ऊर्जा क्षेत्र में करने होंगे नए प्रयोग
अमित बैजनाथ गर्ग
ऊर्जा क्षेत्र में करने होंगे नए प्रयोग
दुनिया में एक बार फिर ऊर्जा क्षेत्र को लेकर चर्चा हो रही है। यह ऊर्जा क्षेत्र के बढ़ते महत्व को दर्शाता है। आखिर क्यों बार-बार एनर्जी सेक्टर पर इतनी गंभीरता से बातचीत की जा रही है? क्यों वैश्विक मंचों पर इस मुद्दे को उठाया जा रहा है? असल में दुनिया ऊर्जा के क्षेत्र में संकटों का सामना कर रही है। सभी इस बात को समझ चुके हैं कि इस क्षेत्र पर अभी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाला समय चुनौतीपूर्ण होगा। उभरते ऊर्जा संकट, घटते जीवाश्म ईंधन संसाधनों और उच्च तेल की कीमतों के साथ जलवायु परिवर्तन की चिंताओं ने बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए नवीकरणीय, वैकल्पिक, पर्यावरण अनुकूल और कार्बन तटस्थ ईंधन के विकास की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है। अधिकांश ऊर्जा संकट स्थानीय कमी, युद्ध और बाजार में हेरफेर के कारण हुए हैं।
भारत की बात करें, तो इसके ऊर्जा संकट से निपटने की राह में कई चुनौतियां हैं। पहली बात तो यह है कि सभी के पास सीमित ऊर्जा संसाधन हैं। भारत के पास कोयला, तेल और गैस जैसे सीमित ऊर्जा संसाधन ही मौजूद हैं और यह अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है। परिणामस्वरूप भारत ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहा है, जैसे कि सौर, पवन और जल विद्युत। वहीं देश के ऊर्जा क्षेत्र में अभी अपर्याप्त निवेश है। देश के ऊर्जा क्षेत्र को अपने बुनियादी ढांचे में सुधार और अपनी ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने के लिए वृहद निवेश की आवश्यकता है, लेकिन सरकार और निजी क्षेत्र ऊर्जा क्षेत्र में पर्याप्त निवेश नहीं कर पा रहे हैं। देश की निम्न प्रति व्यक्ति आय और उच्च गरीबी दर भी लोगों के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का वहन कर सकना कठिन बनाती है। भारत विश्व के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है और इसका ऊर्जा क्षेत्र इन उत्सर्जनों का एक प्रमुख योगदानकर्ता है। हालांकि सरकार की ओर से अल्पकालिक और दीर्घकालिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के लिहाज से 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता के 500 गीगावाट के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। इधर, दुनिया में भारत एनर्जी ट्रांजिशन में ग्लोबल लीडर के रूप में उभर रहा है। यह उस विकास से स्पष्ट है, जो हमने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में हासिल किया है। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र यानी रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर रोजगार उत्पादन की दृष्टि से भी उम्मीदें बंधाता हुआ नजर आ रहा है। पूरी दुनिया जहां जलवायु परिवर्तन के खतरे को रोकने के लिए इस क्षेत्र को विकसित करने में जुटी है, वहीं भारत जैसे विकासशील देश ने इस स्रोत के विकास में अच्छी सफलता हासिल की है। पिछले दस सालों में देश ने अक्षय ऊर्जा उत्पादन की अपनी क्षमता में पांच गुना बढ़ोतरी की है। इसके साथ ही ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में नए लक्ष्यों को तय किया है।
वहीं रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में रोजगार पैदा करने के लिहाज से चीन, ब्राजील और अमेरिका के बाद भारत दुनिया में चौथे नंबर पर है। पूरे विश्व में रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में नियुक्त लोगों का 5.7 प्रतिशत भारत में है। इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, दस साल पहले तक रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर ने भारत में चार लाख नौकरियां उत्पन्न की थीं। असल में भारत में एनर्जी सेक्टर में आगे काफी ग्रोथ की संभावनाएं हैं और इस सेक्टर में जाने के लिए छात्रों को कुछ खास कोर्स करने की आवश्यकता पड़ेगी। एनर्जी सेक्टर में बीटेक पावर, एमबीए ऑयल एंड गैस, एमए एनर्जी इकोनॉमिक्स, सोलर एनर्जी आदि से जुड़े कई कोर्स होते हैं, लेकिन आने वाले समय में सबसे ज्यादा संभावनाएं सोलर एनर्जी में है, इसलिए छात्रों को इसी कोर्स का चुनाव करना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने के लिए एनर्जी सेक्टर को रिवाइव करना आवश्यक होगा। वहीं देश में एलईडी बल्ब के इस्तेमाल से उजाले के लिए खर्च होने वाली बिजली में करीब 75 फीसदी की कमी आई है। अध्ययन बताते हैं कि ऊर्जा दक्ष उपकरणों के इस्तेमाल से लगभग 30 प्रतिशत बिजली खपत कम की जा सकती है यानी भवनों में 1.20 लाख गीगावाट बिजली बचाए जाने की संभावना है। यदि भवनों में ऊर्जा दक्षता के मानक लागू हो जाएं, तो अतिरिक्त 30 फीसदी बिजली बच सकती है। यह बिजली बिहार और झारखंड जैसे राज्यों के एक साल की जरूरत के बराबर है। सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश में उद्योग जगत सबसे ज्यादा 42 फीसदी बिजली खर्च करता है। घरेलू क्षेत्र 24 फीसदी बिजली खर्च करता है। व्यावसायिक भवनों में बिजली की खपत आठ प्रतिशत है। भवन क्षेत्र की कुल खपत 32 प्रतिशत है, लेकिन भवनों में ऊर्जा दक्षता के मानकों का क्रियान्वयन सबसे कम हुआ है।
