बलूच लड़ाकों के सामने लाचार दिख रही पाक सेना व सरकार

अवधेश कुमार
बलूच लड़ाकों के सामने लाचार दिख रही पाक सेना व सरकार
पाकिस्तान में बलूच लड़ाकों द्वारा रेल अपहरण की घटना ने संपूर्ण विश्व का ध्यान एक साथ बलूचिस्तान समस्या, पाकिस्तान सरकार और सेना की लाचारी की ओर खींचा है। जब बलूच लिबरेशन आर्मी या बीएलए द्वारा क्वेटा से पेशावर जा रही जफर एक्सप्रेस ट्रेन को बलूचिस्तान में बोलन दर्रे के पास अपहृत करने का समाचार आया तो पहली प्रतिक्रिया यही थी कि यह लंबे समय नहीं चलेगा। आखिर कोई हथियारबंद संगठन संपूर्ण सत्ता और सुरक्षा व्यवस्था के विरुद्ध कैसे टिक सकता है। जब पाकिस्तानी सेना ने कहा कि बंधक संकट समाप्त हो गया है, सभी 33 बीएलए लड़कों को मार गिराया गया है एवं बंधक छुड़ा लिए गए हैं, तो लगा कि हुआ ही होगा। सेना ने बंधकों की रिहाई या बीएलए को पहुंचाई क्षति का न वीडियो जारी किया न तस्वीर। ऐसा होता नहीं है। इसके ठीक बाद बीएलए ने बयान जारी किया कि ‘पाकिस्तानी सेना झूठ बोल रही है। उसने अपने जवानों को हमारे हाथों मरने के लिए छोड़ दिया है। छुड़ाना होता तो हमारी मांगों और बंधकों की रिहाई पर गंभीर बातचीत करते।’ बीएलए ने बंधकों को छोड़ने के बदले बलूच कैदियों की रिहाई पर बातचीत करने के लिए 48 घंटे का समय दिया था। बीएलए प्रवक्ता जियांद बलूच का बयान था-’ पाकिस्तान ने सार्थक बातचीत की जगह पुरानी जिद और सैन्य अहंकार को चुना और जमीन पर स्थिति को स्वीकार करने में विफल रहा। इस जिद के परिणामस्वरुप सभी 214 बंधकों को मार दिया गया है। बीएलए ने संघर्ष में मारे गए अपने 12 लड़ाकों को श्रद्धांजलि दी, जिनमें माजिद ब्रिगेड के पांच आत्मघाती शामिल हैं।
यह सच है कि बोलन दर्रे के पास कई घंटे तक लड़ाई चली किंतु सेना सफल नहीं हुई। बलोच का यह बयान भी स्वीकार किया जाएगा कि आप बीएलए लड़ाकों के शवों को अपनी सफलता के रूप में दिखा रहे हैं तो यह इसलिए बेकार है क्योंकि उनका लक्ष्य कभी जिंदा वापस लौटना था ही नहीं बल्कि आखिरी गोली तक लड़ना था। सेना अपने जवानों की रिहाई नहीं कर सकी। उल्टे उसका यह झूठ उजागर हो गया कि जिन आम लोगों को बचाने का वह दावा कर रही है उनमें से बड़ी संख्या को बलूचों ने रिहा कर दिया था। बलोच ने कहा कि उन्हें युद्ध के नियमों के अंतर्गत सुरक्षित रास्ता दिया गया था। रेल का अपहरण करते समय लगभग 450 लोग उसमें थे, जिनमें 214 सेना के जवान थे। रिहा होकर बाहर निकले अनेक पुरुषों और महिलाओं ने कहा कि लड़ाकों ने उन्हें यह बोलते हुए सुरक्षित निकलने दिया कि जो परिवार के साथ हैं निकल जाएं। यह बलूचों के संघर्ष का चरित्र बताता है। यानी वे आतंकवादी संगठनों की तरह नियमहीन क्रूर संघर्ष नहीं किसी देश द्वारा कब्जे से मुक्त होने के लिए युद्ध के अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए लड़ रहे हैं। उसके बयान में शामिल है कि हमने युद्ध के अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए निर्दोष