सामाजिक समरसता एवं राष्ट्रीय विचारों के प्रखर पुञ्ज डॉक्टर द्वय
कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
सामाजिक समरसता एवं राष्ट्रीय विचारों के प्रखर पुञ्ज डॉक्टर द्वय
भारत भूमि ने अपनी कोख से समय-समय पर ऐसे – ऐसे रत्न उत्पन्न किए हैं जिन्होंने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से समाज जीवन में एक गहरी अमिट छाप छोड़ी है। रत्नगर्भा भारत माता के ऐसे ही दो महान सपूत – एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक, प्रथम सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और दूसरे – संविधान निर्माण की प्रारुप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर हैं। एक को भारतीय समाज आदर एवं श्रध्दा के साथ डॉक्टर जी के रूप में स्मरण करता है तो दूजे को बाबासाहब के रूप में। ये महापुरुष द्वय सामाजिक समरसता एवं राष्ट्रीय विचारों के ऐसे प्रखर पुञ्ज हैं जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। डॉक्टर जी जहां चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को तदनुसार 1 अप्रैल 1889 को जन्मे वहीं बाबासाहेब अम्बेडकर का जन्म 14अप्रैल 1891 को हुआ। अपने कार्यों एवं विचारों से क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने वाले इन दोनों महापुरुषों ने समाज जीवन के समक्ष अनेकानेक आदर्श सौंपे हैं।
यद्यपि डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ.अम्बेडकर के कार्य क्षेत्र अलग – अलग रहे हैं। किन्तु दोनों के विचारों एवं कार्यों में समानता दिखती है। जन्मजात राष्ट्रभक्त डॉक्टर जी ‘अखण्ड भारत’ के लिए कृतसंकल्पित थे । स्वतंत्रता आंदोलन के समय जब वे कांग्रेस में थे तो उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।कारावास की सज़ा भुगतनी पड़ी। आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध भाषण देते हुए वर्ष 1921 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और एक वर्ष के कारावास की सज़ा दी गई। इसके पूर्व सन् 1917 में गांधी जी द्वारा चलाए गए ‘सत्याग्रह आन्दोलन’ दौरान भी उन्हें ‘राज्य समिति के सदस्य’ के रूप में क्रान्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने के चलते जेल जाना पड़ा था। आगे चलकर जब उन्होंने विजयादशमी की तिथि को सन् 1925 में संघ की स्थापना की। उस समय वे हिन्दू समाज को संगठित कर राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए तैयार कर रहे थे। उन्होंने घोषणा की थी “हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है, संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है।”
उसी समय संघ की शाखा में सभी स्वयंसेवक यह प्रतिज्ञा लेते थे कि —“मैं अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए तन–मन – धन पूर्वक आजन्म और प्रामाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प लेता हूं।”
इस प्रकार डॉक्टर जी अखण्ड भारत की संकल्पना को लेकर तपस्वी स्वयंसेवकों को तैयार कर समाज को संगठित कर रहे थे। समाज के विविध क्षेत्रों में कार्य कर रहे थे। इसी प्रकार अखंड भारत को लेकर डॉ.अम्बेडकर के भी विचार सुस्पष्ट थे। वे किसी भी स्थिति में भारत विभाजन के पक्षधर नहीं थे। पाकिस्तान एंड पार्टिशन ऑफ इंडिया पुस्तक में उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों को लेकर सविस्तार लिखा है। मुस्लिम मानसिकता और इस्लामिक ब्रदरहुड पर कटुसत्य उद्धाटित किया है।साथ ही विभाजन को लेकर उन्होंने जहां – जिन्ना को लताड़ा वहीं विभाजन पर कांग्रेस सहित गांधी और नेहरू को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने भारत विभाजन के प्रस्ताव को स्वीकार करने को स्पष्ट रूप से कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टिकरण बताया था। डॉ. अम्बेडकर ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर तीखा प्रहार किया था। उन्होंने पाकिस्तान बन जाने के बाद जनसंख्या की अदला बदली को लेकर स्पष्ट रूप से कहा था —
“प्रत्येक हिन्दू के मन में यह प्रश्न उठ रहा था कि पाकिस्तान बनने के बाद हिन्दुस्थान से साम्प्रदायिकता का मामला हटेगा या नहीं, यह एक जायज प्रश्न था और इस पर विचार किया जाना जरूरी था। यह भी स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के बन जाने से हिंदुस्थान साम्प्रदायिक प्रश्न से मुक्त नहीं हो पाया।पाकिस्तान की सीमाओं की पुनर्रचना कर भले ही इसे सजातीय राज्य बना दिया गया हो लेकिन भारत को तो एक संयुक्त राज्य ही बना रहना चाहिए। हिंदुस्थान में मुसलमान सभी जगह बिखरे हुए हैं, इसलिए वे ज्यादातर कस्बों में एकत्रित होते हैं। इसलिए इनकी सीमाओं की पुनर्रचना और सजातीयता के आधार पर निर्धारण सरल नहीं है। हिंदुस्थान को सजातीय बनाने का एक ही रास्ता है कि जनसंख्या की अदला-बदली सुनिश्चित हो, जब तक यह नहीं किया जाता तब तक यह स्वीकारना पड़ेगा कि पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी, बहुसंख्यक समस्या बनी रहेगी। हिंदुस्थान में अल्पसंख्यक पहले की तरह ही बचे रहेंगें और हिंदुस्थान की राजनीति में हमेशा बाधाएं पैदा करते रहेंगे।” (पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया संस्करण 1945, थाकेर एंड क. पृष्ठ-104)
