ध्वस्त मंदिर भारत के मन में घाव की तरह रिसते हैं
हृदयनारायण दीक्षित
ध्वस्त मंदिर भारत के मन में घाव की तरह रिसते हैं
भारत के मन में मंदिरों के प्रति प्राचीन काल से ही श्रद्धा भाव है। लेकिन ऐसे सैकड़ों मंदिर मध्यकाल में ध्वस्त किए गए। मंदिर निर्माण की सामग्री से मस्जिदें बनाई गईं। हिन्दू श्रीराम जन्मभूमि मंदिर सहित सभी उपासना स्थलों के प्रति लगाव रखते हैं। ऐसे ध्वस्त मंदिर भारत के मन में घाव की तरह रिसते हैं। उपासना स्थलों के प्रति लोक मानस की श्रद्धा गहन है। मूलभूत प्रश्न है कि मस्जिद बनाने के लिए क्या देश में जगह का अभाव था? भारत में मस्जिदों के बनाए जाने पर कोई रोक नहीं। तो भी अनेक मस्जिदें मंदिरों को तोड़कर ही क्यों बनाई गई हैं? अयोध्या आंदोलन में देश के सभी हिस्सों के लोग सक्रिय थे। यह आंदोलन यूरोप के पुनर्जागरण जैसा था। जन उत्ताप चरम पर था। कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने देश के सभी उपासना स्थलों के लिए ‘प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट 1991‘ पारित किया था। अधिनियम में व्यवस्था है कि अयोध्या छोड़ देश के सारे उपासना स्थल 1947 की यथास्थिति में रहेंगे।
हिन्दुओं से तत्कालीन सरकार की अपेक्षा थी कि वह मंदिर तोड़कर बनाए गए उपासना स्थलों को देखकर भी शांत रहें। मंदिर तोड़कर बनी मस्जिदों को भी स्वीकार करें। हिन्दू मंदिर ध्वंस के राष्ट्रीय अपमान को भी भूल जाएं। वे ढहाए गए उपासना स्थल देखकर भी चुप रहें। राष्ट्रीय स्वाभिमान त्याग दें और मौलिक अधिकारों को भी अतिक्रमित करने वाला उपासना स्थल कानून स्वीकार कर लें। अधिनियम का भाव है कि हिन्दू तोड़े गए मंदिरों और अत्याचारों को भूल जाएं। मंदिर और उपासना का इतिहास 1947 से शुरू करें।
अधिनियम की संवैधानिकता सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। हिन्दू उपासना स्थल ध्वंस करने और उन्हीं स्थानों पर इस्लामी उपासना स्थल बनाने का लक्ष्य दरअसल बहुसंख्यकों को नीचा दिखाना था। तैमूर ने बताया था कि हमलों का उद्देश्य हिन्दुस्तान को झूठी आस्था और बहुदेववाद से मुक्त कराना है। इसके लिए मंदिरों को नष्ट करना आवश्यक है। ऐसा कृत्य किसी एक जगह ही नहीं हुआ। अयोध्या, काशी, मथुरा और सोमनाथ राष्ट्रीय चर्चा में रहते हैं। लेकिन ऐसे अपमानजनक कृत्य सैकड़ों मंदिरों में हुए हैं। हिन्दुओं की अस्मिता आस्था को नष्ट करने के कारण गंभीर हैं। वे हिन्दुओं को बहुदेववादी कहते हैं। वे बहुदेववाद और मूर्ति पूजा समाप्त करने के लिए मंदिर ध्वस्तीकरण करते हैं।
कई हिन्दू उपासना स्थलों को तोड़कर बनी ‘कुव्वत उल इस्लाम‘ मस्जिद के नाम में ही इस्लाम की शक्ति का उल्लेख है। ऐसी सारी घटनाएं हिन्दू मन में अपमान का भाव पैदा करती हैं। हिन्दू मंदिर ध्वंस के अत्याचारों को भूल नहीं सकते। हिन्दू मन सहिष्णु है। लेकिन मंदिर तोड़कों द्वारा राष्ट्र को नीचा दिखाने का प्रयास जारी है। उत्तर प्रदेश के संभल दंगे की जांच कर रही वरिष्ठ अधिकारियों की टीम को वर्षों पुराना बंद पड़ा प्राचीन मंदिर मिला है। ऐसी घटनाएं हिन्दू मन को आहत करती हैं। हिन्दुओं की व्यथा यह है कि मंदिरों के बहाने देश की राष्ट्रीय अस्मिता को अपमानित करने वाले चिन्हित हों। बेशक मंदिर ध्वस्त करने वाले लोग व शासक अब जीवित नहीं हैं। हम उन्हें दण्डित नहीं कर सकते।
हिन्दू जानना चाहते हैं कि मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाने का काम पवित्र क्यों है? हम भारत के लोग अपनी मांग के लिए उचित संस्थाओं को प्रार्थना पत्र भी नहीं दे सकते? तद्विषयक कानून भारत के प्राचीन इतिहास का विरोधी है। राष्ट्रीय अपमान के कारण और गुनहगार तत्वों को जानना देश के प्रत्येक नागरिक का अधिकार है। यह हम सब का राष्ट्रीय कर्तव्य भी है। यह अधिनियम 1947 के पहले की उपासना स्थलों की समूची जानकारी वर्जित करता है। इतिहास जानना हमारा अधिकार है। इतिहास बोध से राष्ट्र शक्तिशाली रहते हैं। इतिहास में जय पराजय का विवरण होता है। जीवंत राष्ट्र इतिहास से सबक लेते हैं। लेकिन यह अधिनियम 1947 के पहले के सांस्कृतिक राष्ट्रभाव की चर्चा सीमित करता है। यह इतिहास के प्रवाह की उपेक्षा है।
