डीप स्टेट का एक चेहरा सोरोस

डीप स्टेट का एक चेहरा सोरोस

विराग गुप्ता 

डीप स्टेट का एक चेहरा सोरोसडीप स्टेट का एक चेहरा सोरोस

अमेरिका समेत कई देशों में सत्ता की दौड़ में मीडिया, पूंजीपतियों और इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका बढ़ती जा रही है। भारत में भी सियासी लाभ के लिए पक्ष-विपक्ष के नेता गंभीर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं। इजरायली सॉफ्टवेयर पेगासस से नेताओं की जासूसी और हिंडनबर्ग रिपोर्ट से अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने पर पहले बड़े विवाद हुए हैं। महाराष्ट्र के चुनाव में क्रिप्टो और बिटकॉइन की बड़ी भूमिका पर भी बवाल हुआ था। ऐसे विवादों को राजनीति से प्रेरित मानकर उन्हें इतिहास की पुस्तकों में दफन कर दिया जाता है। लेकिन अब अदाणी और सोरोस पर विवाद के कारण संसद में गतिरोध बढ़ता जा रहा है।

फोर्ब्स के अनुसार, अदाणी 65 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ 25वें, जबकि सोरोस 7.2 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ दुनिया में 409वें सबसे रईस व्यक्ति हैं। सोरोस की संस्था ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (ओएसएफ) के पास लगभग 23 अरब डॉलर की संपत्ति है, जिससे वह मीडिया, शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शक्तिशाली दखल रखते हैं। भारत से पहले मलेशिया, थाईलैंड, हंगरी, यूक्रेन, ब्रिटेन समेत कई देशों में सोरोस के कारण राजनीतिक और वित्तीय अस्थिरता बढ़ी है। सोरोस का अमेरिका की राजनीति में भी बड़ा दखल है। वह जॉर्ज बुश और ट्रंप के घोर विरोधी रहे हैं। दूसरी ओर उन्होंने बराक ओबामा व हिलेरी क्लिंटन को पूरा सहयोग किया। सोरोस को रूस के पुतिन, चीन के शी जिनपिंग और तुर्किये के एर्दोगन के विरुद्ध भी माना जाता है। फ्रांस के खोजी अखबार मीडिया पार्ट की रिपोर्ट के बाद भाजपा नेताओं ने सोरोस के हस्तक्षेप से जुड़े पांच बड़े मामलों पर कांग्रेस से सफाई मांगी है। पहला, जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई वीके नेहरू की पत्नी फोरी नेहरू हंगरी मूल की थीं, जिनका सोरोस परिवार के साथ गहरा नाता था। वीके नेहरू अमेरिका में भारत के राजदूत थे। भाजपा के अनुसार, नेहरू-गांधी परिवार ने वित्तीय लाभ के लिए भारत के रणनीतिक हितों से समझौता किया। दूसरा, खोजी पत्रकारिता के लिए काम कर रहे ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐंड करप्शन रिपोटिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) को सोरोस से फंडिंग मिलती है। इस संस्था ने अदाणी समूह से जुड़ी अनेक खबरों का खुलासा किया है। तीसरा, भारत के अनेक शैक्षणिक संस्थान, प्रोफेसर और विदेश जाने वाले छात्रों को सोरोस के माध्यम से वित्तीय सहयोग मिलता है। इनमें नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन समेत कई बड़े नाम शामिल हैं। चौथा, ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के माध्यम से भारत में अनेक एनजीओ को वित्तीय सहायता मिल रही है। इनमें से कई संस्थाओं ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में सहयोग किया था। पांचवां, सोनिया गांधी फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर इन एशिया पैसिफिक फाउंडेशन की सह-अध्यक्ष हैं। यह संस्था कश्मीर में शब्बीर-शाह जैसे अलगाववादियों का समर्थन करती है, जिनके ऊपर लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के साथ सांठगांठ का आरोप है।

