राजस्थान की अनूठी परंपरा धाड़, पुरुषों के वेश में महिलाएं करती हैं अनुष्ठान
राजस्थान की अनूठी परंपरा धाड़, पुरुषों के वेश में महिलाएं करती हैं अनुष्ठान
जयपुर। राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के आनंदपुरी उपखंड क्षेत्र में धाड़ नामक एक अनोखी और प्राचीन परंपरा चलन में है। इस परंपरा में महिलाएं पुरुषों की वेशभूषा, जैसे धोती-कुर्ता, सिर पर पगड़ी और हाथों में लट्ठ व तलवार लेकर गांवों में घूमती हैं। मान्यता है कि इस अनुष्ठान के करने से क्षेत्र में अच्छी बारिश होती है। यह परंपरा लगभग 100 वर्ष पुरानी है।
धाड़ का अर्थ होता है डकैती, लेकिन इस परंपरा में इसका उद्देश्य डकैती डालना नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक कार्रवाई करना होता है। महिलाएं इस परंपरा के माध्यम से भगवान से अच्छी बारिश की प्रार्थना करती हैं ताकि सूखा न पड़े और फसल अच्छी हो। इस परंपरा का पालन करते समय पुरुषों का सामने आना अपशकुन माना जाता है। इसलिए, इस दौरान पुरुष घरों के अंदर रहते हैं या अन्य स्थानों पर चले जाते हैं। महिलाएं गांव से पांच किलोमीटर दूर तक जाकर धाड़ निकालती हैं। लोगों को विश्वास है कि महिलाओं की प्रार्थना का असर होता है और बारिश होती है।
एक घटना में, इस वर्ष जैसे ही महिलाओं ने टामटिया गांव से छाजा तक धाड़ डाली, उसी समय अचानक मौसम बदल गया और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। इससे लोगों का विश्वास एक बार फिर दृढ़ हो गया।
इस परम्परा की शुरुआत कैसे हुई, इस बारे में ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन माना जाता है कि यह प्राकृतिक आपदाओं और सूखे से बचाव के लिए स्थानीय समुदाय द्वारा शुरू की गई थी।
राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही खेती पर आधारित जीवन शैली रही है और सूखा यहां की एक प्रमुख समस्या। शायद इसी कारण लोगों ने इस अनुष्ठान को अपनाया, जो धीरे-धीरे एक परंपरा के रूप में सांस्कृतिक अनुष्ठान के रूप में विकसित हो गया, जिसे आज भी निभाया जा रहा है।
इस परंपरा के पीछे लोगों का अटूट विश्वास है कि यदि महिलाएं सामूहिक रूप से भगवान से बारिश की प्रार्थना करेंगी और प्रतीकात्मक रूप से धाड़ (डकैती) डालेंगी, तो उनकी प्रार्थनाएं स्वीकार की जाएंगी और अच्छी बारिश होगी। इसीलिए इसे पूरी श्रद्धा के साथ निभाया जाता है।
अन्य स्थानों पर भी मनाई जाती है धाड़ परम्परा
धाड़ की परंपरा बांसवाड़ा जिले के अतिरिक्त राजस्थान के अन्य जनजातीय और ग्रामीण क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है। इनमें आंशिक रूप से डूंगरपुर और प्रतापगढ़ जैसे जिले शामिल हैं, जहां की भौगोलिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि बांसवाड़ा से मिलती-जुलती है। इन क्षेत्रों में भी महिलाएं पुरुषों के वेश में लट्ठ और तलवारें लेकर गांवों में घूमती हैं और बारिश की कामना करती हैं। हालांकि, यह परंपरा बांसवाड़ा जिले में ही सबसे अधिक प्रचलित और प्रसिद्ध है, साथ ही इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण भाग है।