मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर
रुचि श्रीमाली
मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर
मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश होता है जो अपना साधारण अर्थ छोड़ कर एक अन्य विशिष्ट अर्थ प्रकट करता है। मुहावरे का प्रयोग वाक्य के लिंग, वचन, काल आदि के अनुसार बदल जाता है। यह वाक्य को प्रभावशाली बना देता है। मुहावरे का प्रयोग स्वतंत्र रूप से नहीं किया जा सकता है। मुहावरे का अंत प्रायः “ना” के साथ होता है, उदाहरण – आँखों का तारा होना, नौ दो ग्यारह होना आदि। ये वाक्य के अंदर ही कहीं प्रयुक्त होते हैं।
लोकोक्ति दो शब्दों से मिल कर बना है – लोक + उक्ति। लोगों का कथन। समाज में लोगों का अपने अनुभव द्वारा कहा गया कथन। इसे ‘कहावत’ भी कहा जाता है। यह अपने आप में पूर्ण वाक्य होता है। लोकोक्ति का प्रयोग वाक्य के लिंग, वचन, काल आदि के अनुसार नहीं बदलती है। यह किसी कही गई बात की सहमति या खंडन करता है। लोकोक्ति का प्रयोग स्वतंत्र रूप में होता है। लोकोक्ति का अंत किसी भी अक्षर या शब्द से हो सकता है, उदाहरण – अधजल गगरी छलकत जाए, जंगल में मोर नाचा किसने देखा आदि। ये वाक्य के अंत में अलग से जोड़ कर प्रयोग की जाती है।
इन दोनों का प्रयोग करते समय, उसके पर्यायवाची या सामानांतर शब्दों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
कुछ उदाहरण:
मुहावरे –
1. आँखें चुराना – शर्म के कारण सामने न आना
उदा – जब से रमेश को चोरी में पकड़ा गया है, वह अपनों से आंखें चुराता फिरता है।
2. आकाश-पाताल का अंतर होना – बहुत अधिक अंतर होना।
उदा – एक ही साथ आजादी मिलने पर भी भारत और पाकिस्तान की आर्थिक प्रगति में आकाश-पाताल का अंतर है।
3. आँखों पर परदा पड़ना – भ्रम में रहना
उदा – राकेश को सभी समझाते रहते हैं लेकिन उसकी आँखों पर तो परदा पड़ा हुआ है।
लोकोक्ति –
1. अन्त भला तो सब भला: परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ अच्छा माना जाता है।
उदा – रामलाल ने अपनी पुत्री को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया अब वृद्ध अवस्था में उसकी पुत्री ने उसकी देखभाल की इसे कहते हैं अंत भले का भला।
2. अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे : मूर्खों को सदुपदेश देना या उनके लिए शुभ कार्य करना व्यर्थ है।
उदा – अध्यापक विद्यालय में भाषण दे रहे थे और छात्र अपनी बातों में मस्त थे। इसे कहते हैं अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे।
3. अंधों में काना राजा : मूर्खों या अज्ञानियों में अलप ज्ञानी लोगों का भी बहुत आदर होता है।
उदा – कंपनी में किसी को कुछ नहीं आता है, ऐसे में रोहित जैसा व्यक्ति जिसे मुश्किल से १-२ काम ठीक से आते हैं, वो भी अध्यक्ष बन गया। इसे कहते हैं अंधों में काना राजा।