भाजपा के नेताओं के अनुसार, हंगरी की संसद ने सोरोस के हस्तक्षेप को रोकने के लिए 2018 में स्टॉप सोरोस एक्ट बनाया है। डीप-स्टेट जैसे गंभीर आरोपों को भारत में अमेरिका के राजदूत ने नकारा है। कांग्रेस ने इन सभी आरोपों को बेतुका बताते हुए सत्ता-पक्ष से जुड़े कई लोगों के सोरोस से जुड़ाव के प्रमाण दिए हैं। कांग्रेस ने इंडिया फाउंडेशन, विवेकानंद फाउंडेशन, जर्मन मार्शल फंड और एस्पेन इंस्टीट्यूट के साथ सोरोस के रिश्तों के जांच की मांग की है। कांग्रेस के प्रवक्ता ने दावा किया है कि यदि सोरोस कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं, तो सरकार को उनका भारत में प्रत्यर्पण कराना चाहिए।

स्वतंत्र लोकतंत्र संविधान की आत्मा है, इसलिए चुनावी प्रणाली में विदेशी पैसे और शक्तियों के हस्तक्षेप को रोकने के लिए कई कानून हैं। लेकिन वर्ष 2016 के वित्त अधिनियम में बदलाव से पार्टियों को विदेशी चंदा लेने की छूट मिल गई, जिसका कांग्रेस और भाजपा, दोनों को बड़ा फायदा मिला। उसके बाद चुनावों में सोशल मीडिया और विदेशी डिजिटल कंपनियों की भूमिका बढ़ती जा रही है। इसलिए पार्टियों के चंदे और चुनावों में सोरोस जैसी विदेशी शक्तियों की भूमिका को रोकने के लिए चुनाव आयोग को सख्त कदम उठाने चाहिए। सोरोस विवाद में न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, गार्जियन जैसे बड़े समाचार पत्रों के नाम सामने आ रहे हैं। भारत में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। पूंजीपतियों के प्रभाव से मीडिया को मुक्त रखने के लिए भारत में कई रिपोर्ट बनी हैं, जिन पर अमल करने की आवश्यकता है। सोरोस विवाद के बाद भारत में विदेशी सैटेलाइट इंटरनेट कंपनियों को लाइसेंस देने के बारे में नए तरीके से विचार की आवश्यकता है।

एनजीओं में विदेशी फंडिंग को रोकने के लिए सरकार ने सख्त कानून बनाए हैं। आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने कई एनजीओ के विरुद्ध कार्रवाई भी की है। राजद्रोह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार और देश के विरोध में अंतर होता है। इसी तरह से पार्टी और सरकार में भी कानूनी अंतर होता है। नेताओं या सरकार की आलोचना या विरोध को राष्ट्र की सुरक्षा से जोड़ना गलत हो सकता है। इसलिए विपक्ष, बौद्धिक वर्ग, मीडिया, शिक्षाविदों को संविधान के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकार की आलोचना का अधिकार है। लेकिन भारत की एकता और अखंडता को खंडित करने के लिए हो रहे किसी भी विदेशी हस्तक्षेप और फंडिंग के सभी प्रयासों को असफल करना चाहिए।

अंग्रेजों ने व्यापार की आड़ में भारत पर कब्जा किया था। स्वाधीनता के बाद चीन और पाकिस्तान ने सैन्य शक्ति के दम पर भारत के सामरिक क्षेत्रों में कब्जे का प्रयास किया। कांग्रेस और फिर जनता पार्टी की सरकार के दौरान नेताओं और अफसरों पर अमेरिकी जासूसी संस्था सीआईए और रूसी जासूसी संस्था केजीबी से जुड़ाव के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। इंटरनेट आने के बाद ऑपरेशन प्रिज्म के अंतर्गत नौ बड़ी कंपनियों के माध्यम से सीआईए ने भारत समेत दुनिया के कई देशों में जासूसी का जाल बिछाया था। सीरिया, यूक्रेन और बांग्लादेश जैसे कई देशों में विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप से हो रही घटनाओं से भारत को भी सावधान रहने की आवश्यकता है। भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत मजबूत हैं, जिन्हें सोरोस या कोई अन्य आसानी से कमजोर नहीं कर सकता। सरकार और विपक्ष, दोनों पक्ष के नेता और पार्टियां संविधान के अंतर्गत भारत की सुरक्षा, एकता और अखंडता की शपथ लेते हैं। इसलिए सोरोस विवाद में सभी तरह के आरोपों पर संयुक्त संसदीय समिति से स्वतंत्र जांच के बाद ठोस, कठोर कार्रवाई आवश्यक है, जिससे जनता का नेताओं और लोकतंत्र में भरोसा बना रहे।

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