बदल गई अवध नगरी जब विराजे रघुराई (संस्मरण)

बदल गई अवध नगरी जब विराजे रघुराई

बदल गई अवध नगरी जब विराजे रघुराई बदल गई अवध नगरी जब विराजे रघुराई 

  • मन नहीं भरा तो पंक्ति में लग करते रहे दर्शन
  • मनोहारी दृश्य जिसमें ‘रामलला’ के सिवा कोई न था….

जयपुर। ”प्रभु श्री राम का ‘श्यामल’, ‘सौम्य’ रूप कभी नहीं भूल सकता। उनकी छवि आंखों में सदा के लिए बस गई है। इस दुनिया में मुझसे अधिक भाग्यशाली दूसरा कोई नहीं हो सकता।” यह कहना है जयपुर के अश्विनी माहेश्वरी का, जो अयोध्या राम मंदिर में ‘रामलला’ के दर्शन करके लौटे हैं। जब उनके अनुभव कथन जाने तो वे भावुक हो उठे। कहते हैं, मैंने अपने जीवन में कभी नहीं सोचा था कि, मुझे प्रभु श्री राम के अद्भुत श्यामल, सौम्य रूप के दर्शन होंगे। जब अयोध्या पहुंचा तो वहां पर पैर रखते ही एक सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव किया। एक ऐसी ऊर्जा जो मेरे भीतर बहुत सुकून भर रही थी।

अश्विनी बताते हैं कि, मेरे साथ मेरे दोनों बच्चे, पत्नी और मेरी ‘मां’ भी गई थीं। हम सभी 28 जनवरी को अयोध्या जाने वाली विशेष ट्रेन से रवाना हुए थे। रास्ते भर रामधुन, भजन—कीर्तन चलते रहे। जैसे—जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी, अपने रामलला को देखने की इच्छा भी तीव्र होती जा रही थी। पूरा परिवार इस बात से बहुत उत्साही था। जैसे ही हम अयोध्या पहुंचे। आंखें भर आई थी। ये प्रभु राम की ही कृपा है जब मन आल्हादित और भावविभोर था।

अयोध्या पहुंचते ही हम सभी ने सरयू नदी में स्नान किया। इसके बाद हनुमानगढ़ी जाकर दर्शन किए। यहां का एक—एक कण इतिहास के उन क्षणों की भी याद दिला रहा था, जहां पर ‘संघर्ष’, ‘बलिदान’ और फिर भव्य ‘राम मंदिर’ की कहानी थी।

अश्विनी बताते हैं कि, यह अयोध्या वो वाली अयोध्या नहीं थी जो, राम मंदिर प्राण—प्रतिष्ठा से पहले हुआ करती थी। आज इसकी सुंदरता आकर्षित कर रही है। प्रशासन और सरकार के प्रयास को देखते हुए मन में बहुत प्रसन्नता भी हुई। इसके विस्तार और आने—जाने वालों की सुविधाओं पर यहां लगातार काम चल रहा है। एक बात जो सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण लगी वो है यहां रुकने वालों की व्यवस्था। मुझे आश्चर्य हुआ यह देखकर कि, मैं अपने परिवार समेत जिस ‘टेंट सिटी’ में ठहरा हुआ था, वहीं मेरे समेत बड़ी संख्या में अन्य लोग भी ठहरे हुए थे, लेकिन किसी को कोई असुविधा नहीं हुई। उचित सुविधाओं ने सभी को बहुत प्रभावित किया।

अश्विनी ये बताते हुए भावुक हो उठे, ”क्या क्षण था वो जब मैंने रामलला के विग्रह और नव प्रतिष्ठित मूर्ति के दर्शन किए। यह मूर्ति नहीं है, साक्षात रामलला का स्वरूप विराजमान है।”  मेरे पास ऐसा कोई शब्द नहीं हैं जिससे मैं यह बता सकूं कि, मैंने रामलला की मूर्ति देखते ही क्या अनुभव किया। बस मैं इतना ही कह सकता हूं, ”मैं भाग्यशाली हूं।” और वो दृश्य जीवन भर नहीं भूल सकता।

