जैसलमेर के बाद अब भरतपुर के केवलादेव नेशनल पार्क में बर्ड फ्लू की दस्तक
जैसलमेर के बाद अब भरतपुर के केवलादेव नेशनल पार्क में बर्ड फ्लू की दस्तक
भरतपुर। राजस्थान में बर्ड फ्लू का खतरा बढ़ता जा रहा है। जैसलमेर के बाद अब भरतपुर के केवलादेव नेशनल पार्क में भी H5N1 एवियन फ्लू (बर्ड फ्लू) का मामला सामने आया है। हाल ही में मृत पाए गए दो पेंटेड स्टार्क पक्षियों के सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे गए थे, जिनमें से एक में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई है।
भोपाल स्थित राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान (NISHAD) से रिपोर्ट मिलने के बाद प्रशासन ने अलर्ट जारी कर दिया है। केवलादेव पक्षी विहार में इस समय देश-विदेश से हजारों प्रवासी पक्षी आए हुए हैं, जिससे संक्रमण फैलने की आशंका बढ़ गई है। वन विभाग की टीमें हालात पर नजर बनाए हुए हैं और सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं।
100 और पक्षियों के सैंपल भेजे गए जांच के लिए
भरतपुर के डीएफओ मानस सिंह ने बताया कि 100 अन्य पक्षियों के सैंपल भी जांच के लिए भोपाल भेजे गए हैं। अभी तक केवल पेंटेड स्टार्क प्रजाति के बच्चों में ही बर्ड फ्लू के लक्षण मिले हैं। अन्य प्रवासी पक्षियों में फिलहाल कोई लक्षण नजर नहीं आए हैं। सरकार की एडवाइजरी के अंतर्गत मृत पक्षियों को न छूने के निर्देश दिए गए हैं। हर दिन पार्क का दो से तीन बार निरीक्षण किया जा रहा है, ताकि किसी भी संदिग्ध मामले पर तुरंत कार्रवाई हो सके।
भरतपुर से पहले जैसलमेर में भी बर्ड फ्लू का प्रकोप देखने को मिला था। रेगिस्तानी क्षेत्रों में प्रवास करने वाले कुरजां (डेमोसाइल क्रेन) पक्षियों की रहस्यमय तरीके से मौत होने लगी थी। बीते 12 दिनों में 33 कुरजां पक्षियों की मृत्यु हो चुकी है, जिससे वन्यजीव प्रेमियों और स्थानीय ग्रामीणों में चिंता बढ़ गई है। 60-65 किलोमीटर में फैले देगराय-ओरण क्षेत्र में इन पक्षियों का बसेरा था, लेकिन अब ये पक्षी यहां से पलायन कर 40 किलोमीटर दूर बड़ोड़ा गांव के तालाबों में चले गए हैं।
वन्यजीव विशेषज्ञ सुमेर सिंह सांवता का कहना है कि पक्षी बीमारी या फिर इंसानी दखल के कारण अपनी जगह छोड़ते हैं। इस बार बर्ड फ्लू के चलते पूरा क्षेत्र सुनसान हो गया है।
प्रशासन द्वारा गोडावण विचरण क्षेत्र (डेजर्ट नेशनल पार्क – DNP) में मानव एंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, ताकि यह संक्रमण दुर्लभ गोडावण पक्षी (Great Indian Bustard) तक न पहुंचे। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, डेजर्ट नेशनल पार्क में गोडावण के लिए अलग वॉटर पॉइंट बनाए गए हैं, ताकि ये पक्षी किसी संक्रमित क्षेत्र के संपर्क में न आएं।
बर्ड फ्लू क्या है और यह कितना खतरनाक है?
बर्ड फ्लू इन्फ्लूएंजा वायरस से फैलने वाला संक्रमण है, जो मुख्य रूप से पक्षियों में पाया जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में यह जानवरों और इंसानों तक भी फैल सकता है। H5N1 और H7N9 वायरस मानवों के लिए घातक माने जाते हैं। 1997 में हॉन्गकॉन्ग में पहला मानव संक्रमित मामला सामने आया था, जिसमें मृत्यु दर लगभग 60% थी।
क्लीवलैंड क्लिनिक के अनुसार, बर्ड फ्लू विश्व की सबसे घातक बीमारियों में से एक है, जिसका मृत्यु दर 50% से अधिक है।
हाल ही में सामने आया H9N2 वेरिएंट, अभी मानवों में अधिक घातक नहीं है, लेकिन पक्षियों में इसकी मृत्यु दर 65% के लगभग है।
बर्ड फ्लू से बचाव के लिए उठाए गए कदम
1. मृत पक्षियों को न छूने के निर्देश जारी किए गए हैं।
2. संक्रमित क्षेत्रों में सोडियम हाइपोक्लोराइट का छिड़काव किया जा रहा है।
3. वन विभाग और पशुपालन विभाग की टीमें नियमित गश्त कर रही हैं।
4. प्रवासी पक्षियों पर विशेष निगरानी रखी जा रही है।
5. जैसलमेर में गर्मी बढ़ने के साथ संक्रमण कम होने की उम्मीद जताई जा रही है।
भरतपुर और जैसलमेर में बर्ड फ्लू के बढ़ते मामलों ने वन्यजीव प्रेमियों, प्रशासन और वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। प्रवासी पक्षियों पर संक्रमण का प्रभाव सीधे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है।
सरकार और वन विभाग की सतर्कता के बाद भी, यह आवश्यक है कि सामान्य लोग भी सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध मामले की सूचना संबंधित अधिकारियों को तुरंत दें।
2021 में भी फैला था संक्रमण
भरतपुर जिले में इससे पहले वर्ष 2021 में बर्ड फ्लू का प्रकोप देखा गया था, जिसमें एक दर्जन से अधिक पक्षियों की मौत हुई थी। तब केवलादेव उद्यान में इंडियन थिकनी नामक पक्षी में संक्रमण मिला था। कोरोना काल में यह वायरस राज्य के कई भागों में फैला था, जिससे झालावाड़, कोटा और अन्य जिलों में सैकड़ों कौवे मारे गए थे। इसी प्रकार यह पहली बार नहीं है जब राजस्थान या भारत में एवियन इन्फ्लूएंजा का खतरा बढ़ा है। इससे पहले भी यह वायरस कई बार अपना प्रभाव दिखा चुका है।
2021: इस वर्ष देशभर में बर्ड फ्लू के मामलों में वृद्धि हुई थी। राजस्थान के झालावाड़ में सबसे पहले कौवों की मौत हुई, जिसके बाद भरतपुर, कोटा, पाली और अन्य जिलों में भी कई पक्षी मारे गए।
2019: झारखंड और बिहार के कई जिलों में मुर्गियों में बर्ड फ्लू पाया गया था, जिसके कारण बड़ी संख्या में पक्षियों को मारना पड़ा।
2017: बेंगलुरु के एक पोल्ट्री फार्म में एवियन इन्फ्लूएंजा के कारण हजारों मुर्गियों को नष्ट किया गया था।
2006: भारत में पहली बार एवियन इन्फ्लूएंजा का मामला महाराष्ट्र में दर्ज किया गया था, जहां लाखों मुर्गियों को मारना पड़ा था।