हमें अपने राष्ट्र को युगानुकूल स्वत्व के आधार पर विकसित करना है- सरसंघचालक
हमें अपने राष्ट्र को युगानुकूल स्वत्व के आधार पर विकसित करना है- सरसंघचालक
माजुली, असम। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमें अपने राष्ट्र को युगानुकूल स्वत्व के आधार पर विकसित करना है। सरसंघचालक ने माजुली में गणवेशधारी स्वयंसेवकों के “लुइत सुबनसिरी समावेश” में संबोधित किया।
उन्होंने श्रोताओं से प्रश्न किया कि क्या भारत अपनी कड़ी मेहनत से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बावजूद उसमें “स्व” या स्वत्व को बरकरार रखने में सक्षम था? सरसंघचालक ने बल दिया कि देशभक्ति और आपस में एकता के बिना, लंबे समय तक चलने वाली स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी। संघ की स्थापना का उद्देश्य समाज को राष्ट्रभक्त, संगठित और ओजस्वी स्वाभिमान से परिपूर्ण बनाने की दिशा में जागृत करना है। हमारा “स्व” हमारे समय-परीक्षित पारंपरिक ज्ञान और दुनिया भर के सर्वोत्तम ज्ञान द्वारा समर्थित पीढ़ीगत आवश्यकताओं पर आधारित होना चाहिए। “आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरितासउद्भिदः” अर्थात् हमें अपने सहित पूरे विश्व से सर्वोत्तम ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि विगत शताब्दियों में दुनिया को भौतिकवादी आकांक्षाओं पर आधारित दोषपूर्ण मानकों के कारण विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ा है। हमारा भारतीय मॉडल समाज को सभी पहलुओं में आत्मनिर्भर बनाने का अधिकार देता है। प्राचीन भारत अपने भौगोलिक भूभाग के कारण हिन्दूकुश पर्वत से अराकान तक बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित था; इसलिए हमारे पूर्वजों को आध्यात्मिक, कलात्मक और साथ ही भौतिक रूप से विकास के चरम तक पहुंचने के लिए पर्याप्त शांतिपूर्ण समय दिया गया था। रासायनिक उर्वरकों पर आधारित कृषि विकास की कोई आवश्यकता नहीं थी, जिसका दुष्प्रभाव अंततः लोगों पर पड़ता है।
सरसंघचालक ने शंकरदेव और लचित बोरफुकन आदि जैसे हमारे गौरवशाली प्रतीकों द्वारा दिखाए महान मार्ग का अनुसरण करने की आवश्यकता पर बल दिया। यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि नियमित अभ्यास के माध्यम से, महान गुण आदत बन जाते हैं। संघ शाखाओं की यही पद्धत्ति है। वैश्विक कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध एक सशक्त राष्ट्र बनाने के लिए इस व्यक्तिगत अच्छी आदत को संगठित प्रयास में बदलने की आवश्यकता है। यह संगठित प्रयास एक बड़े परिवार की भाईचारे की भावना से जुड़ा होना चाहिए। महान भारतीय मूल्य हमें “दोनों हाथों से कमाना, लेकिन हजार हाथों से दान करना” सिखाता है। उपनिषद हमें हमारे व्यापक दृष्टिकोण के लिए “संयम” के साथ-साथ ईशावास्यम इदं सर्वम् का संदेश देता है। भारत के बाहर के लोगों ने इन महान मूल्यों को हिन्दुत्व के रूप में मान्यता दी। सरसंघचालक ने कहा कि पृथ्वी पर अन्य समाज धर्मनिरपेक्षता की बात तो जोर-शोर से करते हैं, परंतु भारतवर्ष सदियों से इस पर अमल करता आ रहा है। संघ समाज में कोई अलग समूह बनाकर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वार्थी वृत्तियों को छोड़कर सभी को एक साथ लाकर पूरे समाज को संगठित करके विश्व कल्याण का साधन मात्र बनना चाहता है।
गणवेशधारी स्वयंसेवकों की शारीरिक प्रदर्शन एवं माजुली के स्थानीय दर्शकों की भागीदारी से यह समावेश संपन्न हुआ।