मुर्गियां और कसाई
मुर्गियां और कसाई
किसी गांव में एक कसाई रहता था। मुर्गी पालन उसका व्यवसाय था। बाड़े में हजारों मुर्गियां थीं। बाड़े के गेट पर ही वो मुर्गियों को काटकर बेचा करता था। इधर-उधर भागती मुर्गियां उसको देखतीं, तो अपनी साथी मुर्गियों की मौत पर उन्हें दुःख होता… कुछ आक्रोशित भी होतीं…. कुछ डर के मारे कांप जातीं…. कुछ समझदार मुर्गियां बाड़े की बाड़ को फांदकर भाग जातीं।
जो भागतीं, उसको वो कसाई पकड़कर वापस ले आता। दुखी, डरपोक, आक्रोशित मुर्गियां तो उसके लिए कभी कोई समस्या थीं ही नहीं, समस्या थीं भागने वाली मुर्गियां, जो प्रतिदिन दो-चार और भी मुर्गियों को साथ लेकर भाग जाती थीं। दिन-प्रतिदिन कसाई की समस्या बढ़ती ही जा रही थी।
एक दिन उस कसाई ने सम्मोहकों की एक टीम को बुलाया। सम्मोहकों ने उसकी समस्या सुनी और उसका उपाय शुरू किया। सभी मुर्गियों को सम्मोहित करके बेहोश सा कर दिया गया और वे लोग उन को यह समझाने लगे कि देखो, जो कट रही हैं वे मुर्गियां हैं, लेकिन आप चिंता मत करो क्योंकि आप मुर्गी नहीं हो। कुछ को समझाया कि आप तो शेर हो। कुछ को बताया कि आप तो गाय हो। कुछ को बताया कि आप तो ज्ञानी फ़क़ीर हो। कुछ को बताया कि आप तो ताकतवर सांड हो।
जो कटती हैं सिर्फ वे ही मुर्गियां हैं।
…और इस तरह, उनमें सैकड़ों गुट बना दिए।
उपाय बड़ा मजेदार और लाजवाब सा था। अब जब भी कसाई किसी मुर्गी को उठाकर काटता तो बाकी मुर्गियां हंसने लगतीं।
कहती, “देखो बेचारी मुर्गी कट रही है !”
जिसको शेर बताया था, वो सोचती कि कटने दो, मुर्गियों को तो कटना ही है। मेरी तरफ देखेगा तो अपने पंजों से चीर डालूंगा।
हर सांड, शेर, ज्ञानी, गाय सब अपने अपने हिसाब से व्यवहार करने लगे। अब भागने की समस्या से मुक्ति मिल चुकी थी। अब कसाई का काम आराम से चल रहा था।
भारत में भी बहुत सारे कसाई हैं। मुर्गियों को सम्मोहित करके भ्रम में डाल दिया है और रोज़ काट रहे हैं। एक के कटने पर दूसरे अपने-अपने हिसाब से प्रतिक्रिया देते रहते हैं। जो भी कटता है, उसको मुर्गी घोषित कर दिया जाता है। कसाई अपना काम अनवरत, आराम से करते जा रहे हैं। जो समस्या बन रहे हैं अथवा बन सकते हैं, उनको बड़े प्यार से कोई घुट्टी पिलाकर और अलग करके भ्रम में डाल दिया जाता है।