एक असंवैधानिक प्रतिबंध को हटने में लगे 5 दशक- हाईकोर्ट

एक असंवैधानिक प्रतिबंध को हटने में लगे 5 दशक- हाईकोर्ट

 

एक असंवैधानिक प्रतिबंध को हटने में लगे 5 दशक- हाईकोर्ट

 एक असंवैधानिक प्रतिबंध को हटने में लगे 5 दशक- हाईकोर्ट

इंदौर, 26 जुलाई। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने गुरुवार को संघ की गतिविधियों में केंद्रीय कर्मचारियों पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग वाली याचिका का निराकरण करते हुए गहरी चिंता व्यक्त की है। न्यायालय ने खेद जताया कि इस मुद्दे का समाधान करने में पांच दशकों का समय लग गया।

हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिबंध को लेकर पूर्व में जारी आदेशों में 9 जुलाई 2024 को जो संशोधन किया गया है, उसकी सूचना केंद्र सरकार के सभी विभाग अपनी वेबसाइट के मुख्य पेज पर प्रमुखता से जारी करें।

न्यायमूर्ति अनिल वर्मा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, “यह अत्यंत दुखद है कि केंद्रीय कर्मचारियों पर संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने में पांच दशक का समय लग गया। यह देरी न केवल कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि न्यायिक प्रणाली की धीमी गति को भी दर्शाता है।”

उन्होंने आगे कहा कि “आरएसएस पर प्रतिबंध से न केवल संघ के सदस्यों के अधिकारों का हनन हो रहा था, बल्कि आम नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन हो रहा था। प्रतिबंध लगाने से पहले न तो कोई सर्वे किया गया और न ही तथ्यों की जांच की गई। यह एकतरफा और असंवैधानिक कदम था।”

इंदौर खंडपीठ की महत्वपूर्ण टिप्पणी

खंडपीठ ने प्रतिबंध को लेकर पूर्व में जारी आदेशों में किए गए संशोधन की सूचना केंद्र के सभी विभागों की वेबसाइट के मुख्य पेज पर प्रमुखता से जारी करने के निर्देश दिए।

खंडपीठ ने कहा कि कई केंद्रीय अधिकारी व कर्मचारी, जिनकी आकांक्षा आरएसएस में शामिल होकर देश सेवा करने की थी, वे इस प्रतिबंध के कारण ऐसा नहीं कर सके।

दुखद है कि प्रतिबंध तब हटाया गया, जब याचिका के माध्यम से यह बात सरकार के ध्यान में लाई गई।

क्या था मामला

केंद्र सरकार के सेवानिवृत्त अधिकारी  इंदौर निवासी पुरुषोत्तम गुप्ता ने एडवोकेट मनीष नायर के माध्यम से मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के समक्ष एक याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि आरएसएस द्वारा की जाने वाली सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों से प्रभावित होकर याचिकाकर्ता एक सक्रिय सदस्य के रूप में आरएसएस में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने वर्ष 1966 से ही केंद्रीय कर्मचारियों (जिनमें सेवानिवृत्त कर्मचारी भी शामिल हैं) के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा रखा है। संघ की गतिविधियों में शामिल होने वाले कर्मचारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती थी, जबकि देश के कई राज्यों में राज्य कर्मचारियों के लिए (जिनमें मप्र भी शामिल है) ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। मप्र ने वर्ष 2006 से ही इस प्रतिबंध को समाप्त कर दिया। RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर लगे प्रतिबंध के कारण केंद्रीय कर्मचारी इस संगठन के माध्यम से देश सेवा नहीं कर पा रहे हैं।

याचिका की सुनवाई के दौरान ही केंद्र सरकार की ओर से एडवोकेट हिमांशु जोशी ने कोर्ट में जानकारी दी थी कि केंद्र ने वर्ष 1966, 1975 और 1980 में पारित आदेशों में संशोधन कर दिया है और केंद्रीय कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में सम्मिलित होने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया गया है। अब केंद्रीय कर्मचारियों, अधिकारियों (जिनमें सेवानिवृत्त कर्मचारी भी शामिल हैं) के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

संघ (कर्मचारियों का संघ) पर प्रतिबंध 1970 के दशक में लगाया गया था, जब सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया था। इस निर्णय के विरोध में संघ के नेताओं ने न्यायालय में याचिका दायर की थी, लेकिन मामला कई वर्षों तक लंबित रहा।

कोर्ट ने अपने निर्णय में केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह संघ के सदस्यों के अधिकारों को तुरंत बहाल करे और उन्हें उनकी पूर्व स्थिति में पुनर्स्थापित करे। न्यायालय ने कहा, “संघ के सदस्यों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करना संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन है। इसे तुरंत सुधारना चाहिए।”

निर्णय के बाद स्वयंसेवकों ने न्यायालय के बाहर उत्सव मनाया। उन्होंने कहा कि न्याय की जीत हुई है। अब वे स्वतंत्र रूप से अपने संगठनात्मक कार्यों को आगे बढ़ा सकेंगे।

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