लोगों, महिलाओं, बच्चों आदि को रिहा कर दिया। पाकिस्तानी मीडिया में यह समाचार आते ही कि काफी संख्या में कॉफिन ले जाए गए हैं वस्तुस्थिति सामने आ गई। पाकिस्तान में आम मृत व्यक्तियों के लिए नहीं सेना के लिए कॉफिन का प्रयोग होता है। यानी सेना और सरकार लोगों को गफलत में डाल रही है और अपनी शर्मनाक पराजय तथा गलत तरीके से बंधक समस्या को हैंडल करने की नीति को छिपाने का प्रयास कर रही थी।
पाकिस्तान में सेना को सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावी संस्था माना जाता रहा है। पिछले कुछ समय से ऐसी घटनाएं और सच्चाइयां सामने आईं हैं, जिनसे पाकिस्तान में ही सेना बदनाम कौम हो गई है। जब इस घटना के बाद पाकिस्तान के इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस या आईएसपीआर के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी प्रेस वार्ता में बोल रहे थे कि आतंकवादियों से वैसे ही निपटा जाएगा, जैसे वह चाहते हैं, हम उनसे उनके मददगारों से, समर्थकों से चाहे वे पाकिस्तान के अंदर हो या बाहर निपटेंगे तो आम जानकार लोग हंस रहे थे। बलूचिस्तान की पूरी स्थिति देश के सामने है। सेना और सरकार के झूठ मिनटों में ध्वस्त कर दिए जाते हैं। अगर सेना तस्वीर जारी कर बताती है कि उसने इतने बलूच विद्रोहियों को मारा या क्षेत्र को मुक्त कराया तो लोग सोशल मीडिया पर उन तस्वीरों की सच्चाई ला देते हैं। ये किसी दूसरे देश की घटनाओं की तस्वीरें होतीं है। सेना बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे सक्रिय लोगों के बीच मजाक का विषय बनती गई है। एक समय पाकिस्तान में पढ़ाया जाता था कि 1965 और 1971 का युद्ध हमने जीता था। अब उसकी सच्चाई सामने है तथा लोग प्रश्न कर रहे हैं कि आपने झूठ क्यों फैलाया? कारगिल के बारे में आम पाकिस्तानी बोलते हैं कि हमारी सेना इतनी बेगैरत है कि अपने ही जवानों के शवों को विरोधी सेना के रहमों- करम पर छोड़ दिया और उन्हें 2 गज जमीन तक नसीब कराने से पीछे हट गए। इमरान खान की तहरीक ए इंसाफ पार्टी ने सेना के मुख्य केन्द्र तक में तोड़फोड़ की और लोग उसके विरुद्ध खड़े नहीं हुए। अनेक जगह सेना को अपमान झेलना पड़ता है और जनता पक्ष में खड़ी नहीं होती। यह पाकिस्तान में ऐसा बदलाव है जिसकी कल्पना नहीं की गई थी।
पाकिस्तान के लोगों ने रेल अपहरण का विरोध किया, उसकी निंदा की, वहां के टेलीविजन चैनलों ने भी आतंकवादी घटना बताते हुए विरोध किया, किंतु सेना के पक्ष में पहले की तरह सम्मानजनक भाषा नहीं सुनी गई। वस्तुतः पाकिस्तानी सेना का भ्रष्टाचार, विलासिता, अय्याशी तथा युद्ध में शर्मनाक पराजय या पीछे हटने की घटनाओं ने उसकी रही सही साख भी मिट्टी में मिला दी है। बलूचिस्तान में सेना बुरी तरह विफल है। आप सोचिए, जिस ट्रेन में 241 सेना के जवान हों, उसका अपहरण करके उन्हें मार दिया जाए इससे शर्मनाक क्या हो सकता है? बलूचों को कैसे पता चला कि उसमें सेना जा रही है। अपहरण की तैयारी भी कई दिनों तक