अरावली मोशंस सोसाइटी ने किया “एक्सोडस एंड एक्साइल: द नीड” और “घर का पता” फिल्मों की स्क्रीनिंग कार्यक्रम का आयोजन

अरावली मोशंस सोसाइटी ने किया "एक्सोडस एंड एक्साइल: द नीड" और "घर का पता" फिल्मों की स्क्रीनिंग कार्यक्रम का आयोजन

अरावली मोशंस सोसाइटी ने किया "एक्सोडस एंड एक्साइल: द नीड" और "घर का पता" फिल्मों की स्क्रीनिंग कार्यक्रम का आयोजनअरावली मोशंस सोसाइटी ने किया “एक्सोडस एंड एक्साइल: द नीड” और “घर का पता” फिल्मों की स्क्रीनिंग कार्यक्रम का आयोजन

जयपुर, 1 जुलाई 2024। अरावली मोशंस सोसाइटी द्वारा रविवार को जयपुर के पाथेय भवन में दो महत्वपूर्ण शॉर्ट फिल्मों की स्क्रीनिंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। दोनों ही फिल्में 1990 के दशक में कश्मीरी हिन्दुओं के साथ हुए अत्याचार और अमानवीयता की घटनाओं पर आधारित हैं। 

फिल्म “एक्सोडस एंड एक्साइल: द नीड” अपने आप में एक भाव और जिज्ञासा है, जो अप्रत्यक्ष रूप से 1990 के दशक में कश्मीरी हिन्दुओं के साथ हुई बर्बरता पर आधारित है। फिल्म में एक ओर तो रवि और उसके दोस्त यूसुफ के बचपन के मासूमियत भरे दिनों को दर्शाया गया है, वहीं दूसरी ओर वह रवि और उसकी पत्नी गीता के कश्मीर को लेकर उत्पन्न हुए दुख को चित्रित करती है। फिल्म की कहानी एक निर्वासित कश्मीरी हिन्दू परिवार और एक स्थानीय कश्मीरी मुस्लिम परिवार के आंतरिक वार्तालाप और उनके सुख-दुख भरी यादों के आसपास घूमती है और पूरे कश्मीरी हिन्दू समुदाय के संघर्ष का प्रतिनिधित्व करती है। फिल्म में रवि और उसका मित्र यूसुफ कश्मीरी हिन्दुओं के निर्वासन के अतिरिक्त हर पहलू पर बड़ी शांति और प्रेम से बात करते हैं। लेकिन जब भी रवि कश्मीरी हिन्दुओं के निर्वासन की बात करता है, तो यूसुफ क्रुद्ध हो जाता है। फिल्म में ऐसे अनेक दृश्य हैं, जो एक तरफ तो यूसुफ परिवार का रवि के परिवार के प्रति प्रेम और आतिथ्य-सत्कार जैसे भावों को दिखाते हैं, वहीं दूसरी ओर यूसुफ व उसके परिवार द्वारा अपने मजहब के प्रति कभी समझौता न करने की मूल प्रवृत्ति को भी दर्शाते हैं।

“घर का पता” मधुलिका जलाली द्वारा निर्देशित एक संवेदनशील और भावनात्मक डॉक्यूमेंट्री है, जो एक कश्मीरी हिन्दू महिला के रूप में उनकी पहचान और खोज की कहानी व्यक्त करती है। फिल्म में दिखाया गया है कि किस प्रकार 1990 के दशक की शुरुआत में जब मधूलिका केवल 6 वर्ष की थी, तब उसके परिवार को कश्मीर के अलगाववादी विद्रोह के कारण श्रीनगर से भागना पड़ा था। यह फिल्म न जाने कितने अदृश्य दृश्यों का अहसास करवा जाती है, जो अमानवीयता और त्रासदी से भरे थे। कितने ही निर्दोष परिवार बेघर हो गए थे हमेशा, हमेशा के लिए। घर का पता एक ऐसी कहानी है, जो न केवल एक व्यक्ति की पहचान की खोज को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि मानवता की असली पहचान प्रेम, सहानुभूति और एकता में निहित है, कट्टरपंथ में नहीं।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षकगण और छात्रों सहित लगभग 20 दर्शक उपस्थित रहे।

अंत में सभी दर्शकों ने अपना परिचय दिया और इन फिल्मों से संबंधित अनेक गंभीर पहलुओं पर विचार विमर्श किया। फिल्मों की तकनीकी त्रुटियों पर प्रकाश डाला गया तथा निर्देशकों की तथाकथित, छुपी हुई सेक्युलर मानसिकता को भी उजागर किया गया। 

कार्यक्रम का संचालन अरावली मोशंस सोसाइटी के निदेशक दिवस गौड़ ने किया तथा समापन व धन्यवाद ज्ञापन फिल्म आयाम के प्रमुख डॉ. अरुण सिंह ने किया।

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