घाटी में आतंकियों की सहायता करने वालों की अब खैर नहीं, होगी एनिमी एजेंट्स एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई
घाटी में आतंकियों की सहायता करने वालों की अब खैर नहीं, होगी एनिमी एजेंट्स एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई
अब आतंकियों पर लगाम लगाने के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस एनिमी एजेंट्स एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई करेगी। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने आतंकियों की सहायता करने वालों से सख्ती से निपटने की योजना बना ली है। यदि कोई व्यक्ति आतंकवादियों का समर्थन करते हुए पाया गया या किसी प्रकार की कोई सहायता उपलब्ध कराई तो उसके विरुद्ध शत्रु एजेंट अधिनियम के अंतर्गत कार्रवाई होगी। जिसमें न्यूनतम आजीवन कारावास या मृत्यु की सजा का प्रावधान है।
यह निर्णय 9 जून की शाम कटरा में माता वैष्णो देवी मंदिर में तीर्थयात्रियों को ले जा रही 53 सीटों वाली बस पर हुए आतंकी हमले के कारण लिया गया है। इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई है।
जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक आर आर स्वैन ने रविवार 23 जून को बताया कि घाटी में आतंकवादियों की सहायता करने वालों पर ‘शत्रु एजेंट अधिनियिम 2005’ के अंतर्गत कार्यवाही की जानी चाहिए तथा देश के दुश्मनों के शुभचिंतकों के साथ भी दुश्मन के जैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए।
क्या है शत्रु एजेंट अधिनियम, 2005?
शत्रु एजेंट अधिनियम 2005 को पहली बार वर्ष 1917 में लाने का श्रेय जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन डोगरा महाराज को जाता है। इस कानून को अध्यादेश भी कहा जाता है, क्योंकि डोगरा शासन के दौरान बनाए गए कानूनों को अध्यादेश ही कहा जाता था। इस अध्यादेश में यदि दुश्मन भारतीय सेना के सैन्य या हवाई अभियानों में व्यवधान डालता है या आगजनी या मौतों के लिए जिम्मेदार है तो उसे मृत्युदंड या आजीवन कारावास या 10 वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुनाई जा सकती है। साथ ही जुर्माना भी भरना पड़ेगा।
एनिमी एजेंट कौन हैं
इस कानून में कहा गया है, ‘कोई भी व्यक्ति जो देश के दुश्मनों की सहायता करता है, उनके साथ मिलकर भारत के विरुद्ध षडयंत्र करता है, किसी भी प्रकार की सहायता करता पाया जाता है, सुरक्षा बलों या सैनिकों का जीवन खतरे में डालता है, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संबंध रखता है, वह एनिमी एजेंट की श्रेणी में आएगा।
UAPA से भी कठोर है यह अधिनियम
इस कानून में विशिष्ट न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध अपील करने का कोई प्रावधान नहीं है। कानून के अनुसार विशिष्ट न्यायाधीश के निर्णय की समीक्षा केवल सरकार द्वारा हाईकोर्ट से चुना गया न्यायाधीश ही कर सकता है। उसका निर्णय अंतिम माना जाएगा।
एनिमी एजेंट ऑर्डिनेन्स के अंतर्गत जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के फाउंडर मकबूल भट्ट पर मुकदमा चलाया गया था। जिसे 11 फरवरी 1984 को तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई थी।