राजनीति में घुलता जातिवाद का जहर
मृत्युंजय दीक्षित
राजनीति में घुलता जातिवाद का जहर
लोकसभा चुनावों में पार्टी के सांसदों की संख्या बढ़कर 37 हो जाने से समाजवादी पार्टी विशेष उत्साह में है और जहाँ जहाँ भी उसके सांसद जीते हैं, वहाँ वहाँ पार्टी के कार्यकर्ता न केवल अराजकता का वातावरण बनाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, वरन जातिवाद का जहर भी घोल रहे हैं। दूसरी ओर प्रदेश की योगी सरकार लगातार अपराध और अपराध जगत पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है। कुख्यात माफियाओं व अपराधियों के लगातार एनकाउंटर हो रहे हैं और बुलडोज़र भी चलाये जा रहे हैं। कई जगह अपराधी आत्समर्पण भी कर रहे हैं या फिर अपना काम धंधा बदल रहे हैं। प्रदेश का जन सामान्य योगी सरकार की बुलडोज़र नीति से प्रसन्न है, जबकि विपक्ष लगातार यही आरोप लगा रहा था कि बुलडोज़र से लोगों को डराया जा रहा है या अल्पसंख्यकों को सताया जा रहा है आदि -आदि। जब सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर पर अंतरिम रोक लगाई तो पूरा विपक्ष खुशियाँ मनाने लगा जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माण को अपने आदेश से अलग रखा था। योगी राज्य में बुलडोज़र केवल अतिक्रमण पर ही चलता है, अतः प्रशासन को अपना काम करने में कोई समस्या नहीं आई। आश्चर्यजनक रूप से समाजवादी नेता अपनी जातिवाद की राजनीति को और पैना करने के लिए अपराधियों के पक्ष में खड़े हो रहे हैं। वहीं विगत दिनों हुई कुछ आपराधिक घटनाओं में शामिल लोग समाजवादी पार्टी से सम्बंधित रहे हैं। संभवतः यही कारण है कि समाजवादी नेता अखिलेश यादव सहित अन्य सभी जातिवादी नेता जातिवाद के जहर को और तीखा कर रहे हैं।
अयोध्या से लेकर कन्नौज तक दुष्कर्म की जितनी भी घटनाएं सामने आई हैं, उनमें सपा कनेक्शन मिला है। पहले प्रयागराज में अवैध मदरसे में चल रहा जाली नोट का व्यापार, फिर कौशाम्बी में जाली नोट खपाने वाले सपा के दो नेता अपने दस सहयोगियों के साथ पकड़े गए। स्वाभाविक रूप से आपराधिक घटनाओं में लिप्त पार्टी को बैकफुट पर जाने से बचाने के लिए ही अपराध की वीभत्सता तथा गम्भीरता के स्थान पर अपराधी की जाति बीच में लाई जा रही है।
अगस्त माह के अंत में सुल्तानपुर में डकैती डालने आये गिरोह के सदस्यों का एनकाउंटर हुआ, जिनमें से एक मंगेश यादव के नाम पर समाजवादी नेता यादव समाज की सहानुभूति बटोरने के लिए उसके घर पहुंच गये और उसका महिमामंडन करते हुए कहा कि यह एनकाउंटर नहीं एक हत्या है और अब सपा इस मामले को आगामी विधानसभा सत्र में भी जोर शोर से उठाने जा रही है। समाजवादी नेता आजकल जातिगत आधार पर ही अपराध और अपराधियों का संरक्षण व महिमामंडन कर रहे हैं।
प्रदेश की राजनीति में आज सभी दल अपराधी की जाति देखकर उस पर होने वाली कार्यवाही का तीखा विरोध कर रहे हैं जबकि प्रदेश में 2012 से 2017 तक सपा सरकार के शासनकाल में पुलिस मुठभेड़ में 34 अपराधी मारे गये थे तथापि उनके शासनकाल में अपराध और अपराधियों का जोरदार बोलबाला था। एक समय था कि कोई सपने में भी नहीं सोच पाता था कि प्रदेश को कभी अतीक जैसे माफियाओं से मुक्ति मिलेगी या फिर बड़े सफेदपोश लोग जेल जाएंगे।
पिछली सरकारों के कई एनकाउंटर में तो मजिस्ट्रेट जांच तक नहीं हुई थी। जबकि योगी सरकार में सभी एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट जांच हो रही है, यहां तक कि कुख्यात माफिया मुख्तार अंसारी की जेल में हुई स्वाभाविक मौत की भी जांच हुई।
योगीराज में प्रदेश की कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए साढ़े सात वर्षों में 49 कुख्यात अपराधियों को मुठभेड़ में मार गिराया गया है। विभिन्न आपराधिक मामलों में संलिप्त 872 नशा व हथियार तस्करी अपराधी और 379 साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। साथ ही 3,970 संगठित अपराधी गिरफ्तार हुए हैं। प्रदेश सरकार अवैध नशे के विरुद्ध भी व्यापक अभियान चला रही है, जिसमें सर्वाधिक अभियुक्तों से गांजा बरामद हुआ है व अन्य नशीले पदार्थ भी बरामद हो रहे हैं।
समाजवादी नेता अखिलेश यादव ने एसटीएफ को भी नहीं छोड़ा, उसमें शामिल अधिकारियों की जाति को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर उकेर दिया। वे जिस प्रकार से अपराधियों के पक्ष में जाति की राजनीति कर रहे हैं, वह सभ्य समाज के लिए उचित नहीं है। यह कहना पूरी तरह से गलत है कि यूपी की पुलिस जाति देखकर एनकाउंटर कर रही हैं या फिर अपराधियों को पकड़ रही है। प्रदेश सरकार अपराधियों का जाति और मजहब नहीं देखती। आज प्रदेश की कानून व्यवस्था की प्रशंसा हर कोई कर रहा है। बड़े बड़े उद्योगपति व निवेशक प्रदेश आ रहे हैं और यही बात विपक्षी नेताओं को रास नहीं आ रही है।