निवेश की बात करें तो देश के एनर्जी सेक्टर में वर्ष 2000 से 2019 के बीच 14.32 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया है। सरकार इस सेक्टर पर खासा ध्यान दे रही है, जिसके कारण आने वाले समय में इस सेक्टर में निवेश और बढ़ेगा। इससे नौकरी की संभावनाएं भी बढ़ेंगी। 2022 तक भारत सरकार नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाकर 175 गीगावाट कर चुकी है। इसमें 100 गीगावाट सोलर पावर और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है। वहीं भारत की कोल आधारित क्षमता 2040 तक 191 गीगावाट से बढ़कर 400 गीगावाट होने की संभावना है। हालांकि भारत लंबे समय से ऊर्जा उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा विश्वास कोयले पर करता आया है, लेकिन पिछले दशक के मध्य से इसमें ग्रीन एनर्जी की भागीदारी महत्वपूर्ण रही है। साल 2017 के बाद से ग्रीन एनर्जी बिजली उत्पादन के नए तरीकों में सबसे आगे रही है, जिसमें सोलर एनर्जी का बड़ा भाग है।
वर्तमान समय में भारत की ऊर्जा पर निर्भरता दूसरे देशों पर अधिक है। देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई पहल की जा रही हैं। इसी क्रम में नवीकरणीय ऊर्जा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिसके लिए सोलर एनर्जी के क्षेत्र में सरकार की ओर से काफी काम किया जा रहा है। भारत ने वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए लगभग 50 प्रतिशत ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित करना बड़ा लक्ष्य है। साल 2040 तक भारत की ओर से 15,820 टेरावाट आवर बिजली का उत्पादन नवीकरणीय स्रोत से करने का भी लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में सोलर एनर्जी इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न कंपनियां सोलर एनर्जी की तरफ तेजी से काम कर रही हैं। इसकी वजह से इस सेक्टर की कंपनियों में अच्छी ग्रोथ देखने को मिल रही है। आने वाले समय में इन कंपनियों की ग्रोथ और तेज होने के साथ भारत एनर्जी सेक्टर के सभी लक्ष्यों को सफलतापूर्वक हासिल कर सकेगा।
देखा जाए तो देश में ऊर्जा क्षेत्र में त्वरित सुधारों की दरकार है। सबसे पहले तो आयात पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू कोयले की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान देना होगा। इसे कोयले के कैलोरी मान को बढ़ाने और राख की मात्रा को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी में निवेश कर प्राप्त किया जा सकता है। वहीं नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित करना होगा। देश में सौर, पवन और जल विद्युत जैसे ऊर्जा स्रोतों की अपार क्षमता मौजूद है। सरकार को प्रोत्साहन राशि और सब्सिडी के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के विकास को प्रेरित करना चाहिए। कार्बन मूल्य निर्धारण नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है। वहीं ऊर्जा के कुशल संचरण और वितरण को सुनिश्चित करने के लिए ऊर्जा अवसंरचना के विकास में निवेश करना होगा। यह मौजूदा अवसंरचना के उन्नयन और नए बिजली संयंत्रों, पाइपलाइनों और ट्रांसमिशन लाइनों के निर्माण के माध्यम से हासिल हो सकता है।
वास्तव में वैश्विक ऊर्जा संकट के समाधानों का व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जा रहा है। सबसे अच्छा विकल्प यह है कि गैर-नवीकरणीय संसाधनों पर दुनिया की निर्भरता को समाप्त किया जाए और समग्र संरक्षण प्रयासों में सुधार किया जाए। पीले बल्बों की जगह एलईडी बल्ब लगाएं। वे कम ऊर्जा की खपत करते हैं और लंबे समय तक चलते हैं। अगर दुनिया में लाखों लोग आवासीय और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए एलईडी का उपयोग करते हैं, तो ऊर्जा की मांग कम होगी और संकट से बचा जा सकेगा। इसके अलावा, सौर पैनलों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए ताकि जनता को अक्षय ऊर्जा विकल्पों की जांच करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। अधिक स्टार वाले उपकरण खरीदे जाने चाहिए, इससे बिजली की बचत होगी। वहीं बिना रेटिंग वाले उपकरणों की बिक्री पर रोक होनी चाहिए। पिछले कुछ सालों में लोगों में ऊर्जा दक्षता को लेकर चेतना बढ़ी है, लेकिन अभी भी जागरूक होने की आवश्यकता है। इस तरह छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर हम बिजली की बचत कर सकेंगे।