फेमिनिज्म की अनोखी परिभाषा

डॉ. नीलम महेंद्र
फेमिनिज्म की अनोखी परिभाषा
आजकल सोशल मीडिया पर भगवान श्री राम और सीता माता के विषय में एक वीडियो काफी चर्चा का विषय बना हुआ है, जिसमें श्री राम और सीता माता को साधारण मनुष्य कहा गया और सीता माता को सबसे बड़ी फेमिनिस्ट की संज्ञा दी गई है। तथाकथित बुद्धिजीवी महिला का कहना था कि राम तो एक साधारण मानव थे, उनको ‘भगवान’ गोस्वामी तुलसीदास जी ने बनाया। वाल्मीकि रामायण का संदर्भ देते हुए यह कहा गया कि वाल्मीकि जी ने श्री राम को एक साधारण मनुष्य और सीता माता को एक साधारण महिला ही कहा है। वीडियो में यहाँ तक कहा गया कि सीता का राम से प्रेम विवाह था, वे राम के रूप पर मोहित हो गई थीं। रावण कुरूप था, सुन्दर होता तो सीता रावण से ही विवाह करतीं। बल्कि उन महिला का यह भी कहना था कि सूपर्णखा द्वारा श्रीराम को प्रणय निवेदन भी उचित था। उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त सभी बातें वाल्मीकि रामायण को आधार बताकर कही गई हैं। यह विषय गम्भीर इसलिए हो जाता है कि यह सभी बातें जिन महिला द्वारा कही गई हैं, वो एक ख्याति नाम विश्वविद्यालय की कुलगुरु हैं और ओरछा में छोटी बच्चियों एवं युवतियों को सम्बोधित करते हुए यह सब कह रही थीं। वे युवतियां जो हमारे देश का भविष्य हैं, भावी माताएं हैं, जिनके बारे में नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा था कि तुम मुझे श्रेष्ठ माताएं दो, मैं तुम्हें एक शक्तिशाली राष्ट्र दूंगा।
ऐसे में जो विषय देश की संस्कृति और संवेदनाओं से जुड़ा है, उस पर इतने महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए बोलते समय शब्दों एवं विचारों को सोच समझ कर व्यक्त करना आवश्यक हो जाता है। जिस वाल्मीकि रामायण को आधार बनाकर उपर्युक्त दावे किए गए हैं, उस वाल्मीकि रामायण के अनुसार तो तथाकथित सभी दावे निराधार हैं।
क्योंकि वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि जी ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि परमात्मा साक्षात श्री विष्णु जी ने ही मानव के रूप में रामावतार धारण किया है। युद्धकाण्ड के सर्ग 117 में ब्रह्मा जी स्वयं श्री राम से कह रहे हैं कि भवान् नारायणो देवः श्रीमाश्चक्रायुद्धः प्रभुः।
एक श्रृंगो वराहसत्वं भूत भव्यसपत्नजित् ॥13॥
अर्थात आप चक्र धारण करने वाले सर्व समर्थ श्रीमान भगवान नारायण देव हैं।
अक्षरं ब्रह्य सत्यं च मध्ये चान्ते च राघव।
लोकानां त्वं परो धर्मो विष्वक्सेनश्चतुर्भुजः ॥14॥
अर्थात रघुनंदन! आप अविनाशी पर ब्रहा हैं। सृष्टि के आदि मध्य और अंत में सत्य रूप से विद्यमान हैं। आप ही लोकों के परम धर्म हैं। आप ही चार भुजा धारी श्रीहरि हैं।
इसी प्रकार वाल्मीकि रामायण के आधार पर यह कहा जाना कि सीता माता का श्री राम से प्रेम विवाह हुआ था, वे राम के रूप पर मोहित हो गई थीं, पूर्णतः निराधार है। क्योंकि वाल्मीकि रामायण में सीता स्वयंवर का कोई वर्णन नहीं है। न ही ऐसा कोई वर्णन है कि विवाह से पूर्व श्री राम और सीता माता एक दूसरे को देखते हैं। बल्कि वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऋषि विश्वामित्र ताड़का वध के उपरांत श्री राम और लक्ष्मण को अपने साथ मिथिला ले कर जाते हैं, जहां राजा जनक के द्वारा एक धर्ममय यज्ञ का आयोजन किया जा रहा था। वहां जाकर विश्वमित्र राजा जनक से श्री राम को देवताओं का दिव्य धनुष दिखाने के लिए कहते हैं। तब राजा जनक कहते हैं कि मेरी अयोनिजा कन्या (सीता भूमि से उत्पन्न होने के कारण अयोनिजा कही गई हैं क्योंकि इनका जन्म किसी स्त्री की योनि से नहीं हुआ) सीता के विषय में मैंने यह निश्चय किया है कि जो अपने पराक्रम से इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा देगा, उसी के साथ में अपनी इस कन्या का विवाह करूंगा।