भारतीय संविधान में अधिनियम पारण की वैधानिक व्यवस्था के अनुसार विधेयक सदन में रखे जाते हैं। विधेयकों के साथ उद्देश्य और कारण का विवरण भी दिया जाता है कि सरकार विधेयक क्यों लाई? उपासना स्थल विधेयक के पारण में भी सरकार की तरफ से उद्देश्य और कारण बताए गए थे। कहा गया था कि पूजा स्थलों के परिवर्तन के सम्बंध में समय-समय पर उत्पन्न होने वाले विवादों को देखते हुए यह अनुभव किया गया है कि ऐसे परिवर्तनों पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। 1947 को अस्तित्व में रहे उपासना स्थल के सम्बंध में किसी विवाद को समाप्त करने के लिए उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए यह प्रावधान आवश्यक है। अधिनियम में किसी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने की बात महत्वपूर्ण है। अपना धार्मिक क्षेत्र बनाए रखना धर्म और प्रत्येक मजहब, पंथ का अधिकार है। उपासना स्थलों का धार्मिक चरित्र बदलने का काम हिन्दुओं ने कभी नहीं किया। लेकिन विदेशी हमलावरों ने हिंसा के बल पर उपासना स्थलों का चरित्र ही नहीं बदला, उनका ध्वस्तीकरण भी किया।
मंदिर भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अभिव्यक्ति हैं। मंदिरों की अपनी उपयोगिता रही है। अनेक मंदिरों में चिकित्सा और शिक्षा के लिए चिकित्सालय और पाठशालाएं भी थीं। हिन्दुओं ने कभी भी किसी देश पर हमला नहीं किया और न ही कन्वर्जन कराया। लेकिन मध्यकाल के विदेशी हमलावरों ने पूरी सभ्यता को उखाड़ फेंकने का अभियान चलाया था। नोबल पुरस्कृत वी. एस. नायपाल ने भारत के लिए घायल सभ्यता ‘इंडिया दि वूंडेड सिविलाइजेशन‘ शब्द का प्रयोग ठीक ही किया था। हिन्दुओं के उपासना स्थल निराले हैं। मंदिर हिन्दू दर्शन की प्रतिमा हैं। सारी दुनिया में हिन्दू मंदिर हैं। वंदे मातरम राष्ट्रगीत है। यह बंकिम बाबू के उपन्यास ‘आनंद मठ‘ में है। इस पुस्तक में भारत माता के लिए असीम श्रद्धा व्यक्त की गई है और भारत माता की प्रतिमा को मंदिर में विराजमान बताया है-‘तोमारेई प्रतिमा गडि मंदिरे मंदिरे‘। मंदिर असाधारण रूप में सत्य, शिव और सुंदर हैं। मंदिर ध्वंस को लेकर हिन्दू पक्ष ने कोई जोर जबरदस्ती नहीं की है। वे हरेक मामले को लेकर संवैधानिक संस्थाओं के पास जाते रहे हैं। न्यायमूर्तियों ने पूरे विषय को जानने के लिए एएसआई आदि संस्थाओं का सहयोग लिया है। लेकिन पूजा स्थल अधिनियम ने यह संवैधानिक मार्ग भी बंद कर दिया है। हिन्दुओं की भावना को गहराई से समझना चाहिए। मंदिर ध्वस्तीकरण राष्ट्रीय स्वाभिमान को रौंदने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। कोई भी सजग राष्ट्र ऐसे राष्ट्रीय अपमान को कैसे भूल सकता है। कवि और वरिष्ठ साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर ने ‘संस्कृति के चार अध्याय‘ (पृष्ठ 305) में लिखा है, ”देश की सुरक्षा और खुशहाली किसी भी शासन के लिए गौरव का कार्य है। किन्तु मुस्लिम इतिहासकारों ने अधिक प्रशंसा उन सुलतानों और गाजियों की लिखी है जिन्होंने अधिक से अधिक मंदिर तोड़े।” कई इतिहास लेखक भी मंदिर ध्वंस की घटनाओं का उल्लेख नहीं करते। कथित सेकुलर मध्यकाल की हिन्दू उत्पीड़न और मंदिर ध्वंस की कार्यवाही को भूल जाने का उपदेश देते हैं। राष्ट्र को यह जानने का अधिकार है कि इतिहास के बर्बर कालखण्ड में भारतीय राष्ट्रभाव के साथ क्या हुआ? पूरे देश को नीचा दिखाने के आपराधिक कृत्य का प्रतिकार क्या है?