डिजिटल अर्थव्यवस्था: स्थिरता और सशक्तिकरण का नया अध्याय
डॉ. अमित वर्मा
डिजिटल अर्थव्यवस्था: स्थिरता और सशक्तिकरण का नया अध्याय
भारत की अर्थव्यवस्था 2024 में एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहाँ डिजिटलीकरण और आर्थिक स्थिरता के बीच परस्पर संबंध स्पष्ट रूप से उभर रहा है। डिजिटल प्रौद्योगिकी ने भारत के आर्थिक ढांचे को पुनः परिभाषित किया है। यह न केवल आर्थिक प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाने में सहायक है, बल्कि वित्तीय समावेशन को भी नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आर्थिक स्थिरता का अर्थ है, एक ऐसा आर्थिक ढांचा जिसमें आर्थिक विकास संतुलित और सतत हो। इसमें मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, और आय असमानता को नियंत्रित करने के साथ-साथ आर्थिक नीतियों को दीर्घकालिक लक्ष्यों के साथ समन्वित करना शामिल है।
भारत में आर्थिक स्थिरता का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। जहाँ एक तरफ डिजिटलीकरण ने अवसरों को बढ़ाया है, वहीं दूसरी ओर वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और घरेलू चुनौतियों ने इसे एक कठिन कार्य बना दिया है। भारत की अर्थव्यवस्था ने पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल तकनीकों के तेजी से अपनाने के कारण उल्लेखनीय बदलाव देखे हैं। डिजिटलीकरण और आर्थिक स्थिरता के बीच परस्पर संबंध ने देश की वित्तीय प्रणाली को बदलने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डिजिटलीकरण का अर्थ केवल डिजिटल तकनीकों को अपनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा परिवर्तक है जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक पारदर्शी, कुशल और समावेशी बनाया है। डिजिटल भुगतान प्रणाली, जैसे कि यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस), भारत के डिजिटलीकरण अभियान की सफलता का प्रमाण है।
2024 में भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में एक नया अध्याय जुड़ा, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रोत्साहित की गई UPI (यूनिफाइड पेमेंट्सइंटरफेस) और डिजिटल भुगतान योजनाओं ने देशको डिजिटल साक्षरता एवं पारदर्शिता की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। इन योजनाओं ने न केवल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है, बल्कि भारत के आर्थिक ढांचे को भी अधिक आधुनिक और प्रभावी बनाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में डिजिटल इंडिया मिशन की शुरुआत की, जिसमें डिजिटल भुगतान को एक केंद्रीय भूमिका दी गई। इस अभियान का उद्देश्य था कि प्रत्येक नागरिक को डिजिटल सेवाओं का लाभ मिल सके। UPI जैसी पहल के माध्यम से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कैशलेस अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित किया गया। प्रधानमंत्री मोदी की योजनाओं ने महिलाओं को सशक्त बनाने में भी अहम भूमिका निभाई। जनधन खाते और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे महिलाओं के खातों में पहुंचाया गया। इससे न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई, बल्कि उनकी डिजिटल साक्षरता भी बढ़ी। डिजिटल भुगतान प्रणाली ने छोटे व्यापारियों और MSME (माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज) को औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल करने का काम किया। QR कोड और ऑनलाइन पेमेंट गेटवे के माध्यम से व्यापारियों ने अपना ग्राहक आधार बढ़ाया और अधिक पारदर्शी तरीके से व्यापार किया। आधार पेमेंट सिस्टम (AePS) और मोबाइल नंबर आधारित भुगतान ने ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में डिजिटल पेमेंट को प्रोत्साहन दिया। इससे उन क्षेत्रों में भी डिजिटल वित्तीय सेवाएं पहुंच सकीं, जहां बैंकों की पहुंच सीमित थी। प्रधानमंत्री मोदी की डिजिटल योजनाओं में रुपे कार्ड (RuPay card) और e-RUPI वाउचर का योगदान भी महत्वपूर्ण है। e-RUPI वाउचर ने लक्षित योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए लाभार्थियों तक सीधी सहायता पहुंचाई। इससे भ्रष्टाचार कम हुआ और सरकारी योजनाओं का प्रभाव बढ़ा।
