अरुणाचल प्रदेश सरकार धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1978 के नियम तुरंत अधिसूचित करे- सतेन्द्र सिंह

अरुणाचल प्रदेश सरकार धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1978 के नियम तुरंत अधिसूचित करे- सतेन्द्र सिंह

 

अरुणाचल प्रदेश सरकार धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1978 के नियम तुरंत अधिसूचित करे- सतेन्द्र सिंहअरुणाचल प्रदेश सरकार धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1978 के नियम तुरंत अधिसूचित करे- सतेन्द्र सिंह

कोलकाता। वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतेन्द्र सिंह ने कन्वर्जन को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1978 के नियम तुरंत अधिसूचित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि विगत कई दिनों से देश के सीमावर्ती प्रान्त अरुणाचल प्रदेश से वहां के उच्च न्यायालय के एक निर्णय और आदेश के विरुद्ध चर्च एवं ईसाईयों के विरोध और विरोध-प्रदर्शनों के समाचार आ रहे हैं, जो निंदनीय है। यह प्रान्त 1972 में केंद्र शासित प्रदेश बना, जो पहले नेफा कहलाता था। वहां की तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने 1978 में अरुणाचल प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम पारित किया था। पीके थुंगन उस समय वहां के मुख्यमंत्री थे। स्थानीय स्वधर्मी जनजातियों की धर्म-संस्कृति की रक्षा करने और एक धर्म से दूसरे धर्म में लोभ-लालच, दबाव या धोखाधड़ी से होने वाले कन्वर्जंस को रोकने और सरकारी रिकॉर्ड में ऐसे कन्वर्जन को रिकॉर्ड करने के लिए यह कानून बनाया गया था। इसके पहले ऐसा ही कानून मध्य प्रदेश एवं ओड़िसा में और बाद में देश के कई अन्य राज्यों ने भी बनाए, इन सब कानूनों को देश का सर्वोच्च न्यायालय भी संवैधानिक रूप से सही ठहरा चुका है। परन्तु दुर्भाग्यवश अरुणाचल प्रदेश में इसके नियम अभी तक नहीं बनाए गए, जो कि अधिनियम पारित होने और उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति दिनांक 25 अक्टूबर 1978 को मिलने के कुछ महीनों के अन्दर ही अधिसूचित कर दिए जाने चाहिए थे। इन नियमों के अभाव में यह कानून गत 47 वर्षों तक लागू नहीं किया जा सका। यह स्वतंत्र भारत का शायद एक मात्र कानून होगा, जो इतने वर्षों तक ठन्डे बस्तों में पड़ा रहा। इसका सीधा दुष्परिणाम यह हुआ कि 70 के दशक में जिस राज्य में ईसाई जनसंख्या 1 प्रतिशत भी नहीं थी, वह बढ़ कर 2011 की जनगणना के अनुसार 31% हो गई और आज तो और भी अधिक हो गई होगी। ये आंकड़े ही यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि वैधानिक रूप से पारित यह कानून किन तत्वों के निहित स्वार्थों और केंद्र एवं राज्य की तत्कालीन सरकारों की लापरवाही और विफलता के कारण नहीं लागू हुआ होगा।

नियम बनाने का यह आदेश बीजेपी या किसी बाहरी शक्ति के दबाव में नहीं बल्कि गत 30 सितम्बर 2024 को गुवाहाटी उच्च न्यायालय की ईटानगर स्थाई बेंच ने एक जन-हित याचिका पर आदेश दिया कि राज्य सरकार इस आदेश के 6 महीनों के अन्दर इस कानून को लागू करने के नियम अधिसूचित कर अपनी क़ानूनी जिम्मेवारी पूरी करें। स्थानीय जनजाति समाज तो नियम बनाने की मांग गत 20-25 वर्षों से कर रहा है, हाईकोर्ट में यह जन-हित याचिका भी वहीँ के एक जनजाति युवा एडवोकेट ने दाखिल की थी।

जैसे जैसे 6 महीने की यह अवधि निकट आने लगी और जब  सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह न्यायालय का आदेश स्वीकार कर नियम अधिसूचित करेगी; तभी से न केवल अरुणाचल के बल्कि निकटवर्ती राज्यों के चर्चों और वहां के ईसाई संगठनों-लोगों ने इसका पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया। देश में संविधान की दुहाई देने वाले चर्च, उससे जुड़े संगठनों और लोगों का संविधान को लागू करने वाले राज्य के उच्च न्यायालय के आदेश और उसे लागू करने के राज्य सरकार के प्रयासों का विरोध घोर निंदनीय कदम है। 

उन्होंने कहा, कन्वर्जन ने इन पचास वर्षों में वहां के सनातन-स्वधर्मी जनजाति समाज की लगभग आधी जनसंख्या, उसकी धर्म-संस्कृति को निगल लिया है- उसका जिम्मेवार कौन है? 15 लाख की जनसंख्या वाले इस छोटे से राज्य में जो 2 बिशप और हजारों चर्च वहां के विश्वासुओं की बेरोकटोक फसल काट रहे हैं, वे ही आज उच्च न्यायालय के आदेश और नियम बनाने का विरोध कर और करवा रहे हैं। देश की तथाकथित स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया एवं प्रगतिशील सेक्युलर शक्तियां एवं राजनैतिक दल इस पर आँखें बंद कर चुप बैठे हैं। अरुणाचल प्रदेश के डोनी-पोलो, रांगफ्रा, अमितमताई, रिंग्याजोमालो की पूजा करने वाले उपासक और बौद्ध पंथ का अनुयायी जनजाति समाज भी यह सब देख रहा है।

उन्होंने कहा, अरुणाचल प्रदेश की परवर्ती राज्य सरकारें इस मामले में पहले ही घोर लापरवाही कर चुकी हैं, मैं अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम और देश के सम्पूर्ण जनजाति समाज की ओर से अरुणाचल प्रदेश राज्य सरकार के सम्मुख उपरोक्त तथ्य रखते हुए यह स्पष्ट मांग करता हूँ कि वह अपने संवैधानिक दायित्व को पूरा करते हुए अविलम्ब ये नियम अधिसूचित करें और इस कानून का कड़ाई से पालन शुरू करें। वनवासी कल्याण आश्रम केंद्र सरकार विशेषकर देश के गृह मंत्री से भी अनुरोध करता है कि वे इसमें अविलम्ब हस्तक्षेप कर स्थिति को और बिगड़ने से रोकें और राज्य सरकार को संवैधानिक विफलता से बचाएं।

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