यहास्य धनुषो रामः कुर्यादारोपणम् मुने।
सुतामयोनिजां सीतां ङ्ख्याम् दाशरथेरहम् ॥26॥661। बालकांड।
अर्थात हे मुनि! यदि श्री राम इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा दें, तो मैं अपनी अयोनिजा कन्या सीता को इन दशरथ कुमार के हाथ में दे दूँ।
स्पष्ट है सीता माता का श्री राम से प्रेम विवाह नहीं था, न ही उन्होंने उन्हें पहले देखा था। और जहां तक रावण के कुरूप होने की बात है कि अगर सुंदर होता तो सीता रावण से ही विवाह करतीं, तो इस बात का भी वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट प्रमाण है कि राक्षसराज रावण कुरूप नहीं सुंदर था। सुंदरकांड में जब हनुमानजी लंका में रावण को ढूंढते हुए उसके महल में प्रवेश करते हैं तो उसे सोते हुए देखते हैं। वाल्मीकि जी लिखते हैं,
वृतमाभरणैर्दिव्यैः सुरूप कामरूपिणम्। सवृक्षवनगुल्याठ्यं प्रसुप्तमिव मन्दरम् ॥9॥10 सर्ग॥ सुंदर कांड।
अर्थात हनुमानजी ने वीर राक्षस को देखा, जो दिव्य आभरणों से अलंकृत और सुरूपवान था। वह राक्षस कन्याओं का प्रियतम और राक्षसों को सुख पहुँचाने वाला था। उसे देख कर ऐसा जान पड़ता था मानो वृक्ष, वन और लताओं से सम्पन्न मन्दराचल सो रहा हो। स्पष्ट है कि वाल्मीकि जी के अनुसार रावण रूपवान था न कि कुरूप।
अब बात सूपर्णखा की। कहा जा रहा है कि सूपर्णखा ने अगर श्री राम से प्रणय निवेदन किया तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। आश्चर्य की बात है कि तथाकथित नारीवादी सोच एक ऐसे प्रणय निवेदन का समर्थन कर रही है जो एक ऐसे पुरुष को दिया जा रहा है, जो विवाहित है। और इससे भी बड़ी आश्चर्य की बात यह है कि जब श्री राम विनम्रता पूर्वक इस निवेदन को यह कहते हुए अस्वीकार कर देते हैं कि मैं विवाहित हूँ और यह सुनकर जब सूपर्णखा सीता माता को मारने के लिए आगे आती है तो इस पर तथाकथित फेमिनिस्ट कुछ नहीं बोलते। एक विवाहित महिला का घर उजाड़ कर उसके पति को विवाह का प्रस्ताव देना फेमिनिज्म की अनोखी परिभाषा है।
यह बात सही है कि वाल्मीकि जी की रामायण हमारे इतिहास के प्रमाणिक स्रोत के रूप में देखी जाती है और तुलसीदास कृत रामचरितमानस भक्ति के परम् स्रोत के रुप में धारण की जाती है। लेकिन यह दोनों ही महाकाव्य श्री विष्णु के अवतार हमारे आराध्य प्रभु श्री राम के चरित्र का वर्णन हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक उत्तर से दक्षिण तक श्री राम इस देश की आत्मा में बसे हैं। यहाँ के कण कण में बसे हैं। तुलसीदास जी के शब्दों में सिया राम मथ सब जग जानी। रामायण के असंख्य संस्करण जैसे वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस, आध्यात्म रामायण, कुम्भ रामायण, काकविन रामायण आनंद रामायण, अगस्त्य रामायण, रघुवंशम जैसे तीन सौ से अधिक रामायण प्रभु श्री राम के प्रति भारत में स्नातन ब्रद्धा का प्रमाण है। श्री राम का नाम इतने वर्षों बाद आज भी वैश्विक स्तर पर आध्यात्मिक संतुष्टि का साधन है। शायद इसलिए आज भी लोग एक दूसरे को अभिवादन में राम राम कहते हैं।
(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)