भ्रष्ट कॉलेजियम पर चोट मारने का उचित समय

अजय सेतिया
भ्रष्ट कॉलेजियम पर चोट मारने का उचित समय
दिल्ली उच्च न्यायालय के जज यशवंत वर्मा के घर से 15 करोड़ रुपए की नकदी पकड़ी गई। किसी छोटे से सरकारी कर्मचारी से उसकी जेब से 5 हजार रुपया भी पकड़ा जाए तो निलंबित कर दिया जाता है। लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के जज को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर के भ्रष्टाचार को दबा दिया। आप अनुमान लगाइए कि सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने ऐसा क्यों किया होगा, शायद इसलिए क्योंकि उन्हें पता है कि इस देश का हर जज भ्रष्ट है। लेकिन, यह सही नहीं है कि हर जज भ्रष्ट है। हर जज भ्रष्ट होता तो यह समाचार लीक ही नहीं होता। असल में कॉलेजियम के दो-तीन जज प्रधान न्यायाधीश के इस निर्णय से सहमत नहीं थे, उनके विरोध के बावजूद प्रधान न्यायाधीश ने जस्टिस वर्मा का सिर्फ ट्रांसफर कर दिया, इसीलिए समाचार लीक हुआ।
यह 14 मार्च को होली वाले दिन की घटना है, जस्टिस वर्मा और उनका परिवार दिल्ली में नहीं था। उनके सरकारी आवास में आग लग गई और घर के कर्मचारियों ने फायर ब्रिगेड बुला ली। फायर ब्रिगेड को आग बुझाते समय घर के एक कमरे में अनगिनत नकदी दिखी, तो उन्होंने पुलिस को सूचित किया। पुलिस ने तुरंत बात ऊपर तक पहुंचाई, क्योंकि यह जज का मामला था। गृह मंत्रालय से प्रधानमंत्री और फिर प्रधानमंत्री से प्रधान न्यायाधीश तक बात पहुंची। लेकिन, प्रधान न्यायाधीश 20 मार्च तक सोए रहे। प्रश्न पैदा होता है कि प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना 20 मार्च तक क्यों सोए रहे। 20 मार्च को उन्होंने आनन-फानन में कॉलेजियम की बैठक बुलाई, जिसमें कम से कम दो जजों ने कहा कि 1999 के कॉलेजियम के निर्णय के अनुसार तुरंत जज को छुट्टी पर भेज कर ‘इन हाउस’ जांच बिठाई जाए, लेकिन प्रधान न्यायाधीश ने ऐसा करने की बजाए उनका उसी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया, जहां से ट्रांसफर कराकर उन्हें 2014 में दिल्ली लाया गया था। जस्टिस वर्मा पहले मुलायम सिंह के जमाने में निम्न अदालत में जज बने थे। 2011 में मायावती ने उच्च न्यायालय की कॉलेजियम से उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का जज बनवाया था। मायावती के बारे में सब जानते हैं कि वह किसी का भी काम किस कीमत पर किया करती थीं। अरविंद केजरीवाल की तरह वह भी राज्यसभा की टिकटें बेचा करती थीं। 2014 में सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम ने उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय से दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर किया था, किस की सिफारिश पर? कैसे, तीन ही वर्ष में वह दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर हो गए और 10 वर्ष से यहीं पर टिके थे। निचली अदालत से लेकर इलाहाबद उच्च न्यायालय में दिए गए उनके निर्णय और बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय में दिए गए उनके निर्णय मोटी रकम वसूल कर दिए गए थे। लगभग 10-12 वर्ष पहले दिल्ली के एक नामी वकील का एक महिला के साथ वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वह महिला को जज बनवाने का लालच दे रहा था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस वीडियो पर रोक लगा दी थी, आखिर दिल्ली उच्च न्यायालय के जजों ने किस कीमत पर रोक लगाई होगी। इसी दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जज हुआ करते थे जस्टिस शमित मुखर्जी, जो अपने पक्ष में निर्णय करवाने के लिए पूर्वोत्तर की लड़कियों की मांग किया करते थे। इस मामले में ईडी की शिकायत पर उनकी गिरफ्तारी हुई तो विवश होकर त्यागपत्र दे दिया था। वह भी कॉलेजियम से चुने गए थे। उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में कैसे-कैसे जज हैं और कैसे-कैसे निर्णय होते होंगे, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। उच्च न्यायालयों की बात तो छोड़िए, सर्वोच्च न्यायालय तक जमानत दिलाने के लिए फिक्सरों का अड्डा बन गया है। आतंकवादी को चुनाव प्रचार करने के लिए जमानत मिल जाती है। भ्रष्टाचारी को चुनाव प्रचार के लिए जमानत मिल जाती है। लालू यादव जैसे भ्रष्ट नेता पांच-पांच मुकदमों में सजायाफ्ता होने के बाद भी कपिल सिब्बल जैसे वकीलों के माध्यम से बीमारी के बहाने छूटे घूमते हैं। तो क्या यह बिना फिक्सरों के हो जाता है?
भारत की न्यायपालिका फिक्सरों के शिकंजे में है, वे जजों को खरीदने में सक्षम हैं। जजों पर कोई अंकुश नहीं है। कॉलेजियम ने न्यायपालिका को अपनी बपौती समझ लिया है और सरकार तो क्या संसद भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रही। संसद से पारित राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को कॉलेजियम यह कहकर ठुकरा देता है कि यह न्यापालिका में सरकार का हस्तक्षेप होगा। नरेंद्र मोदी ने 2014 में सरकार बनने के बाद सबसे पहला काम यह किया था कि पहले ही शीत सत्र में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का बिल पास करवा लिया था। 31 अक्टूबर 2014 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिल पर हस्ताक्षर कर के कानून बना दिया था। लेकिन, पांच जजों की बेंच ने बहुमत के आधार पर कानून को असंवैधानिक ठहरा दिया। सिर्फ जस्टिस चेलामेश्वर ने कॉलेजियम सिस्टम का विरोध किया था। जिस कांग्रेस ने बिल पास करवाने का समर्थन किया था, वही कांग्रेस पीछे हट गई, तो मोदी बिल को दुबारा सदन में नहीं लाए। नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वह न खाएंगे, न खाने देंगे। खाने का सबूत उनके सामने है, न्यायपालिका के भ्रष्टाचार पर चोट करने का यही उचित समय है। जजों की नियुक्ति का अधिकार कॉलेजियम से छीनने का यही समय है। जैसे चंदबरदाई ने मोहम्मद गौरी के साथ युद्ध के समय पृथ्वीराज चौहान से कहा था कि चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण, ता ऊपर सुलतान है, चूको मत चौहान।
सर्वोच्च न्यायालय का कॉलेजियम बस उतनी ही दूरी पर है, जितनी दूरी पर मोहम्मद गौरी बैठा था। नरेंद्र मोदी अब चूक गए तो इतिहास उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगा। नरेंद्र मोदी अपना फर्ज निभाएं, वह फिर से बिल सदन में रखें, विपक्ष साथ नहीं देगा तो बेनकाब होगा। क्योंकि, देश की जनता भ्रष्ट न्यायपालिका के विरुद्ध भरी बैठी है।