घुमंतू उत्थान न्यास के प्रयासों से घुमंतू समाज को मिलेगी छत

घुमंतू उत्थान न्यास के प्रयासों से घुमंतू समाज को मिलेगी छत

घुमंतू उत्थान न्यास के प्रयासों से घुमंतू समाज को मिलेगी छतघुमंतू उत्थान न्यास के प्रयासों से घुमंतू समाज को मिलेगी छत

जयपुर। हमारे देश को स्वाधीन हुए 7 से अधिक दशक बीत चुके हैं। लेकिन देश की स्वाधीनता में महत्वपूर्ण योगदान देने घुमंतू समाज के जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया। यह समाज आज भी उपेक्षित है और दर-दर भटकने को विवश है। 70 वर्षों तक देश पर लगातार राज करने वाली पार्टियों ने इनकी कोई सुध नहीं ली। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से हिन्दू संगठनों की ओर से घुमंतू समाज की शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और इनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए काम किया जा रहा है। इनमें घुमंतू उत्थान न्यास की एक बड़ी भूमिका है। न्यास के प्रयासों के चलते ही अब राजस्थान सरकार 2 अक्टूबर से घुमंतू समाज के परिवारों को निशुल्क आवासीय पट्टा देने का अभियान शुरू करेगी। इसके लिए पहले सर्वे करवाया जाएगा। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री आवासीय योजना में मकान बनाने के लिए भी रुपए दिए जायेंगे।

कौन है घुमंतू समाज
घुमंतू समाज वह समुदाय है, जो स्थायी रूप से एक जगह नहीं रहता, बल्कि निरंतर घूमता रहता है। भारत में इस समाज का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी जीवनशैली पूरी तरह से घुमंतू प्रवृत्ति पर आधारित है। ये लोग पारंपरिक रूप से पशुपालन, शिकार, मछली पकड़ना या अन्य मौसमी कार्यों पर निर्भर रहते हैं। भारत में घुमंतू समाज को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है – वनवासी, अर्ध घुमंतू और घुमंतू। वनवासी समुदाय मुख्य रूप से जंगलों में रहते हैं और शिकार, मछली पकड़ने या जड़ी-बूटियों के संग्रहण से अपनी जीविका चलाते हैं। अर्ध-घुमंतू लोग स्थायी गांवों में रहते हैं, लेकिन वर्ष के कुछ महीनों में घूमते हैं, जबकि घुमंतू लोग पूरे वर्ष एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं।

अंग्रेजों ने कर दिया था जन्मजात अपराधी घोषित
ब्रिटिश सरकार ने 1871 में आपराधिक जनजाति अधिनियम बनाया था, जिसके अंतर्गत घुमंतू समुदायों को जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया था। इनके पारंपरिक कामों पर रोक लगा दी गई थी और इनकी स्वतंत्र आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया था। इन्हें निकट के थानों में जाकर उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती थी। भारत को 1947 में स्वाधीनता मिली, किंतु घुमंतू समुदायों को 31 अगस्त 1952 को इस कानून से मुक्त किया गया। लेकिन उनकी यह स्वाधीनता भी झूठी निकली। भारत सरकार ने इनके सिर दूसरा अधिनियम- अभ्यस्त अपराधकर्ता अधिनियम बांध दिया, जो पहले वाले कानून से थोड़ा हल्का है, लेकिन अंग्रेजों वाले भेदभाव को जारी रखता है। यह कानून आज तक लागू है। हालांकि 2019 के बजट में केंद्र सरकार ने एक नया आयोग और राज्यों में घुमंतू बोर्ड बनाए जाने की घोषणा की है और नीति आयोग के अंतर्गत घुमंतू समुदायों के उत्थान के लिए एक पद सृजित कर उसका अध्यक्ष भीखूराम इदाते को बनाया है।

पूर्वजों और भारत पर अभिमान
घुमंतू समाज आल्हा, ऊदल, मलखान और महाराणा प्रताप को अपना पूर्वज मानते हैं। ये कहते हैं कि किसी दौर में हमारे पूर्वज राजा थे; लेकिन स्वाभिमान और देश की खातिर अपना राजपाट छोड़कर जंगलों में रहे और उन्हीं की राह पर हम आज भी चल रहे हैं। प्रकृति की उपासना में विश्वास रखने वाले घुमंतू लोग भारत को अपनी पुण्यभूमि मानते हैं।