भारत में डिजिटलीकरण की शुरुआत 1990 के आर्थिक सुधारों के बाद हुई, लेकिन 2016 के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम और नोटबंदी के बाद यह प्रक्रिया तेज हो गई। यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), आधार-आधारित सेवाएँ, और भारत नेट जैसी परियोजनाओं ने डिजिटलीकरण को ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों तक पहुँचाने में सहायता की है। जुलाई 2024 तक, भारत में कुल UPI लेनदेन मूल्य लगभग ₹20.64 ट्रिलियन है, जो पिछले वर्षों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है, औसत दैनिक लेनदेन मूल्य लगभग ₹66,590 करोड़ तक पहुंच गया है, जो इस बात का प्रमाण है कि डिजिटल भुगतान ने भारत को नकदी आधारित अर्थव्यवस्था से डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
फिनटेक क्षेत्र ने भारत में डिजिटलीकरण को मजबूती प्रदान की है। ये कंपनियां न केवल ऋण प्रदान करने में सहायता करती हैं, बल्कि वित्तीय समावेशन को भी बढ़ावा देती हैं। उदाहरण के लिए, क्रेडिट स्कोर आधारित लोन वितरण और डिजिटल बचत खाते खोलने की प्रक्रिया ने छोटे व्यवसायों और ग्रामीण उद्यमियों को नई आर्थिक संभावनाओं के द्वार खोलने में सहायता की है।आर्थिक स्थिरता का अर्थ ऐसी स्थिति से है, जिसमें देश की अर्थव्यवस्था संतुलित विकास की ओर अग्रसर हो और वित्तीय प्रणाली स्थिर व टिकाऊ हो। डिजिटलीकरण ने इस दिशा में कई सकारात्मक प्रभाव डाले हैं। बैंकिंग सेवाओं की डिजिटल उपलब्धता ने न केवल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को भी सशक्त किया है।
डिजिटलीकरण ने सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित की है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के माध्यम से सब्सिडी और अन्य लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में स्थानांतरित किए जा रहे हैं। इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त हुई है और भ्रष्टाचार में कमी आई है। हालांकि, डिजिटलीकरण ने आर्थिक स्थिति में कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं, लेकिन इसके साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। डिजिटलीकरण के बावजूद, महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याएँ अभी भी गंभीर बनी हुई हैं। डिजिटल अर्थव्यवस्था के कारण पारंपरिक नौकरियों में कमी देखी गई है। इसके साथ ही, नई तकनीकों को अपनाने के लिए कौशल विकास की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।
डिजिटल विभाजन का अर्थ है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल तकनीकों का समानरूप से उपयोग नहीं हो पा रहा है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी और डिजिटल साक्षरता की समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ती निर्भरता ने साइबर सुरक्षा के खतरे को भी बढ़ा दिया है। फिशिंग, डेटा चोरी, और ऑनलाइन धोखाधड़ी जैसी घटनाएँ डिजिटलीकरण के दुष्परिणाम हैं। डिजिटलीकरण और आर्थिक स्थिरता के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं। डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक कौशल विकसित करना अनिवार्य है। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर कौशल विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि अधिक से अधिक लोग डिजिटल तकनीकों का लाभ उठा सकें।
डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना और डिजिटल उपकरणों की उपलब्धता बढ़ाना आवश्यक है। साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए नीतियों और प्रौद्योगिकियों में सुधार करना होगा। साथ ही, लोगों को ऑनलाइन सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूक करना होगा। डिजिटलीकरण को पर्यावरणीय स्थिरता के साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है। डिजिटल उपकरणों और डेटा केंद्रों के कारण ऊर्जा की खपत बढ़ रही है। इसके लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाना और ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाना आवश्यक है।
डिजिटलीकरण और आर्थिक स्थिरता के बीच तालमेल स्थापित करना भारत के आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य है। डिजिटल तकनीकों ने न केवल आर्थिक विकास को तेज किया है बल्कि वित्तीय समावेशन, पारदर्शिता और सरकारी योजनाओं की दक्षता को भी बढ़ावा दिया है। हालांकि, चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। कौशल विकास, डिजिटल साक्षरता और साइबर सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करके भारत न केवल एक डिजिटल अर्थव्यवस्था के रूप में उभरेगा बल्कि आर्थिक स्थिरता के लिए एक मजबूत आधार भी स्थापित करेगा। इससे न केवल भारत की अर्थव्यवस्था टिकाऊ बनेगी बल्कि यह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी अग्रणी भूमिका निभाएगी।