देश की पहली स्वदेशी मिडगेट पनडुब्बी बनकर तैयार

देश की पहली स्वदेशी मिडगेट पनडुब्बी बनकर तैयार

देश की पहली स्वदेशी मिडगेट पनडुब्बी बनकर तैयार देश की पहली स्वदेशी मिडगेट पनडुब्बी बनकर तैयार

एमडीएल ने ‘एरोवाना’ नामक स्वदेशी बौना पनडुब्बी के प्लेटफॉर्म डिजाइन और पतवार को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह भारत की पहली मिडगेट पनडुब्बी है।

एरोवाना महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि इससे पूर्व एमडीएल वर्ष 1984 से विदेशी डिजाइन वाली पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है। एरोवाना का प्रक्षेपण आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसमें पूर्ण पैमाने पर पारंपरिक पनडुब्बी डिजाइन को 2028 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

 

एरोवाना की संरचना

इसकी लंबाई लगभग 12 मीटर है तथा गति लगभग 2 नॉट है। अर्थात अभी उसकी गति कम है। इसे अभी केवल एक ही व्यक्ति चलाएगा। इसमें लीथियम आयन बैटरी लगी हैं। प्रेशर हल स्टील है साथ ही स्टीयरिंग कंसोल भी है।

 

MDL की 250 वर्षों की यात्रा पूर्ण

मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) ने  15 मई को 250 वर्षों की अपनी यात्रा को पूर्ण किया है। इसकी स्थापना 1774 में की गई थी। एमडीएल 1960 से भारत सरकार के नेतृत्व में एक प्रमुख जहाज निर्माण यार्ड के रूप में विकसित हुआ है। इस महत्वपूर्ण अवसर को कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ मनाया गया। जिनमें से एक ‘एरोवाना’ का निर्माण है।

 

रक्षा सचिव ने जारी किया सिक्का 

भारत के रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने ने एमडीएल को बधाई दी। उन्होंने भारतीय नौसेना की संपत्ति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले देश के सबसे बड़े शिपयार्ड के रूप में एमडीएल की स्थिति पर प्रकाश डाला, साथ ही एमडीएल के समृद्ध इतिहास और विरासत का सम्मान करने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एक स्मारक सिक्का जारी किया गया। यह सिक्का भारत की समुद्री क्षमताओं में एमडीएल के उल्लेखनीय योगदान को दर्शाता है।

 

मिडगेट सबमरीन क्या है?

मिडगेट सबमरीन में एक, दो या कभी-कभी छह या 9 लोग बैठकर किसी मिलिट्री मिशन को पूरा करते हैं। यह पनडुब्बी छोटी होती है और केवल मिशन को पूरा करने के लिए बनाई जाती है। बस कमांडो इसमें बैठकर जाएं और मिशन पूरा करके वापस आ जाएं। मुख्य रूप से इनके द्वारा कोवर्ट ऑपरेशन को पूरा किया जाता है

साथ ही मिडगेट पनडुब्बियों का उपयोग व्यावसायिक भी होता है। जैसे अंडरवॉटर मेंटिनेंस, खोजबीन, आर्कियोलॉजी, साइंटिफिक रिसर्च आदि के लिए।

वर्तमान समय में इनका उपयोग समंदर के अंदर पर्यटन के लिए भी किया जा रहा है।

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