देवनारायण मेला (भाद्रपद शुक्ल सप्तमी)
मरुभूमि के लोकदेवता देवनारायण
देवनारायण मेला (भाद्रपद शुक्ल सप्तमी)
मरुभूमि का इतिहास शौर्य से ओत प्रोत है। यहॉं अनेक ऐसे योद्धा हुए, जिन्होंने अपनी वीरता, बलिदान एवं साहस से इसे तीर्थ बना दिया और जनमानस में लोकदेवता के रूप में पूजनीय बन गए। इन्हीं में एक नाम देवनारायण का है। वे बगड़ावत कुल के नागवंशी गुर्जर थे। उनका जन्म वि.सं. 1300 में हुआ था। इस कुल के पहले प्रतापी राजपुरुष हरिराव थे, जिन्होंने लीलासेवड़ी गाँव में एक नरभक्षी बाघ को अकेले मार गिराया था। उनकी वीरता के कारण गाँव के मुखिया ने अपनी पुत्री लीला का विवाह हरिराव से कर दिया। कुछ समय बाद, लीला ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम बाघराव रखा गया। बाघराव अत्यंत बलशाली और पराक्रमी थे और उनके बारह रानियाँ और चौबीस पुत्र थे, जिन्हें बाघरावत कहा गया। कालांतर में ये बाघरावत बगड़ावत के नाम से प्रसिद्ध हुए।
अजमेर के चौहान नरेश बीसलदेव ने इन बगड़ावतों को ‘गोठा’ की जागीर प्रदान की। यह क्षेत्र खारी नदी के आसपास, भीलवाड़ा जिले के आसीन्द से अजमेर जिले के मसूदा तक फैला हुआ था और ‘गोठा’ के नाम से जाना जाता था। बगड़ावतों में सबसे प्रसिद्ध सवाई भोज थे। सवाई भोज ने उज्जैन के सामंत दूधा खटाणा की पुत्री साढू और कोटपुतली के पदम पोसवाल की पुत्री पद्मा से विवाह किया।
सवाई भोज के समय, राण (भिनाय) के राणा दुर्जनसाल ने विशाल सेना के साथ गोठा पर अचानक आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में सभी बगड़ावत वीरगति को प्राप्त हुए। सवाई भोज की रानी साढू खटाणी, जो गर्भवती थीं, मालासेरी (भीलवाड़ा) के जंगलों में चली गईं। वहीं, माघ शुक्ल सप्तमी (भानु सप्तमी) को देव नारायण जी का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम उदयसिंह था। राणा दुर्जनसाल को जब उनके जन्म की सूचना मिली, तो उसने उन्हें मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन सभी प्रयास विफल रहे। बढ़ते खतरे को देखते हुए, साढू माता अपने पीहर देवास चली गईं।
देवास में कुमार उदयसिंह का लालन-पालन हुआ। थोड़ा बड़े होते ही उन्होंने घुड़सवारी और शस्त्र-संचालन सीखना शुरू कर दिया। वहाँ उन्होंने आयुर्वेद और तंत्र विद्या की शिक्षा भी प्राप्त की। युवावस्था में आते-आते देव नारायण एक कुशल योद्धा और आयुर्वेद व तंत्र-मंत्र के ज्ञाता बन गए। उन्होंने अन्याय और अत्याचार को समाप्त कर धर्म की स्थापना को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। अपने पूर्वजों की हत्या का बदला लेने के लिए, वे बगड़ावतों के अनन्य मित्र छोछू भाट के साथ गोठा आए। रास्ते में, धार के राजा जयसिंह की बीमार पुत्री पीपलदे को उन्होंने अपने आयुर्वेदिक ज्ञान से ठीक कर दिया। वहीं उनका विवाह पीपलदे से हुआ। अपने भाइयों और छोछू भाट की सहायता से उन्होंने गोठा पर अधिकार कर लिया। इसके बाद, बड़ी चतुराई से उन्होंने राणा के साथियों को एक-एक कर हराया और अंत में राणा दुर्जनसाल पर विजय प्राप्त की। राणा को मारकर उन्होंने राण पर अधिकार कर लिया।
देव नारायण जी ने अपने सामर्थ्य से राणा के कुशासन का अंत कर बगड़ावतों की हत्या का दंड दिया। वे एक सिद्ध पुरुष थे और उन्होंने अपनी सिद्धियों का उपयोग जनकल्याण के लिए किया। उनके द्वारा किए गए कार्यों को लोगों ने चमत्कार माना, और इन्हीं चमत्कारों ने उन्हें लोकदेवता के रूप में स्थापित किया।
देवधाम के मेले
देवनारायण जी ने भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को देवमाली गाँव में समाधि ली, जहॉं प्रतिवर्ष विशाल मेला भरता है। देवमाली के अतिरिक्त भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, टोंक तथा अजमेर जिले के अधिकांश गांवों में भगवान देवनारायण के देवरे हैं। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की षष्ठी और सप्तमी को इन स्थानों पर मेले आयोजित होते हैं, जहाँ सभी समाजों के लोग पूजा और मनौतियाँ मांगने आते हैं। देवजी की स्मृति में भरने वाले राजस्थान के प्रमुख देव मेले निम्न हैं-
जोधपुरिया का मेला
टोंक जिले के जोधपुरिया गाँव में हर वर्ष भाद्रपद माह में दो दिवसीय मेला लगता है। मेला भाद्रपद शुक्ल षष्ठी से शुरू होता है और सप्तमी को मुख्य आयोजन होता है। यहाँ भजन कीर्तन, फड़ गायन, और अन्य धार्मिक क्रियाएँ होती हैं। श्रद्धालु नीम की पत्तियों से पूजा करते हैं। जनश्रुति है कि इस विधान के अंतर्गत उन्होंने औषधि के रूप में नीम के महत्व को स्थापित किया। मेले में हर समय भंडारा चलता रहता है। मेले में भारतीय लोक संस्कृति और सामाजिक समरसता के सहज दर्शन होते हैं।
देवमाली का मेला
अजमेर जिले के देवमाली गाँव में देवजी की समाधि और एक मंदिर है। मुस्लिम आक्रमणकारियों से युद्ध में वे यहीं वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए प्रति वर्ष यहॉं भव्य मेला लगता है।
आसीन्द का मेला
भीलवाड़ा-ब्यावर मार्ग पर स्थित आसीन्द में सवाई भोज का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर देवनारायण जी का महत्वपूर्ण उपासना स्थल माना जाता है। आसीन्द में प्रति वर्ष मंदिर के पास भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को मेला लगता है। यहाँ सभी समाजों के लोग शामिल होते हैं और श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं।
इनके अतिरिक्त भगवान देवनारायण का एक मंदिर चित्तौड़ में भी है। यहॉं के राजा राणा सांगा देवजी के अनन्य भक्त थे। चित्तौड़ के देवडूंगरी में स्थित इस मंदिर का निर्माण उन्होंने ही करवाया था।