मृत पशुओं के डम्पिंग यार्ड जोड़बीड़ में लगा विदेशी गिद्धों का मेला, चील, बाज जैसे पक्षियों की विदेशी प्रजातियां भी आयीं
मृत पशुओं के डम्पिंग यार्ड जोड़बीड़ में लगा विदेशी गिद्धों का मेला, चील, बाज जैसे पक्षियों की विदेशी प्रजातियां भी आयीं
बीकानेर का जोड़बीड़ इन दिनों विदेशी पक्षियों की सैरगाह बना हुआ है। कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से लगभग 4500 दुर्लभ इजिप्शियन गिद्ध यहाँ पहुँच चुके हैं। इनके अतिरिक्त चील, बाज जैसे पक्षियों की विदेशी प्रजातियां भी सर्दियां बिताने के लिए यहाँ पहुंच रही हैं। जोड़बीड़ क्षेत्र को एशिया की सबसे बड़ी मृत पशुओं की डंपिंग साइट के रूप में जाना जाता है। एक बार एक युद्ध के दौरान जोधपुर के संस्थापक राव रावजी के पुत्र राजकुमार राव बीकाजी यहां आए थे और इस स्थान को अपना सैन्य ठिकाना बनाया था। बाद में यह स्थान मरे हुए ऊंटों और दूसरे पशुओं को फेंकने के काम आने लगा। 2011 में इसे भारत सरकार ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया और यह जोड़बीड़ कंजर्वेशन रिजर्व के नाम से जाना जाने लगा।
मृत पशुओं की डम्पिंग साइट होने के चलते जोड़बीड़ में मांसाहारी पक्षियों के लिए भोजन की कोई कमी नहीं रहती। ठंडे देशों में रहने वाले पक्षी ठंड बढ़ने पर गरम देशों का रुख करते हैं। ऐसे में कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे स्थानों पर रहने वाले इजिप्शियन गिद्धों व अन्य पक्षियों के लिए यह साइट अक्टूबर से मार्च तक के लिए आरामगाह बन जाती है। जोड़बीड़ में छोटे बड़े अन्य जानवरों के अलावा रेप्टाइल्स की दो दर्जन से अधिक प्रजातियां निवास करती हैं, जिनमें सांडा और डैजर्ट जरबिल को ये मांसाहारी पक्षी बड़े शौक से खाते हैं।
पक्षी विशेषज्ञ बताते हैं कि यहाँ का वातावरण इजिप्शियन गिद्धों को इतना रास आता है कि कई बरस पहले यहॉं आए 200-300 गिद्ध तो ऐसे हैं, जो वापस गए ही नहीं, यहीं बस गए। कुछ यूरेशियन ग्रिफन भी वापस नहीं गईं। ये सभी पक्षी मध्य एशिया, रूस, आर्मेनिया आदि से 1500 से 1800 किलोमीटर की यात्रा तय करके यहाँ पहुंचते हैं। इनमें इजिप्शियन गिद्धों के अतिरिक्त यूरेशियन, हिमालयन, लॉन्ग बिल्ड वल्चर, ग्रेटेड स्पॉटेड ईगल, स्टैपी ईगल आदि शामिल हैं। ठंडे प्रदेशों से आने वाले ये पक्षी राजस्थान में भरतपुर के पक्षी अभयारण्य, जैसलमेर, जोधपुर खींचन गांव, सांभर लेक, बीकानेर में जोड़बीड़ आदि कई स्थानों पर अपने स्वभाव अनुसार डेरा जमा लेते हैं। जैसे मंगोलिया और चीन की ओर से आने वाली कुरजां खींचन गांव में अपना बसेरा बनाती हैं। साइबेरियन सारस भरतपुर के केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान तो लेजर और ग्रेटर प्रजाति के फ्लेमिंगो सांभर लेक को अपना ठिकाना बनाते हैं।
इस बार जोड़बीड़ पहुंचने वाले पक्षियों में 60 यूरेशियन ग्रिफोन, 4500 इजिप्शियन गिद्ध, 7 ग्रेटेड स्पॉटेड ईगल, 2 लगर्स, 200 स्टैपी ईगल, 2 बूटेड ईगल, 1 लॉन्ग बिल्ड वल्चर, 250 ब्लैक काइट और 3 टोनी ईगल सम्मिलित हैं। जोड़बीड़ में इस बार पानी में रहने वाला दुर्लभ पक्षी व्हाइट स्ट्रोक भी देखा गया, जो इससे पहले 2015 में यहाँ नजर आया था।
पिछले तीन वर्षों के आँकड़े देखें, तो पता चलता है कि जोड़बीड़ आने वाले इजिप्शियन गिद्धों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2021 में यहॉं ~4000 इजिप्शियन वल्चर आए, तो 2022 में इनकी संख्या ~4300 और 2023 में ~4500 रही। इनके अतिरिक्त प्रवासी यूरेशियन ग्रिफोन और स्टैपी ईगल की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।
इजिप्शियन वल्चर गिद्धों की एक संकटग्रस्त प्रजाति है। इन्हें इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने 2015 में रेड बुक में शेड्यूल फर्स्ट में शामिल किया है। भारतीय गिद्धों की संख्या भी वर्ष दर वर्ष कम हो रही है। ऐसे में यदि इनकी संख्या दर में गिरावट के कारणों को समझते हुए कुछ बेसिक सावधानियां भी रखी जाएं तो ईकोसिस्टम के महत्वपूर्ण अंग गिद्धों को बचाया जा सकता है। इनकी गिरती संख्या के मुख्य कारण-
डाइक्लोफ़िनेक नामक दवा का असर: मवेशियों को जोड़ों के दर्द में आराम देने के लिए दी जाने वाली यह दवा गिद्धों के लिए जानलेवा साबित होती है। जब गिद्ध इन पशुओं के शवों को खाते हैं, तो दवा का असर गिद्धों के गुर्दों पर पड़ता है, जो उनकी मौत का कारण बनता है।
कीटनाशक: चूहों, छछूंदरों आदि को मारने के लिए जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग भी इनके लिए अत्यंत घातक होता है। जहरीले जानवरों को खाने से वह जहर गिद्धों के अंदर भी पहुंच जाता है। ऐसे जानवरों को खुले में फेंकने के बजाय जमीन में गाड़ देना चाहिए।
प्रदूषण: प्रदूषण के चलते भी गिद्धों की संख्या कम हो रही है।
प्राकृतिक आवास का नष्ट होना: घटते जंगलों की वजह से गिद्धों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं।
तस्करी: गिद्धों को खाड़ी देशों में तंत्र-मंत्र के लिए बेचा जाता है।
हाईवोल्टेज तार और मोबाइल टावर: हाईवोल्टेज तारों और मोबाइल टावर की किरणों से भी गिद्धों की मौत हो जाती है