देश को कट्टरपंथी मानसिकता से बचाना आवश्यक
अवधेश कुमार
देश को कट्टरपंथी मानसिकता से बचाना आवश्यक
देश में चारों ओर भयभीत करने वाले दृश्य दिख रहे हैं। स्वामी यति नरसिंहानंद ने कुछ बोला तो उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज हो गई। कानून कार्रवाई करेगा। किसी भी मजहब के बारे में बोलते समय हमेशा अधिकतम संयम का भाव बरता जाना चाहिए। किंतु देशभर में हजारों की संख्या में सड़कों पर उतरकर नारा लगाया जा रहा है कि गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा सिर तन से जुदा, सिर तन से जुदा, हमारा तुम्हारा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह…..। इनमें कहीं -कहीं तलवार लिए, लाठी -डंडे लिए, पत्थर लिए, पुलिस पर पत्थरबाजी करती भी भीड़ दिख रही है। ऐसा लगता है कि भीड़ जान देने और जान लेने के लिए ही उतारू होकर बाहर निकली है। दूसरी ओर एक नसरुल्लाह मारोगे हर घर से नसरुल्लाह निकलेगा, हम सब हिज्बुल्लाह हम सब हिजबुल्लाह ….के नारे भी लग रहे थे। न इन सबके विरुद्ध कोई पार्टी, कोई संगठन सड़कों पर आ रहा है, न बुद्धिजीवी स्टैंड ले रहे हैं। इस प्रकार के दृश्य हमने पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, लीबिया सीरिया, इराक जैसे देशों में देखे हैं। लोगों को पत्थरों से मार मार कर घायल और हत्या करते देखा है तो कहीं सिर तन से जुदा करते हुए। क्या हमारे देश में भी वही स्थिति पैदा की जा रही है?
भारत जैसे देश में ईशनिंदा कानून न हो सकता है और न होना चाहिए। यह खुली बहस और विमर्श का देश रहा है। हमारे यहां हिंदू देवी-देवताओं की आलोचना, निंदा हुई है, लेकिन इतिहास के किसी कालखंड में ऐसा करने वाले की गर्दन धड़ से अलग करने या किसी अन्य प्रकार से हत्या करने की बात नहीं उठी। उसे धर्म विरोधी, अधर्मी अवश्य कहा गया। किंतु प्रत्युत्तर में तर्क और तथ्य दिए गए। हमारे धर्म में इसी बहस- विमर्श के कारण अनेक मत -मतांतर, पंथ हुए, पर किसी ने ईशनिंदा जैसी व्यवस्था के बारे में सोचा भी नहीं। सड़कों पर उतरकर इस तरह कर गुजरने के तेवर के नारों से भयभीत करने वाले सारे भारत में ही जन्मे व पले-बढ़े हैं। तो इनके अंदर यह संस्कार क्यों नहीं पैदा हुआ? वे इसके उलट भारत की सीमाओं से पार होने वाले व्यवहार, उसकी सोच, उसके सिद्धांतों से प्रभावित होकर क्यों अपने किसी की जान लेने देने और दुनिया के किसी कोने की हिंसक घटनाओं से अपने को इस भावना में जोड़ने के लिए तत्पर रहते हैं?
जब 2022 के मई के महीने में सिर तन से जुदा का नारा लगा, तो अधिकतर लोगों ने सोचा कि कुछ मुट्ठी भर लोगों की करतूत है। यह नारा धीरे-धीरे देशव्यापी स्वरूप ग्रहण करता गया और आज सर्वव्यापी है। गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा, सिर तन से जुदा , सिर तन से जुदा जैसा खुलेआम मजहब के नाम पर हत्या की धमकी देने वाला नारा सामान्य बन चुका है। आपको अलग-अलग क्षेत्र में इस तरह की अनेक घटनाएं पढ़ने और देखने सुनने को मिलीं। ऐसे लोगों की कमी नहीं जो
बताएंगे कि यह कोई मुद्दा ही नहीं है। कुछ इसका विरोध करने वालों को ही सांप्रदायिक घोषित कर देंगे। भारत के अलावा इस तरह की प्रतिक्रिया देने वाला देश शायद ही कोई होगा। उदयपुर में कन्हैयालाल और अमरावती में प्रमोद कोल्हे की हत्या हो गई। बावजूद हमारे देश में स्वयं को सेक्यूलर बताने वाले लोगों की आंखें नहीं खुल रहीं। सरेआम यह नारा लगाने वालों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्रवाई नहीं हो रही, इसलिए मजहबी उन्माद से ग्रस्त लोगों का मनोबल बढ़ता है तथा दूसरे पक्ष के अंदर भय पैदा होता है। स्थिति यहां तक हो गई है कि अखबारों, टेलीविजन आदि में इस विषय पर कुछ लिखने बोलने वाले भी डरने लगे हैं। आपको निजी बातचीत में कहते हुए मिल जाएंगे कि इस विषय पर डिबेट करने या कुछ बोलने से डर लगने लगा है।