फॉर्मा के व्यवसाय से जुड़े अश्विनी जयपुर के मुरलीपुरा क्षेत्र में रहते हैं। जब से वे अयोध्या से लौटे हैं, उनके मित्र, रिश्तेदार उनसे मिलने पहुंच रहे हैं। अयोध्या और रामलला के दर्शन का बखान करते—करते कई बार अश्विनी की आंखें भर आती हैं।

राजसमंद के मोहनलाल सुथार बताते हैं कि, रामलला के एक बार दर्शन कर लेने के बाद जब मन नहीं भरा तब वे बार—बार पंक्ति में लगकर प्रभु श्री राम के दर्शन करते रहे। वे कहते हैं कि हम सभी परम सौभाग्यशाली हैं कि हमने प्रभु श्री ‘रामलला’ को अपने भव्य मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान होते हुए देखा है। मैं अपने आपको और अधिक भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे अयोध्या जाकर अपने रामलला के दर्शन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मेरे जीवन की अब तक हुई यात्राओं में अयोध्या नगरी की यात्रा ही बहुत सुखद रही है, जहां पर सब कुछ ‘राममय’ था। ट्रेन में बैठने से लेकर उतरने तक राम के अलावा और कोई चर्चा ही नहीं हुई। सभी के मुख पर राम के प्रसंग व रामधुन के भाव थे।

ऐसी पावन धरती जहां राम जन्में थे, उस धरती पर चप्पल व जूते पहनकर कैसे उतरा जा सकता था। इतना साहस न था मेरे भीतर। बार—बार लाखों बलिदानियों की याद और पांच सौ वर्षों की चिर प्रतीक्षा के बाद यह सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ, जब हम यहां पहुंचकर बड़े ही सुखपूर्वक रामलला के सौम्य, सरल व सुंदर रूप के दर्शन कर पाए।

यात्रा के दौरान एक सुंदर बात हुई। जैसे ही हम पावन धरा पहुंचे। ट्रेन रुकते ही बरसात शुरू हो गई और मैं नंगे पैर धरती को वंदन करते हुए सभी के साथ तीर्थपुरम की ओर चल पड़ा। प्रभु की कृपा को शब्दों में कहने का मेरा सामर्थ्य नहीं है। केवल आंखों से बह रहे मेरे आंसू ही कृतज्ञता प्रकट कर सकते हैं।

वे एक रोचक अनुभव साझा करते हैं, ”प्रभु श्री राम के दर्शन के लिए जैसे ही हम मंदिर प्रांगण में पहुंचे। आंखें राम को देखने के लिए तरस उठीं, पंक्ति में खड़े सभी भक्तगण भावुक थे। जैसे ही रामलला के दर्शन हुए आंसू छलक पड़े। प्रभु श्री राम मुस्कुरा रहे थे। उनकी मनमोहक छवि जीवन भर नहीं भूल सकता।” रामलला को साष्टांग प्रणाम करने के बाद मन नहीं भरा तो दुबारा दर्शन के लिए पंक्ति में लग गया। मेरे साथ और भी कार्यकर्ता थे। वे भी दुबारा पंक्ति में लग गए। लेकिन सुरक्षाकर्मी ने हमें रोक लिया। इसका कारण था मेरी जेब में रखा हुआ प्रसाद जो  दर्शन करने के बाद प्राप्त हुआ था। सुरक्षाकर्मी ने बड़े ही विनयपूर्वक कहा कि, ”प्रसाद या तो आप खा लीजिए या इसे बाहर रख दीजिए।” मैंने प्रसाद खाना अधिक उचित समझा। जब दुबारा प्रभु राम के दर्शन हुए तब उनकी आंखें भरी हुई दिखाई दीं। मेरे मुंह से केवल ‘जय श्री राम’ ही निकला। दो बार दर्शन कर लेने के बाद भी मेरा मन नहीं भरा था। प्रभु रामलला के रूप दर्शन की लालसा फिर जाग उठी थी। तब मैं अगले दिन फिर से राम के दर्शन के लिए मंदिर जा पहुंचा। पंक्ति में लगकर सुकून मिला। जैसे ही राम के दर्शन हुए, मैंने अनुभव किया कि उनके ललाट से अलौकिक किरणें निकल रही हैं। वे अपना स्वरूप बदल रहे हों जैसे। तब मुझे गोस्वामी तुलसीदास जी की वो पंक्तियां स्मरण हो उठीं, ‘जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।’ कलियुग में त्रेतायुग सा प्रेम पाकर मैं तो धन्य हो गया हूं। अब भी आंखों में अयोध्या नगरी की वो गलियां, राममय वातावरण और ‘सरयू’ मैया की आरती का वो पावन दृश्य बसा हुआ है।

