बदले हुए भारत का प्रतीक बन गया अयोध्या

रामजन्मभूमि मंदिर में हुई एक सुंदर घटना का वर्णन:

अवधेश कुमारबदले हुए भारत का प्रतीक बन गया अयोध्याबदले हुए भारत का प्रतीक बन गया अयोध्या

मैं पिछले कई दिनों से अयोध्या में हूं। हमारे देश के उन बुद्धिजीवियों और नेताओं को, जो समय की धारा को नहीं पहचानते, अयोध्या के वातावरण का अनुमान भी नहीं होगा। आप कल्पना करिए कि कैसा वातावरण है? पूरे अयोध्या जिले को पुलिस ने सील कर दिया है। जिन्हें निमंत्रण है, जिनको पास मिला है, वही गाड़ियां 21- 22 – 23 जनवरी को अयोध्या आ सकी हैं। बावजूद हजारों की संख्या में सभी आयु के लोग अयोध्या पहुंचे हुए हैं। मुख्य सड़कें लोगों से भरी हुई हैं। लोग पैदल चल कर भी अयोध्या पहुंचे हैं। यहां भारी सुरक्षा सख्ती है। लोगों को असुविधाएं हैं। बावजूद मैंने जितने भी सामान्य लोगों से बात की किसी ने भी इस पर प्रश्न नहीं उठाया। पुलिस ने लोगों को रोका हुआ है, लोग सड़कों पर खड़े हैं, लेकिन ज्यादातर के चेहरे पर प्रसन्नता का भाव है। ऐसा वातावरण इसके पहले शायद ही किसी ने देखा होगा। आमतौर पर जब सुरक्षा सख्त होती है तो लोगों की आवाज उसके विरुद्ध निकलती है, लेकिन अब किसी से पूछिए तो कहेंगे कि हमें कोई परेशानी नहीं है। दर्शन आज नहीं तो कल हो जाएगा। इसका अर्थ क्या है?

भारत के सामूहिक मानस का यही बदलाव आज समझने की आवश्यकता है। अगर आप थोड़ी सूक्ष्मता से विचार करेंगे तो ऐसा लगेगा कि संपूर्ण अयोध्या भारतमय है, राममय है और संपूर्ण भारत इस समय अयोध्यामय और राममय हो गया है। अयोध्या के भारतमय, राममय और भारत के राममय में होने के गहरे निहितार्थों को भी समझना आवश्यक है। किसी भी देश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की धाराएं इसी तरह प्रभावी होतीं हैं। राम मंदिर का आंदोलन किसी सामान्य मंदिर निर्माण का आंदोलन नहीं था। यह यह ध्वस्त किए गए मंदिर के पुनर्निर्माण के द्वारा भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आंदोलन था। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के साथ-साथ दिखाई पड़ रहा है कि स्वत: स्फूर्त भाव से उत्साह और उमंग लिए हुए हजारों लोगों का अयोध्या आगमन सांस्कृतिक पुनर्जागरण के धीरे-धीरे सशक्त होने का प्रमाण है। या इस बात को प्रमाणित करता है कि जिन लोगों ने अयोध्या में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने के विरुद्ध तथा राम मंदिर के पुनर्निर्माण के आंदोलन की कल्पना की, वे वाकई दूरदर्शी थे। अयोध्या का चित्र बता रहा है कि भारत के आम लोगों ने अपनी भावनाओं और व्यवहार से उन सबको सच्ची श्रद्धांजलि देने की शुरुआत कर दी है।

प्राण प्रतिष्ठा के विरुद्ध बयानों से विवाद करने वालों के बारे में अगर पूछिए तो लोगों की प्रतिक्रिया या तो गुस्से में है या बहुत सारे लोगों के लिए मायने ही नहीं रखता। वास्तव में यह भारत में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्रांति की लहर जैसी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व दक्षिण भारत खासकर तमिलनाडु के उन मंदिरों-धर्म स्थानों का दौरा किया, जहां वन यात्रा में रामचंद्र जी गए थे या उनसे जुड़े या उनकी भक्ति से जुड़े हुए हैं। तमिलनाडु से सनातन और हिंदुत्व के विरुद्ध तथा उत्तर दक्षिण को बांटने के स्वर के मध्य तथा प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व इस यात्रा के प्रभावों का आकलन करने में थोड़ा समय लगेगा। प्रधानमंत्री की तमिलनाडु यात्रा से उत्तर और दक्षिण का भेद खड़ा करने की चेष्टा का सकारात्मक सांस्कृतिक आध्यात्मिक प्रत्युत्तर मिला है। आम लोगों के लिए इसके कोई मायने नहीं है कि किसे निमंत्रण मिला, किसे नहीं मिला, कौन आए कौन नहीं आए। अयोध्या पहुंचकर आपको लगेगा ही नहीं कि जिन लोगों ने इस पर प्रश्न उठाए या विरोध किया उनका कोई संज्ञान भी लेने को तैयार है।