2022 के हैदराबाद का दृश्य कोई नहीं भूल सकता। ठाकुर राजा सिंह की गिरफ्तारी के पहले पूरा दृश्य दंगों का बना दिया गया था। वह गिरफ्तार हो गए, तब भी नारा लगाते हुए उन्हें फांसी देने की मांग की जाने लगी। न्यायालय की दृष्टि में मामला इतना गंभीर नहीं था कि उन्हें जेल में रखा जाए इसलिए जमानत दे दी गई। इधर न्यायालय ने जमानत दी और उधर हजारों की संख्या में हैदराबाद में सड़कों पर उतर कर सिर तन से जुदा के नारे लगाए जाने लगे। कई नारे थे। जैसे, गुस्ताख ए रसूल को फांसी दो, फांसी दो, फांसी दो, गुस्ताख ए नबी को फांसी दो, फांसी दो, फांसी दो आदि। एक तरफ आप सिर तन से जुदा का नारा लगाते हैं और दूसरी ओर फांसी की मांग करते हैं। तो इसका यह अर्थ क्यों न लगाया जाए कि आप धमकी दे रहे हैं कि अगर फांसी नहीं दी गई तो हम स्वयं सिर तन से जुदा कर देंगे? अजमेर शरीफ में एक व्यक्ति ने नूपुर शर्मा का सिर काट कर लाने वाले को अपनी संपत्ति तक देने की बात कह दी थी। यति नरसिंहानंद के संदर्भ में भी न जाने ऐसी घोषणाएं कितनी जगह से हो चुकी हैं।
कोई किसी मजहब के बारे में कुछ बोल दे उसके लिए हमारे यहां ऐसे कानून नहीं है कि उसे आजीवन जेल में रखा जाए या न्यायालय उसे इस तरह की सजा दे। स्वाभाविक ही ऐसे किसी भी वक्तव्य देने वाले को न्यायालय जमानत देगा और देता है। स्वामी यतिनरसिंहानंद की भी गिरफ्तारी हुई थी और उन्हें जमानत मिली। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिनमें शासन ने कार्रवाई की, गिरफ्तार किया जमानत मिली और उनके विरुद्ध मुकदमा चल रहा है। इससे अधिक कानून और शासन न कुछ कर सकता है, न करने की आवश्यकता है। अभी तक हिंदुओं या अन्य गैर मुस्लिम मतावलंबियों ने इस तरह की धमकी भरे नारों के विरुद्ध आक्रामक प्रदर्शन नहीं किए हैं। लोगों के अंदर गुस्सा पैदा हो रहा है। आम धारणा यही है कि डर पैदा कर सच बोलने से रोका जा रहा है तथा दूसरी ओर हमारे धर्म का अपमान हो रहा है और उनके विरुद्ध कार्रवाई भी नहीं हो रही। कानून का राज और कानून के समक्ष समानता का राजकीय व्यवहार अधिकतर जगह नहीं दिखाई पड़ रहा। यह खतरनाक स्थिति है। इस्लामी कट्टरवाद और उससे पैदा हुई हिंसा से पूरी दुनिया परेशान है। सिर तन से जुदा के विचार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, लीबिया, सीरिया, इराक, यमन जैसे कई इस्लामी देशों को बर्बाद कर दिया। आईएसआईएस और तालिबानों के सिर तन से जुदा के लाइव दृश्य दुनिया को दिखाए गए। प्रदर्शनों के दौरान हुई उग्रता और हिंसा बताती है कि भारत में भी इस्लामी कट्टरवाद नीचे तक फैल चुका है। जब प्रश्न उठाए जाएं तो कहा जाएगा कि रसूल की शान में गुस्ताखी हुई है, जिसके विरुद्ध पूरे मुस्लिम समुदाय में गुस्सा है। जब उनसे कहा जाता है कि इस नारे की आलोचना करिए तो उसके उत्तर में भी आरएसएस, भाजपा, मोदी, योगी आदि को मुस्लिम विरोधी साबित करने के कुतर्क दिए जाते हैं। कुछ मुस्लिम नेताओं ने कहा कि इससे हम सहमत नहीं हैं और यह नारा नहीं लगाया जाना चाहिए। लेकिन जैसे तेवर इनके दूसरों के बारे में हैं, वैसे ही अपने समुदाय के अतिवादियों के संदर्भ में नहीं। इसका अर्थ क्या है? क्या यह सार्वजनिक स्तर पर संविधान और शांति की दुहाई देना तथा अंदर ही अंदर कट्टरवाद को सही मानना नहीं है? ये नेता लगातार लंबे समय से झूठ फैलाते रहे हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ अन्याय हो रहा है, उनके मजहबी अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है आदि आदि। नरेंद्र मोदी, संघ, भाजपा आदि को मुसलमान विरोधी साबित करने के लिए ऐसे अनेक झूठ गढ़े गए, जिन्होंने मुसलमानों के एक बड़े तबके के अंदर मजहबी कट्टरता को परवान चढ़ा दिया है। स्थिति ऐसी खतरनाक दिशा में जा रही है, जहां यह समझना कठिन है कि इसे कैसे रोका जाए।
सभी राजनीतिक पार्टियों, गैर राजनीतिक समूहों, सांस्कृतिक -धार्मिक संगठनों, संस्थाओं आदि सबको इस कट्टरपंथ के विरुद्ध कठोर तेवर अपनाने की आवश्यकता है। उदारवादी मुसलमानों पर इनके विरोध का दायित्व है। सरकारें इनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई करें और अन्य समूह इनका प्रखर विरोध। ऐसा नहीं हुआ तो देश भयानक स्थिति में फंस जाएगा। लगभग ऐसी ही स्थिति विभाजन के पूर्व पैदा की गई थी। देश को उस स्थिति से बचाना है तो राजनीतिक, वैचारिक मतभेद छोड़कर हर समुदाय के लोगों को इनके विरुद्ध खड़ा होना होगा। इन स्थितियों से समाज को, देश को, आने वाली पीढ़ी को बचाना और सही रास्ता देना सबकी जिम्मेदारी है। केवल कुछ नेताओं की, सरकार की आलोचना करने से हमारी भूमिका समाप्त नहीं हो जाती। सबको अपना प्राथमिक दायित्व मानकर इसमें भूमिका निभानी चाहिए। कोई प्रत्यक्ष, कोई परोक्ष, जो लोग काम कर रहे हैं, उनके आगे पीछे खड़े हों, स्वयं कोई पहल करें। परिस्थितियां बिगड़ती जा रही हैं।