महिलाओं ने श्रद्धा और उत्साह से मनायी बच्छ बारस

महिलाओं ने श्रद्धा और उत्साह से मनायी बच्छ बारस

महिलाओं ने श्रद्धा और उत्साह से मनायी बच्छ बारसमहिलाओं ने श्रद्धा और उत्साह से मनायी बच्छ बारस

जयपुर। राजस्थान सहित देश के विभिन्न भागों में शुक्रवार, कृष्ण पक्ष की द्वादशी को बच्छ बारस का पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया गया। महिलाओं ने सुबह मंगल गीत गाते हुए गाय व बछड़े के भाल पर तिलक लगाकर विधि-विधान के साथ उनका पूजन किया और गायों को चुनरी ओढ़ाई। यह पर्व मुख्यतः माताओं द्वारा मनाया जाता है, जिसमें वे अपने बच्चों की लंबी आयु, कल्याण और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं और गोमाता व बछड़े की पूजा करती हैं। इस दौरान वे गोमाता और बछड़े के आगे दीप जलाती हैं, माला पहनाती हैं और उनकी आरती उतारती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से संतान को लंबी आयु व स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

बच्छ बारस पर महिलाओं द्वारा चाकू या किसी भी नुकीले उपकरण का प्रयोग न करना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। यह परंपरा माताओं व उनकी संतान की सुरक्षा व भलाई की कामना का प्रतीक है।

इस तरह, बच्छ बारस का पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा है, बल्कि यह अहिंसा, जीवन की सुरक्षा और मातृत्व की गरिमा को भी सम्मानित करता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इस दिन गोमाता का दर्शन और पूजन किया था। जिस गोमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। ऐसे में गोमाता की रक्षा करना और उनका पूजन करना हर भारतवंशी का धर्म है। पुराणों में गोमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कही गई है।

धार्मिक स्थलों पर विशेष आयोजन

राज्यभर के विभिन्न मंदिरों में इस अवसर पर विशेष पूजा और भजन-कीर्तन के आयोजन किए गए। पंडितों ने इस दिन के महत्व और पूजा की विधि के बारे में जानकारी दी। बच्छ बारस के इस पावन पर्व पर राजस्थान में विशेष उत्साह देखने को मिला और इसे मातृत्व की पवित्रता और बच्चों के प्रति ममता का प्रतीक माना गया।

ऐसा माना जाता है कि इस पर्व का प्रारम्भ ग्रामीण समाज में हुआ, जहाँ पशुपालन प्रमुख जीवन शैली का भाग था। विशेषकर किसान परिवारों में, जहाँ गाय और बछड़े को आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता था। समय के साथ, यह परंपरा व्यापक रूप से प्रचलित हो गई और अब यह पर्व भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है।

बच्छ बारस मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में मनाई जाती है, लेकिन इसका विशेष महत्व राजस्थान, गुजरात, और महाराष्ट्र में देखा जाता है।

राजस्थान:  यहाँ बच्छ बारस का पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे विशेष रूप से मनाया जाता है, जहाँ पशुपालन प्रमुख व्यवसाय है।

गुजरात:  गुजरात में इसे “वाच्छ बारस” के नाम से जाना जाता है। यहाँ भी महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं और गाय और बछड़े की पूजा करती हैं।

महाराष्ट्र:  महाराष्ट्र में इस पर्व को “गोवत्स द्वादशी” कहा जाता है। यहाँ भी इसे व्रत और पूजा के साथ मनाया जाता है। महिलाएँ इस दिन विशेष रूप से सफेद गाय और उसके बछड़े की पूजा करती हैं।

मध्य प्रदेश:  मध्य प्रदेश में भी यह पर्व मनाया जाता है, जहाँ इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है।

उत्तर प्रदेश:  उत्तर प्रदेश में भी कुछ क्षेत्रों में बच्छ बारस का पर्व मनाया जाता है, मुख्यत उन क्षेत्रों में जहाँ पशुपालन और कृषि का प्रमुख स्थान है।

इसके अतिरिक्त, देश के अन्य भागों में भी इसे कुछ परिवारों द्वारा मनाया जाता है, विशेष रूप से उन समुदायों में जहाँ गायों को परिवार का सदस्य माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

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