घुमंतू समाज और इनमें शामिल जातियां
घुमंतू समाज में नट, भाट, भोपा, बंजारा, कालबेलिया, गाड़िया लोहार, गवारिया, बाजीगर, कलंदर, बहुरूपिया, जोगी, बावरिया, मारवाड़िया, साठिया, रैबारी आदि प्रमुख जातियां हैं। इन जातियों का काम लोहे के हथियार, हींग, मसाले, जंगली जड़ी-बूटियाँ, गोंद, पालतू जानवर, मोर पंख, फल-फूल आदि बेचना रहा है। यह एक स्वाभिमानी समुदाय है, जो मुख्यधारा से दूर है।

भारतीय संस्कृतिक और त्योहारों से गहरा जुड़ाव
घुमंतू समाज अपने रीति-रिवाज और परंपराओं को बहुत महत्व देता है। इनकी पूजा विधियां और अनुष्ठान भारतीय त्योहारों के दौरान देखने को मिलते हैं, जैसे होली, दिवाली, दशहरा, रामनवमी आदि। इसी प्रकार घुमंतू समाज में कृष्ण जन्माष्टमी एक महत्वपूर्ण और उत्साहपूर्वक मनाया जाने वाला त्योहार है। इसे मनाने के लिए घुमंतू समाज अपनी अनूठी परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन करता है। इस बार जयपुर में इनकी अनेक बस्तियों में घुमंतू जाति उत्थान न्यास की ओर से कृष्ण जन्मोत्सव का आयोजन किया गया। घुमंतू समाज के लोगों ने भगवान कृष्ण की झांकी सजाई और पूरी रात्रि भजन-कीर्तन किया। घुमंतू समाज में कृष्ण जन्माष्टमी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह उनकी संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है, जो उन्हें एक साथ लाने और उनके सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने में सहायता करता है। घुमंतू समाज और भारतीय त्योहारों का यह गहरा और जीवंत संबंध भारत की सांस्कृतिक विविधता और एकता को दर्शाता है।

नागरिक अधिकार से वंचित है घुमंतू समाज
देश की जनसंख्या का लगभग 10 प्रतिशत यानि 13 से 14 करोड़ लोग घुमंतू समाज से हैं। राजस्थान में इनकी संख्या लगभग 60 लाख है। एक अनुमान के अनुसार, इनमें से 78 प्रतिशत के पास न तो रहने को घर है और न जीवन को संवारने के अन्य मूलभूत संसाधन। संविधान के लागू होने के बावजूद आज भी इन्हें सभी नागरिक अधिकार नहीं मिले हैं, जिससे इन्हें दस्तावेज़ बनवाने, बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने और सरकारी नौकरियां पाने में बहुत कठिनाइयां आती हैं। कई राज्यों में इन्हें वो लाभ भी नहीं मिल पाते, जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को मिलते हैं, जबकि इनका जीवन उनसे भी निम्न स्तर का है। राजस्थान में घुमंतू समाज के 10 प्रतिशत लोगों के पास बीपीएल और राशन कार्ड तक नहीं हैं। इनके बुजर्गों और विधवा महिलाओं को पेंशन नहीं मिलती। जबकि अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए राशन और आधार कार्ड बनवा कर सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं।

वर्तमान में घुमंतू समाज के सामने चुनौतियां
वर्तमान समय में, घुमंतू समाज की स्थिति बहुत चुनौतीपूर्ण हो गई है। आधुनिक समाज में इनके पारंपरिक व्यवसाय और जीवनशैली पर खतरा बढ़ता जा रहा है। शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और कृषि भूमि की कमी ने इनकी आजीविका के साधनों को सीमित कर दिया है। इसके साथ ही, सरकार की योजनाओं और सुविधाओं तक इनकी पहुंच बेहद सीमित है, जिससे इनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति कमजोर बनी हुई है। इनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसर बहुत सीमित हैं। घुमंतू समुदायों में बहुत से लोग आज भी गरीबी, बेरोजगारी और भेदभाव का सामना कर रहे हैं। इनके लिए बनाई गई योजनाओं का उचित लाभ उठाने के लिए इन समुदायों के बीच जागरूकता फैलाने और योजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

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