डीप स्टेट : बहुरूपिया प्रवृति की एक अदृश्य शक्ति

डीप स्टेट : बहुरूपिया प्रवृति की एक अदृश्य शक्ति

डॉ. बालू दान बारहठ

डीप स्टेट : बहुरूपिया प्रवृति की एक अदृश्य शक्तिडीप स्टेट : बहुरूपिया प्रवृति की एक अदृश्य शक्ति

विजयादशमी हमारे लिए त्यौहार के साथ साथ एक तरह से संकल्प दिवस भी होता है। मात्र स्वयंसेवक ही नहीं अपितु संपूर्ण समाज ही इस बात से परिचित है कि इस दिन प. पू. सरसंघचालक जी का उद्बोधन होता है जो विचार परिवार के लिए प्रबोधन का कार्य करता है। समाज, देश, दुनिया के प्रति आकांक्षाओं व आशंकाओं के बारे में वह हमारा अधिकृत दृष्टिपत्र होता है। इस वर्ष के उद्बोधन में सरसंघचालक जी ने राष्ट्र के समक्ष चुनौतियों के संदर्भ में डीप स्टेट शब्द का प्रयोग किया है। हम सभी इसके निहितार्थ से अवगत हैं तदापि विजयादशमी भाषण में संदर्भ आया है तो एक बार समझ व चर्चा अपेक्षित ही है।    

मूलतः डीप स्टेट तुर्की शब्द डेरिन डेवलेट का एक रूप है, जिसका अर्थ विध्वंसक अथवा नकारात्मक शक्ति होता है। इसकी स्पष्ट परिभाषा नहीं होना ही इसकी शक्ति है ताकि आवश्यकता अनुरूप इसे परिवर्तित किया जा सके। यह बहुरूपिया अंब्रेला प्रवृति की एक अदृश्य शक्ति है, जो चुने हुए प्रतिनिधियों तथा वैधानिक संस्थाओं के समानांतर चलने वाली गतिविधि है। जैसे वैधानिक अर्थशास्त्र के साथ साथ ब्लैक मार्केट होता है अथवा किसी क्षेत्र में वैधानिक सत्ता के प्रतिस्थापन में किसी व्यक्ति या समूह का प्रभाव होता है, उसी भांति देश की संवैधानिक सत्ता के प्रतिदृश देश और सरकार विरोधी एजेंडा चलाने वालों को सामूहिक रूप से डीप स्टेट कहा जा सकता है। यह एक ऐसा समूह होता है, जो छद्म तरीके से विशेष हितों या विशेष विचारधारा की रक्षा के लिए शक्ति संचय और शक्ति के प्रयोग का प्रयास करता है। यह देश की बढ़ती प्रगति तथा प्रभाव को रोकने के लिए एक नेक्सस के रूप में कार्य करता है। अनेक बार सरकार की संस्थाओं में कार्यरत शक्तिशाली समूह भी जिनकी सरकार से इतर कोई वैचारिक प्रतिबद्धता होती है, वे सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में बाधा पैदा करते हैं या उन्हें लंबित रखते हैं, वह भी डीप स्टेट का ही टूल होते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि देश में क्रियाशील राष्ट्रविरोधी इको सिस्टम (अर्बन नक्सलवाद) ही डीप स्टेट है।          

बहुधा यह समूह मानवाधिकार, अल्पसंख्यक अधिकार, नारीवाद, पर्यावरण, आत्मनिर्णय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वशासन, स्त्री विमर्श, सामाजिक न्याय जैसी अल्ट्रा डेमोक्रेटिक शब्दावली की आड़ में अपनी गतिविधियां संचालित करते हैं।स्वयंसेवी संगठन, सिविल सोसायटी, मीडिया, नौकरशाह, सेवानिवृत न्यायधीश, साहित्यकार, कलाकार, प्रोफेसर आदि समूह में से कुछ लोग इस नेक्सस का हिस्सा होते हैं। यह समूह किसी वैचारिक कार्यक्रम चाहे वह कॉलेज, विवि स्तर पर कोई विचार गोष्ठी हो, किसी पत्रिका का प्रकाशन हो, साहित्य की रचना हो, कलाकृति हो, नाटक का मंचन हो, जन आकांक्षाओं को भड़काना हो इत्यादि के माध्यम से सक्रिय रहते हैं। कुल मिलाकर इनका उद्देश्य स्थापित व्यवस्था के प्रति असंतोष तथा विरोध को प्रोत्साहन देना होता है एवं इस हेतु इन्हें वैश्विक स्तर पर फंडिंग सहित अन्य सहायता प्राप्त होती है।   

यही कारण है कि विदेशी फंडिंग से संचालित एनजीओ व विदेशी चंदे से जुड़े FCRA कानून में जब भारत सरकार ने संशोधन किया तो इसका विरोध केवल देश में ही नहीं अपितु फोर्ड फाउंडेशन, ग्रीन पीस, एमनेस्टी आदि से भी हुआ। दरअसल भारत के अनेक एनजीओ विदेशी शक्तियों के लिए स्लीपर सेल के रूप में ही कार्य करते हैं।वैसे देखा जाए तो पूरे ‘लेफ्ट लिबरल’ के रूप में भारत में डीप स्टेट की जड़ें शीतयुद्ध के समय से ही हैं। चीन या रूस के लिए जासूसी, उनका एजेंडा चलाने, उनका महिमामंडन करना, हिंसा को गौरवान्वित करना, उनका साहित्य प्रकाशित-प्रसारित करना आदि उसमें शामिल हैं। लेकिन देश की समकालीन सरकार के गठन के पश्चात डीप स्टेट की गतिविधियों में तेजी देखी जा सकती है।आरक्षण को लेकर जगह जगह प्रदर्शन, किसान आंदोलन, खालिस्तानी गतिविधियां, मणिपुर हिंसा, हिजाब आंदोलन, सीएए के विरोध में प्रदर्शन, शाहीन बाग, अग्निवीर योजना का विरोध इत्यादि इसके उदाहरण हैं। दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर भी अनेक देश इसके शिकार हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के समय अमेरिका में अक्सर इसकी चर्चा होती रही है। श्रीलंका में तख्तापलट, जापान में शिंजो आंबे की हत्या, बांग्लादेश में तख्तापलट आदि से समझा जा सकता है कि सरकारों से इतर सरकार के भीतर अंतर्निहित लोकतंत्र विरोधी ये शक्ति संरचनाएं कितनी शक्तिशाली हैं और वैश्विक स्तर पर इनका कितना मजबूत गठजोड़ है।   

वास्तव में देखा जाए तो यह समय बुद्धि बल का है। यह नैरेटिव की लड़ाई है, शस्त्र से अधिक शास्त्र (विचार) शक्तिशाली हथियार है।इसलिए हमें अपने आसपास की एकेडेमिक गतिविधियों, आंदोलनों, प्रदर्शनों के प्रति सचेत रहना चाहिए कि कौन क्या लिख रहा है, क्यों लिख रहा है, क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है। स्पष्ट ही है, मैंने भी अकारण नहीं लिखा है।राष्ट्रप्रेम की प्रत्येक आवाज समर्थ बने, सशक्त बने और सचेत रहे, ऐसी शुभेच्छा।

(सहायक आचार्य, राजनीति विज्ञान विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विवि, उदयपुर)

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