किसानों को ट्रैक्टर के बजाय गोवंश पर मिले अनुदान- गोपाल भाई सुतरिया
किसानों को ट्रैक्टर के बजाय गोवंश पर मिले अनुदान- गोपाल भाई सुतरिया
वागड़ में गोपालन व गो आधारित जैविक कृषि के प्रसार हेतु श्री राधा कृष्ण गोशाला वमासा में किसान सम्मेलन एवं प्रशिक्षण शिविर संपन्न हुआ। देश के नामी गो विशेषज्ञों एवं कृषि विज्ञानिकों ने 2 हजार से अधिक कृषकों को संबोधित किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में भूमि सुपोषण अभियान के अंतर्गत भूमि पूजन, मिट्टी पूजन एवं गोपूजन किया गया।
कार्यक्रम में अतिथि वक्ता भारत सरकार द्वारा कामधेनु पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध गो पालक गोपाल भाई सुतरिया एवं जाने माने कृषि वैज्ञानिक जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य अजीत शरद केलकर रहे।
इस अवसर पर गोपाल सुतरिया ने “गो कृपा अमृतम” के बारे में बताते हुए कहा कि यह किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है। इसके उपयोग से 7 दिनों के अंदर यूरिया, डीएपी व पेस्टिसाइड की आवश्यकता समाप्त हो सकती है। इसके प्रयोग से कुछ फसलों में हमने तीन गुना तक उत्पादन लिया है।
उन्होंने कहा कि सरकार को हमारे पैतृक व्यवसाय कृषि व पशुपालन के क्षेत्र में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने व जैविक कृषि व गोपालन को बढ़ावा देने के लिए व्यवहारिक योजनाएं बनानी चाहिए। ट्रैक्टर, मशीनरी, यूरिया, डीएपी पर अनुदान की भांति गोवंश पर अनुदान जारी करने की योजना बने, तो गोवंश का संरक्षण होगा। अभी जो कृषक भारतीय नस्ल के नंदी गोवंश का संरक्षण कर खेती में उपयोग कर रहे हैं, उन कृषकों के लिए अनुदान देने की योजनाएं बनाने की आवश्यकता है।
अजीत केलकर ने कहा कि गोवंश हमारे खेतों में होना चाहिए, हमारे घरों में होना चाहिए। लेकिन आज वह गोशालाओं में आ रहा है, बेसहारा सड़कों पर विचरण कर रहा है, इनका पालन हमारा दायित्व है। परमेश्वर ने धरती मां को सजीव बनाए रखने के लिए गोमाता की रचना की थी। गोवंश का गोबर, गोमूत्र कृषि मित्र जंतुओं – केंचुओं व सूक्ष्मजीवों के लिए वरदान है। केंचुए व सूक्ष्मजीव मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं। केंचुए दो प्रकार से काम करते हैं। एक, धरती के अंदर लाखों छिद्र बनाते हैं। जब बारिश होती है तो बारिश का पानी उन छिद्रों के माध्यम से भूमि के अंदर वाटर बैंक तक पहुंचता है। दूसरा, वे कार्बनिक पदार्थों को खाकर मिट्टी को भुरभुरा बनाते हैं। लेकिन अब जहरीले कीटनाशकों के चलते सूक्ष्मजीव कम होते जा रहे हैं।
उन्होंने कहा, हमारा देश प्रकृति पूजक रहा है। हम धरती को मां कहते हैं, नदियों व वृक्षों की पूजा करते हैं। हम जीवों, यहॉं तक कि सर्प की भी पूजा करने वाले लोग हैं।
कृषि वैज्ञानिक अल्बर्ट हावर्ड (1905-1931) को अंग्रेजों ने भारत में खेती सिखाने भेजा, उसने जब भारतीय किसानों की कृषि पद्धति देखी तो आश्चर्यचकित रह गया। उसने कहा भारतीय किसानों को खेती सिखाने की नहीं बल्कि खेती कैसे करें, यह उनसे सीखने की आवश्यकता है।
FAO का कहना है कि यदि मृदा का क्षरण और रासायनिक कृषि का चलन इसी प्रकार चलता रहा तो 2050 तक हमारे विश्व की 90% मिट्टी खराब हो जाएगी।
कार्यक्रम में पर्यावरण का ध्यान रखते हुए किसानों को बादाम के पत्तों से बने दोनों में भोजन करवाया गया।
कार्यक्रम में 22 राज्यों के आत्मनिर्भर, प्रगतिशील एवं जैविक पद्धति से खेती करने वाले कृषकों की अब तक की उपलब्धियों को चलचित्र के माध्यय से दिखाया गया। उपस्थित किसानों को गौ कृपा अमृतम व नेपियर हरा चारा भी निःशुल्क वितरित किया गया। आयोजन में 2 हजार से अधिक किसानों ने भाग लिया।