जयपुर में बांग्लादेशी घुसपैठिए : लापरवाही बड़ी समस्या बन सकती है

जयपुर में बांग्लादेशी घुसपैठिए : लापरवाही बड़ी समस्या बन सकती है

जयपुर में बांग्लादेशी घुसपैठिए : लापरवाही बड़ी समस्या बन सकती हैजयपुर में बांग्लादेशी घुसपैठिए : लापरवाही बड़ी समस्या बन सकती है

जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में पिछले दिनों एक बार फिर अवैध बांग्लादेशियों द्वारा सरकारी सुविधाएँ, यहां तक कि जयपुर विकास प्राधिकरण की ओर से जमीन का पट्टा भी हासिल किए जाने की जानकारी सामने आई। जिन लोगों के मामले सामने आए उनके पास आधार कार्ड से लेकर वोटर आईडी तक सब कुछ था। इस खुलासे ने हमारे सिस्टम की लापरवाही को एक बार फिर उजागर कर दिया, क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। यह कई वर्षों से होता आ रहा है। कई बार ऐसी जानकारियां सामने आ चुकी हैं, जो बताती हैं कि इन अवैध बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं के लिए अपने सरकारी दस्तावेज बनवा लेना कितना आसान काम है।

आइए पहले कुछ ऐसे मामलों पर दृष्टि डालते हैं:

पिछले वर्ष यानी 2024 नवम्बर में जयपुर पुलिस ने 11 बांग्लादेशियों की धरपकड़ की थी। इनसे पूछताछ में भी सामने आया था कि ये फर्जी भारतीय पासपोर्ट, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाकर जयपुर में रह रहे थे। पूछताछ में उन्होंने बांग्लादेशी होने और स्थानीय सहायकों की माध्यम से फर्जी दस्तावेज तैयार करने की बात बताई। इसी तरह जयपुर में ही पश्चिम जिला पुलिस ने एक बांग्लादेशी महिला फरजाना उर्फ अनामिका को गिरफ्तार किया था। आरोपी महिला बांग्लादेश की होने के बाद भी जयपुर में वर्षों से रह रही थी। इसके पास भी कई दस्तावेज थे। वर्ष 2022 में जयपुर के पास कानोता में बसी रोहिंग्या बस्ती में पुलिस ने अब्दुल गफूर नाम के एक रोहिंग्या के परिवार के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया था। यह परिवार 14 वर्षों से अवैध रूप से जयपुर के कानोता में रह रहा था। इस परिवार के अब्दुल गफूर ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पासपोर्ट बनवा लिया था। जांच में दस्तावेज फर्जी पाए जाने पर पासपोर्ट निरस्त कर दिया गया। अब्दुल गफूर अपनी मां, पत्नी और दो बेटियों के साथ कानोता की बगराना बस्ती में रह रहा था। इससे पहले 2021 में जयपुर में ही रह रहे एक रोहिंग्या मोहम्मद सुल्तान का मामला सामने आया था, जो फर्जी दस्तावेज से पासपोर्ट बनवा कर सउदी अरब तक घूम कर आ गया। उसके पास 2014 से 2024 तक की अवधि का पासपोर्ट था और इसी दौरान वह 2019 में आठ महीने तक सउदी अरब जा कर वापस आ गया।

वर्ष 2022 में ही जयपुर में कानोता थाना क्षेत्र में पिछले 20 वर्षों से अवैध रूप से रह रहे एक रोहिंग्या का मामला सामने आया था। अब्दुल रहीम नाम के इस रोहिंग्या ने राशन कार्ड बनवा कर उसके आधार पर ना सिर्फ अन्य दस्तावेज बनवा लिए बल्कि अप्रैल 2021 में कानोता में दो प्लॉट भी खरीद लिए। यह रोहिंग्या कबाड़ी का काम करता था और पुलिस थाने से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर इसने जमीन खरीदी थी। हालांकि जमीन खरीद के बाद ही उसके फर्जी दस्तावेजों का खुलासा हुआ। इसके पास राशन कार्ड, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस व वोटर आईडी यानी जितने भी आवश्यक सरकारी दस्तवोज चाहिए, वे सब मिले थे।

उपरोक्त मामले सिर्फ कुछ उदाहरण हैं, लेकिन इस बात का साफ संकेत देते हैं कि यह सिस्टम की लापरवाही एक बहुत बड़ी समस्या को ना सिर्फ जन्म दे चुकी है, बल्कि गम्भीर भी बना चुकी है।  

पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, 2011 से 2017 के बीच हुए सर्वे में पाया गया कि 837 बांग्लादेशी व रोहिंग्या राज्य में अवैध रूप से रह रहे हैं। इनमें 292 रोहिंग्या व 545 बांग्लादेशी हैं। यह आंकड़ा पुराना है। आज हम अपने आसपास जिस तरह की स्थितियां देख रहे हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि यह संख्या काफी बढ़ चुकी है।

जानकार बताते हैं कि सरकार इनके मतदान पहचान पत्र, आधार, राशनकार्ड व अन्य दस्तावेज निरस्त करने के लिए पत्र तो लिखती है, लेकिन इस पर जिस गम्भीरता से काम होना चाहिए, वह नहीं होता। रोहिंग्या मुस्लिम परिवार यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (यूएनएचआरसी) के प्रमाण पत्र के आधार पर टिके हुए हैं, वहीं बांग्लादेशी बड़ी आसानी से प्रशासन की लापरवाही से वोटर आइडी, राशन कार्ड जैसे पहचान दस्तावेज तैयार करा लेते हैं और इनके आधार पर बरसों तक टिके रहते हैं। 

दस्तावेज तैयार कैसे होते हैं? 

इस पूरे मामले में सबसे बडा प्रश्न यह है कि आखिर इनके सरकारी दस्तावेज बन कैसे जाते हैं? दरअसल इस मामले में सबसे पहली कड़ी प्रशासन ही है। पहले चूंकि राशन कार्ड को पहचान और नागरिकता का दस्तावेज माना जाता था, इसलिए फर्जी राशन कार्ड बनते थे और अब आधार व जन आधार कार्ड के माध्यम से यह काम होता है।

जयपुर में अवैध बांग्लादेशियों की समस्या आज की नहीं, बल्कि कई वर्ष पुरानी है। इन्हें एक रणनीति के अंतर्गत मुस्लिम और कच्ची बस्तियों में बसाया जाता था और अपने वोट बढ़ाने के लिए कांग्रेस, वामपंथी दलों व इनसे जुडे संगठनों के लोग प्रशासन पर दबाव डाल कर इनके राशन कार्ड बनवाते थे। एक बार राशनकार्ड बनने के बाद अन्य दस्तावेज बनना अधिक कठिन नहीं होता था। अब यही काम आधार के माध्यम से हो रहा है। आधार हालांकि एक पारदर्शी और पुख्ता व्यवस्था है, लेकिन तकनीक आधारित इस व्यवस्था में भी कमियां हैं और कुछ ई-मित्र संचालकों ने इन कमियों का लाभ उठा कर फर्जी दस्तावेज तैयार करने को धंधा बना लिया है। पैसा दे कर किसी भी तरह का दस्तावेज तैयार कराया जा सकता है। वोट बढ़ाने के लिए यह काम आज भी किया जा रहा है। अकेले जयपुर की ही बात करें तो परकोटे के बाहर की कॉलोनियों में घरों पर काम करने वाली महिलाएं अधिकतर बांग्लादेशी हैं। पहचान छुपाने के लिए वे स्वयं के हिन्दू नाम रख लेती हैं और स्वयं को पश्चिम बंगाल का बताती हैं, लेकिन वास्तव में इनमें से अधिकतर बांग्लादेशी हैं। इसी तरह जयपुर में ई-रिक्शा चलाने वालों में भी बड़ी संख्या बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की है। वहीं अब लकड़ी और चांदी के कारीगरी करने वालों में भी बांग्लादेशियों की घुसपैठ हो चुकी है। ये काम करने वाले अघिकतर कारीगर बंगाल से आ रहे हैं और हमारे पास यह जानने का कोई माध्यम नहीं है कि वे वास्तव में बंगाल से हैं या बांग्लादेश से।

जागरूक होना आवश्यक है। यह समस्या जिस ढंग से गम्भीर होती जा रही है, उसे देखते हुए सरकार को तो सचेत होने की आवश्यकता है ही, नागरिकों के रूप में जनता को भी जागरूक होना होगा। यदि हम घरेलू कामों, अपने व्यापार या अन्य कामों के लिए ऐसे किसी भी व्यक्ति को बुला रहे हैं तो अपने स्तर पर उसके दस्तावेजों की जांच अवश्य करें। कुछ भी संदिग्ध लगने पर तुरंत पुलिस को सूचित करें।

वहीं सरकार को भी दस्तावेज जारी करने की व्यवस्था को और सख्त तथा पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। ई-मित्र संचालकों की नियमित जांच और निगरानी की जानी चाहिए। किसी भी गड़बड़ी को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए। इन मामलों में किसी भी तरह की लापरवाही भविष्य में बड़ी समस्या बन सकती है।

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