चली होगी क्योंकि एक-दो दिन में यह संभव नहीं। संसद के अंदर फजलुर रहमान और अनेक सांसद खड़े होकर बोलते हैं कि आज अगर बलोच स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दें तो उसको हमारे पाकिस्तान का भाग बनाए रखने का कोई रास्ता नहीं बचा है। जब सेना बलोच के कुछ क्षेत्रों पर नियंत्रण का दावा कर तस्वीरें जारी करती है तो बलोच लड़के उसे फेक बताते हुए अपने नियंत्रण का प्रमाण प्रस्तुत कर देते हैं। बलूचिस्तान के ज्यादातर क्षेत्रों से पाक सरकार का नियंत्रण समाप्त हो चुका है। सेना जिस तरह वहां अत्याचार करती रही है, उसके विरुद्ध आम जनता में भी विद्रोह है। विदेश में निर्वासित हुए या रह रहे बलोचों तथा हथियार और अहिंसक तरीके से लड़ रहे बलूच समूहों ने सेना की जुर्म के जो विवरण बार-बार दिए हैं वो मानवता को शर्मसार करने वाले हैं। लोगों को पंक्तियों में खड़ा कर कर गोली मार दी गई, बच्चों और महिलाओं तक को नहीं छोड़ा गया। ऐसी भी घटनाएं हैं, जिनमें गर्भवती महिला को वायुयान में ले जाकर ऊपर से नीचे फेंक दिया। आतंकवाद से संघर्ष का विश्वास दिखाने के लिए सेना बलोचों को मारती और अमेरिका के पास तस्वीर भेजती थी कि हमने आतंकवादियों को मार दिया। इसके भी सच सामने आ गए। बलूचिस्तान का अपना अलग अस्तित्व रहा है। स्वाधीनता के बाद उसकी अपनी व्यवस्था थी। इस्लामाबाद में उसके दूतावास थे, जिनमें बलूच झंडा लगा था। बलूचों ने अपने को अलग देश साबित करने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को ही वकील रखा था, जिन्होंने अंग्रेजों के समक्ष उनका केस प्रस्तुत किया। बाद में जिन्ना ने ही बलूचिस्तान को हड़प लिया। तभी से बलूच अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अपनी खनिज संपदा तथा प्राकृतिक संसाधनों व मनोरम दृश्यों के लिए विख्यात बलोच पाकिस्तान सेना व सत्ता के शोषण और दमन का शिकार रहा है। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का निर्माण आरंभ होने तथा ग्वादर बंदरगाह चीन को सौंपने के बाद विद्रोह ज्यादा प्रचंड हुआ है। बलोच इसे आर्थिक गुलामी का ढांचा बताते हैं। वे मानते हैं कि हमारी खनिज संपदाओं को चीनी अपने देश ले जाएंगे और हमें कुछ नहीं मिलेगा। उन्होंने इसे अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता पर हमला करार दिया है। पाकिस्तानी सेना और पुलिस, प्रशासन के लोगों को वहां कब्जा करने वाले विदेशियों के रूप में व्यवहार मिल रहा है। सेना बलूचों को पराजित करने में सफल नहीं हुई और रेल अपहरण कांड बताता है कि संघर्ष उस सीमा तक पहुंच गया है, जहां से पाकिस्तान के लिए कब्जा बनाए रखने तथा बलोचों के लिए भी पाकिस्तान का भाग बनने की मानसिकता में लौटना असंभव है। भारत किसी संघर्ष में हिंसा, हथियारबंद विद्रोह का समर्थन नहीं करता है। किंतु पाकिस्तानी सेना ने सामान्य मानवता को ताक पर रख बलूचों को अपराधी मानकर बेरहमी से उनके विरुद्ध हिंसा करती है और वह भी राज्य आतंकवाद ही है।