भूमि पूजन: स्वहित, परहित एवं राष्ट्रहित में पुनर्स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण पहल

भूमि पूजन: स्वहित, परहित एवं राष्ट्रहित में पुनर्स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण पहल

भूमि पूजन: स्वहित, परहित एवं राष्ट्रहित में पुनर्स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण पहलभूमि पूजन: स्वहित, परहित एवं राष्ट्रहित में पुनर्स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण पहल

जयपुर, 5 मार्च। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ग्राम विकास गतिविधि के अंतर्गत जयपुर प्रांत में एक दिवसीय कृषि प्रबोधन कार्यशाला का आयोजन मंगलवार को सेवा सदन सभागार में किया गया। अक्षय कृषि परिवार द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में “भूमि सुपोषण एवं संरक्षण—एक जन अभियान” विषय पर गहन चर्चा हुई। कार्यशाला में जयपुर प्रांत के संबंधित कार्यकर्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए। इस अवसर पर वर्ष 2018 में हैदराबाद में भूमि विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी की संस्तुतियों से भी कार्यकर्ताओं को अवगत कराया गया।

अक्षय परिवार के अखिल भारतीय उपाध्यक्ष डॉ. गजानन डांगे ने कहा कि भूमि माता को जहर मुक्त बनाने के लिए प्रत्येक गांव में भूमि सुपोषण कार्य आवश्यक है। उन्होंने देसी बीजों के संरक्षण और तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर बल देते हुए कहा कि भारत को पुनः तेल का निर्यातक देश बनाने के लिए गांवों में लघु इकाइयां स्थापित करनी होंगी। उन्होंने बताया कि वर्ष 2021 में 33 सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाओं ने मिलकर भूमि सुपोषण एवं संरक्षण हेतु जन-जागरण अभियान चलाया, जिससे यह अभियान आज 35 हजार स्थानों और पाँच लाख व्यक्तियों तक पहुँच चुका है। उन्होंने आग्रह किया कि भूमि पूजन का कार्यक्रम प्रत्येक गांव और घर में प्रतिवर्ष मनाया जाए। आज कृषि योग्य भूमि की उर्वरता घट रही है, जिसके कारण इसका नियमित सुपोषण अत्यंत आवश्यक हो गया है। भूमि को भारतीय संस्कृति में पृथ्वी, धरा, वसुधा, वसुंधरा, भूदेवी, रत्नगर्भा जैसे नामों से सम्मानित किया जाता है। अथर्ववेद में भूमि को माता और मनुष्य को उसकी संतान बताया गया है, जिससे भूमि संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। भूमि पूजन की पवित्र परंपरा को पुनर्स्थापित करने हेतु चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को एक सर्वमान्य अवसर मानते हुए, इस दिन को हर वर्ष भूमि पूजन दिवस के रूप में मनाने की अपील की गई।

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