बांग्लादेश : विकास बनाम जेहाद
डॉ. चन्द्र प्रकाश सिंह
बांग्लादेश : विकास बनाम जेहाद
श्रीलंका और बांग्लादेश को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता। श्रीलंका में विद्रोह आर्थिक बदहाली के बाद हुआ था। वहाँ दैनिक प्रयोग की वस्तुओं के भी लाले पड़ गए थे, जबकि बंग्लादेश की विकास दर 5.7%, प्रति व्यक्ति आय 2.3 लाख, बेरोजगारी दर 3%, पाकिस्तान से बड़ी अर्थव्यवस्था, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और जापान से अधिक वृद्धि दर, उसके बाद भी वहाँ ऐसी घटना के घटने के कई पहलू हैं।
वहाँ किसी एक कारण के आधार पर इसे नहीं समझा जा सकता। आरक्षण के कारण यदि यह विद्रोह हुआ तो आरक्षण वापस हो चुका था। अब इतने बड़े आंदोलन का कोई कारण नहीं था। यह तो मात्र एक बहाना था, इसके पीछे जेहादी कट्टरपंथी शक्तियों, विदेशी षड्यंत्र और सेना के विश्वासघात इन तीनों का मिश्रण है।
बांग्लादेश पिछले पंद्रह वर्षों में आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहा था, लेकिन यह बात उन लोगों को अच्छी नहीं लग रही थी जो मजहबी जाहिलियत को ही अपने मजहब का उद्देश्य मानते हैं। जमायते इस्लामी पर प्रतिबंध से वे अंदर-अंदर बौखला गए थे। इधर चीन और अमेरिका दोनों ही बांग्लादेश को भारत के विरुद्ध प्रयोग करने के प्रयास में लगे थे।
बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह के लिए चीन दबाव बना रहा था, लेकिन पिछले वर्ष चीन के दबाव को नकारते हुए शेख हसीना ने भारत के साथ समझौता कर लिया। भारत बांग्लादेश के चटगांव और सिलहट बंदरगाह का पहले से ही प्रयोग कर रहा है। शेख हसीना की भारत से निकटता चीन को रास नहीं आ रही थी, इसलिए वह उनके सरकार को अस्थिर करना चाहता था।
यही हाल अमेरिका का भी था। अमेरिका बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर अधिकार चाहता था, ताकि वह वहाँ अपना सैनिक अड्डा बनाकर इस क्षेत्र में अपना दबादबा बना सके, लेकिन पिछले जून में ही शेख हसीना ने उसके इस प्रस्ताव को नकार दिया था।
चीन और अमेरिका इन दोनों शक्तियों की नजर बांग्लादेश के प्रति टेढ़ी थी। उन्होंने हस्तक के रूप में मजहबी कट्टरपंथियों का प्रयोग कर छात्रों के नाम आंदोलन खड़ा किया, जो छात्र कम और जेहादी अधिक हैं। सेना में भी भितरघात हुआ और उनकी सत्ता को पलट दिया गया। यह घटनाक्रम मजहबी कट्टरपंथ, सेना के विश्वासघात और चीन एवं अमेरिका के षड्यंत्र का सह परिणाम है।
जिसे छात्र आंदोलन कहा जा रहा था, उसका स्वरूप जेहादी आंदोलन के रूप में प्रकट हुआ। प्रधानमंत्री के आवास से लेकर सरकारी सम्पत्तियों की लूटपाट ऐसे हुई जैसे माल-ए-गनीमत की जेहादी विजेता किया करते हैं। हिन्दुओं के घरों पर आक्रमण, मंदिरों में तोड़-फोड़, हिंसा-आगजनी इन सभी का न तो शेख हसीना के तथाकथित तानाशाही से कोई लेना-देना था और न ही आरक्षण से। मूलतः यह यह कोई आंदोलन नहीं है, बल्कि जेहाद के बारूद पर कुछ लोगों द्वारा लगाई गई आग है। यह दुनिया के किसी भी कोने में कहीं भी फैल सकती है जहाँ मजहब मौजूद है।