अयोध्या लंबे समय से आने वाले लोग बता रहे हैं कि हमने कभी कल्पना ही नहीं की थी कि इस तरह का बदला हुआ चित्र हमें दिखाई देगा। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में भाग लेने वाले बता रहे हैं कि अगर उस समय सड़कें ऐसी होतीं, खुला वातावरण होता तो 30 अक्टूबर, 1989 और 2 नवंबर, 1989 के गोली चालन में उतनी संख्या में कारसेवक नहीं मारे जाते। लेकिन न भागने का स्थान और न बचने का। अयोध्या आंदोलन के प्रभावी होने और भारी संख्या में लोगों के लगातार पहुंचते रहने के बावजूद केंद्र और राज्य की सरकारों ने कभी भी यहां सड़कों और आम जनता की सुविधाओं के निर्माण की दृष्टि से काम किया ही नहीं। इस नाते भी यह बदली हुआ अयोध्या है। आज यह इतनी अंतर्शक्ति पा गई है कि संपूर्ण भारत की मानसिक चेतना को बदलने का आधार साबित हो सकती है।

जब आपके लक्ष्य छोटे हों, तो फिर छोटे स्तर से विचार करते हैं किंतु लक्ष्य बड़े हों तो आपके विचार की परिधि भी व्यापक हो जाती है। अगर भारत के लंबे भविष्य की दृष्टि से काम करना हो, तो ऐसे अवसरों पर कोई विरोधी और दुश्मन नहीं हो सकता। इसीलिए प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में विरोधियों को भी आमंत्रित किया गया। यहां तक कि मुकदमे के विरोधी पक्षकारों को भी आमंत्रित किया गया। उनमें कुछ शामिल भी हुए हैं। जैसा पूरे देश को पता है विपक्षी दलों को भी आमंत्रित किया गया था। लेकिन समस्या यह थी कि संपूर्ण अयोध्या आंदोलन के दौरान जिन दलों और नेताओं ने इसका विरोध किया उनको प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आने के लिए कोई न कोई तार्किक आधार चाहिए था। वह मिलना संभव नहीं था। अयोध्या में आम आदमी की भाषा यही है कि विरोधी किस मुंह से प्राण प्रतिष्ठा में आते। अपने दुर्भाग्य से भाजपा और मोदी विरोधी राजनीतिक पार्टियां, बुद्धिजीवी और मीडिया के भी कुछ पुरोधा‌ श्रीराम मंदिर से पैदा हुए भारत के सकारात्मक बदलावों को अभी भी समझने का प्रयास नहीं कर रहे। भारत का मूल धर्म व‌ अध्यात्म रहा है। हमारे प्राचीन मनीषियों ने इसे पहचाना था। गांधी जी ने कहा है कि धर्म ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत दुनिया में बड़ा हो सकता है। वास्तव में धर्म भारत के डीएनए में है । जो आपका मूल संस्कार होता है उसे जागृत कर दिया जाए तो फिर वह उच्चता को प्राप्त करता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार तथा दूसरे धार्मिक सांस्कृतिक आध्यात्मिक संगठनों – समूहों ने लंबे समय तक काम करके भारत की सोई हुई धार्मिक आध्यात्मिक चेतना की जागृति में भूमिका निभाई है। चाहे वह सोमनाथ का पुनर्निर्माण हो, अयोध्या आंदोलन या लंबे समय से चल रहे दूसरे मंदिरों के पुनरुद्धार का आंदोलन या फिर हिंदुत्व और हिंदू धर्म की नए सिरे से प्राचीन विरासत के आधार पर व्याख्या करने, इतिहास का पुनर लेखन, राष्ट्र की परिभाषा अपनी सही सोच से निर्धारित करने….. सब इसी दिशा के कदम हैं। स्वाभाविक ही इन सबका प्रभाव हुआ है और यह इस समय समग्र रूप में अयोध्या में दिख रहा है। यहां सामान्य लोग कहते हुए मिल जाएंगे कि हमको तो इतिहास गलत बताया गया। कल्पना करिए जिस व्यक्ति ने दसवीं तक की भी शिक्षा प्राप्त नहीं की, वह इतिहास और संस्कृति की बात कर रहा है। किसी भी राष्ट्र के जीवन में इस तरह उसकी संस्कारगत चेतना और जागृति सुखद और अच्छे भविष्य का ही द्योतक हो सकता है। इसका एक परिणाम हमें राजनीति में प्रलक्षित हुआ जो आगे और सशक्त व घनीभूत होने का संकेत दे रहा है। निश्चित रूप से अगर देश की जनता इतनी बड़ी संख्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा अन्य नेताओं पर विश्वास कर बाहर निकली है तो इन नेताओं के साथ पार्टी नेताओं और इस समय उनके पीछे खड़े संगठनों का भी उत्तरदायित्व बढ़ जाता है। उन सबको इस बदलाव को गहराई से महसूस करते हुए इसे सकारात्मक दिशा देकर आगे पूर्णता तक ले जाने के लिए कठोर परिश्रम करना होगा। इस तरह का आंदोलन या क्रांतियां बगैर परिश्रम और बलिदान के पूर्णता की ओर नहीं पहुंचती। लोगों का भी दायित्व है कि वो इसे समझते हुए अभी लंबे समय तक इस दिशा में परिश्रम करने और भारत को उस स्थान पर ले जाने की फ्री से सतत परिश्रम करें जहां हमारी पहचान अयोध्या जैसे स्थानों से तथा श्रीराम जैसे व्यक्तित्व से हो ताकि संपूर्ण विश्व इससे प्रेरणा ले सके और हमें सम्मान की दृष्टि से देखे। भारत और यहां के लोगों का गौरवबोध और हर दृष्टि से सशक्त व संपन्न होने का रास्ता यहीं से निकलता है।

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