विश्व शिखर पर भारत का, स्वातन्त्र्य आज सरसाया
डॉ. श्रीकांत
विश्व शिखर पर भारत का, स्वातन्त्र्य आज सरसाया
स्वागत है स्वातन्त्र्य दिवस हे!
अमृत-पर्व तुम्हारा।
कितने संघर्षों का प्रतिफल-
जो तुमको था पाया॥
पर, हे खण्डित स्वातन्त्र्य!
तुम्हारी कीमत बहुत चुकाई।
अगणित बलिदानों की गाथा,
अस्मत गयी लुटाई॥१॥
शील-हरण, अपहरण कथानक,
रोमांचित कर देते।
अग्नि-काण्ड, निर्मोह प्राण,
विषपान विवश कर देते॥
नर-कर से नारी की हत्या,
पाप पुण्य कहलाया?
क्रूर काल की कठिन वंचना,
पर-वश पाप कराया॥२॥
बलिदानों के सपनों का क्या,
राज कभी हम जाने?
मिटे देश के लिए हुतात्मा,
क्या उनको पहचाने?
आजाद, भगत, सुखदेव, लाहिड़ी,
रोशन सिंह, सराभा
आदि अनेकों चढ़े फाँसियाँ,
लिये मुक्ति की आभा॥३॥
बड़े स्वप्न थे पृष्ठभूमि में,
पावन बलिदानों के।
कर्ज चुका पाये क्या अब तक,
उनके अहसानों के॥
क्या-क्या स्वप्न छिपे हृदयों में,
बलिदानी वीरों के।
बलिवेदी पर चढ़ने वाले,
मुक्ति-समर-धीरों के॥४॥
कैसा होगा भारत अपना?
जैसा था पुरखों का।
नित्य समर्पित परहित जीवन,
उनके शुद्ध रुखों का॥
निखरेंगे तप-योग-ज्ञान-
अध्यात्म प्राण नर-नारी।
तकनीकी-विज्ञान-शोध नित
पनपेंगे हितकारी॥५॥
धर्मस्थल, गोवंश सुरक्षा,
शुचिता का सम्वर्द्धन।
जैविक कृषि के व्यवहारों से,
भारत माँ का अर्चन॥
भूखा-नंगा-भिक्षुक कोई
भारत में क्यों होगा?
हुआ देश स्वाधीन, आत्म-निर्भर भी
निश्चित होगा॥६॥
किन्तु आज तक बने हुए क्यों
स्वप्न वही नभ-चुम्बी?
मिली न अब तक सुख-वैभव के
तालों की वह कुंजी॥
कहने को स्वाधीन, किन्तु यह
तन्त्र स्वतन्त्र कहाँ है?
वही पराया तन्त्र विदेशी
बैठा अ-चल यहाँ है॥७॥
हुई क्रिया प्रारम्भ बनें अब,
हम सब अंग उसी के।
आया अमृत-पर्व धरा पर,
लेकर ढंग उसी के॥
अभिनव रक्षा क्षेत्र हुआ है,
शिक्षा नीति हमारी।
अर्थ-जगत् वैषम्य मिटाता,
तकनीकी जग न्यारी॥८॥
सीमा पर चैतन्य, सागरों
में भी डेरे डाले।
गिद्ध-दृष्टि भारत पर जिनकी,
चेहरे फीके काले॥
बढ़े प्रगति की ओर पैर,
हम विकसित राष्ट्र बनेंगे।
स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा, कृषि,
उद्योग राह पकड़ेंगे॥९।।
क्षेत्र अनेकों जिनमें भारत,
जग में सबसे आगे।
जड़ें जमाकर बैठे थे जो,
आज छोड़ कर भागे॥
भारत ने भी जग में हिमगिरि-
संस्कृति मान बढ़ाया।
विश्व शिखर पर भारत का
स्वातन्त्र्य आज सरसाया॥१०॥