील का ऐतिहासिक महत्व भी है। इसे 1135-1150 के बीच अजमेर के चौहान शासक राजा अर्णोराज ने बनवाया था। इस झील का उद्देश्य जल संग्रहण और क्षेत्र के सूखे को नियंत्रित करना था। तब यह झील न केवल जल की आपूर्ति का साधन थी, बल्कि शहर के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय संतुलन का भी केंद्र थी।
आज स्थिति यह है कि झील में 17 नालों का गंदा पानी लगातार गिर रहा है, जिसमें घरेलू कचरा, प्लास्टिक और औद्योगिक प्रदूषक शामिल हैं। झील की गहराई में मौजूद स्लज की परत और पानी में फास्फोरस तथा नाइट्रोजन की अत्यधिक मात्रा जलकुंभी के लिए अनुकूल वातावरण बना रही है। इसके कारण झील का प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र बर्बाद हो रहा है।
झील की वर्तमान स्थिति न केवल पर्यावरणीय संकट का संकेत देती है, बल्कि अजमेर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति हमारी उदासीनता को भी दर्शाती है। आनासागर झील को फिर से जीवंत बनाने के लिए प्रदूषण को रोकना और झील की नियमित सफाई आवश्यक है। साथ ही, प्रवासी पक्षियों को वापस लाने के लिए झील के प्राकृतिक आवास को पुनः स्थापित करना होगा।
जल का पीएच स्तर 8 से अधिक होना और टर्बिडिटी का 8 तक पहुंचना, पानी के अत्यधिक प्रदूषण को दर्शाता है। लवणता और फास्फोरस की अधिक मात्रा जलकुम्भी के बढ़ने के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा कर रही है। पानी में ऑक्सीजन की कमी (जनवरी से मई के बीच 3-6 के स्तर पर) से जलीय जीवों और वनस्पतियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। ऑक्सीजन की यह कमी मछलियों और अन्य जलीय जीवों के लिए घातक साबित हो रही है। जलकुम्भी सूरज और पानी के बीच संपर्क रोकती है, जिससे वाष्पीकरण रुक गया है। यह झील के पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित करने के साथ ही पानी की गुणवत्ता को और खराब कर रहा है।