डॉक्टर हेडगेवार और डॉ. अम्बेडकर दोनों आजीवन सामाजिक समरसता को मूर्तरूप देने में लगे रहे। डॉक्टर जी की उसी संकल्पना का सुफल है सामाजिक समरसता का उत्कृष्ट उदाहरण संघ में सर्वत्र दिखता है। संघ में कभी भी किसी भी स्वयंसेवक से जाति- धर्म नहीं पूछा जाता है। संघ का स्वयंसेवक केवल स्वयंसेवक होता है। सभी एक पंक्ति में एक साथ बैठकर भोजन करते हैं – साथ रहते हैं और संघ कार्य में जुटे रहते हैं। इसी सम्बन्ध में 1 मार्च 2024 को डॉक्टर जी की जीवनी ‘मैन ऑफ द मिलेनिया: डॉ. हेडगेवार’ के विमोचन के अवसर पर संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने अपने उद्बोधन के दौरान कहा — “संघ ने पहले दिन से जाति, अस्पृश्यता के बारे में कभी सोचा तक नहीं। इतना ही नहीं, डॉक्टर हेडगेवार जी ने सामाजिक समरसता के लिए डॉक्टर बाबा साहब अंबेडकर के साथ पुणे में चर्चा-संवाद किया। बाद में बाबासाहब संघ के कार्यक्रम में आए। साळुके जी ने उस बातचीत को अपनी डायरी में रिकॉर्ड किया है। उस पर पुस्तक भी छपी है।”
प्रायः विभाजनकारी कलुषित मानसिकता के लोग संघ के विषय में अनर्गल प्रलाप करते रहते हैं।किन्तु संघ वीतरागी भाव से राष्ट्रोत्थान में लगा रहता है। संघ के स्वयंसेवकों द्वारा प्रतिदिन गाए जाने वाले एकात्मता स्त्रोत में भी महापुरुषों के पुण्यस्मरण में “ठक्करो भीमरावश्च फुले नारायणो गुरुः” के रूप में बाबा साहब डॉ.अम्बेडकर का स्मरण किया जाता है। यह अपने आप में कलुषित मानसिकता को ध्वस्त करने के लिए पर्याप्त है। जो – ‘संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ; के इस भाव का द्योतक है। यहां यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि – बाबासाहेब अम्बेडकर – कांग्रेस, महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू सहित अन्य समकालीन नेताओं की खूब आलोचना एवं कटु भर्त्सना भी करते थे। किन्तु एक भी ऐसा प्रसंग नहीं आता है जब उन्होंने ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ की आलोचना की हो।
इसी सन्दर्भ में पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ चिंतक विचारक रमेश पतंगे डॉ.अम्बेडकर और डॉ. हेडगेवार के सामाजिक समरसता के लिए किए कार्यों के अन्तर्सम्बन्धों पर महत्वपूर्ण विचार रखते हैं । उनके अनुसार — डॉ. अम्बेडकर का लक्ष्य था हिन्दू समाज में व्याप्त अस्पृश्यता, छुआछूत, जाति-पाति आदि बुराइयों को समाप्त करना। इन बुराइयों को खत्म किए बिना देश बड़ा नहीं हो सकता और समाज शक्तिशाली भी नहीं हो सकता। उन्होंने धार्मिक सुधार एवं सामाजिक सुधार के जरिए समता प्राप्त करने के लिए आजीवन संघर्ष किया। नागरिकों की स्वतंत्रता एवं समता पर उन्होंने अधिक बल दिया। हमारा संविधान हमें यह अधिकार देता है। लेकिन केवल कानून बनाने से ऐसा होना संभव नहीं है। यह समाज में स्वाभाविक रूप से आनी चाहिए। इसके लिए सभी में बंधुत्व की भावना आनी चाहिए। यह सब डॉ. अम्बेडकर ने कहा, लेकिन कैसे आनी चाहिए इसका चिंतन, विचार, क्रिया उन्होंने नहीं बताई। मेरे अध्ययन व आंकलन के अनुसार – सामाजिक समरसता का सिद्धांत डॉ.अम्बेडकर ने दिया और डॉ. हेडगेवार ने उसे यथार्थ में कर दिखाया। इसमें दोनों की एक दूसरे से तुलना नहीं करनी चाहिए और न ही उनमें समानता की बात करनी चाहिए। दोनों का कार्यक्षेत्र अलग था।अपने–अपने कार्यों के आधार पर दोनों ही महापुरूष हैं। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने एक ऐसा तंत्र शाखा के माध्यम से स्थापित किया है कि ऑपरेशन भी हो जाता है, जख्म भी भर जाता, जख्म के निशान तक दिखाई नहीं देते और मरीज को पता भी नहीं चलता है। उक्त सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए अनेक महापुरूषों ने बड़ा संघर्ष व प्रयत्न किया। बावजूद इसमें वे शत-प्रतिशत सफल नहीं हुए। लेकिन दूरद्रष्टा डॉ. हेडगेवार ने सहजता से परिवर्तन कर दिया और समाज व देश के लिए वे आदर्श बने। इसलिए संघ में कहीं भी जाति-पाति, छूआछूत और अस्पृश्यता नहीं है।”
( साहित्यकार, स्तम्भकार एवं पत्रकार)