जयपुर के ही विनोद शर्मा अयोध्या से लौटने पर अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि, ”एक मनोहारी दृश्य जिसमें केवल ‘मैं’ था और मेरे ‘रामलला’। रामलला के अद्भुत दर्शन पाकर धन्य हो गया हूं। ऐसा मनोहारी दृश्य जिसमें केवल मैं था और मेरे ‘रामलला’। मुझे अपने परिवार सहित अयोध्या की इस सुखद यात्रा पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ था। आध्यात्मिकता से पूर्ण व अथाह आनंद एवं सुख देने वाली अयोध्या धाम यात्रा ने भीतर तक खुशी भर दी। जैसे ही हमारी ट्रेन अयोध्या नगरी पहुंची, हरेक की आंखें खुशी से भीगी हुई थीं। बस कुछ ही समय शेष रह गया था, अपने रामलला को देखने में। ऐसी पावन भूमि जहां प्रभु श्री राम की किलकारी गूंजी होगी, वहां पर अपने आपको पाकर मन कई तरह के भावों से भर उठा था। ये मेरे प्रारब्ध के ही पुण्य थे जब परिवार सहित रामलला के सौम्य और मनमोहक छवि के दर्शन हुए। जैसे ही मंदिर प्रांगण में प्रवेश किया मन हर उस मनोभाव को जी रहा था जैसे रामलला पुकार रहे हों। बस एकटक उन्हें देखता रहा। उनका बाल स्वरूप सदैव के लिए आत्मा में बस गया है।

विनोद आगे बताते हैं कि, अयोध्या दर्शन के लिए ‘आस्था स्पेशल ट्रेन’ से हम रवाना हुए थे। यात्रा से पूर्व यात्रा का संदेश, तिथि, समय की जानकारी व कोच बर्थ सहित व्हाट्सएप पर मिल गया था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि, कहीं कोई भी अव्यवस्था नहीं रही। इसके लिए सभी यात्रियों को एक स्थान पर बुलाकर यात्रा के सन्दर्भ में सम्पूर्ण जानकारी टूर मैनेजर द्वारा दी गई थी। मुझे आश्चर्य हुआ कि यात्रा के दौरान सभी व्यवस्थाएं यथा स्वच्छता, पीने के लिए पानी, अल्पाहार व भोजन, रात्रि विश्राम के लिए बिस्तर सभी कुछ बहुत ही सुव्यवस्थित रहा। इतना ही नहीं रेल कर्मचारी मित्रों के व्यवहार ने बहुत प्रभावित किया। सभी के मुस्कुराते हुए चेहरों ने यात्रा को और अधिक आनंददायी बना दिया था। कुशलता पूर्वक अयोध्या धाम पहुंचने के बाद रामलला के भव्य व दिव्य मंदिर सहित अयोध्या धाम में अन्य स्थानों के दर्शन किए। यह सब मन को संतोष देने वाला था। यात्रा वापसी भी सुखद रही यात्रा का उत्साह जोश सभी यात्रियों में स्पष्ट दिखाई दे रहा था

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