असम में अब निकाह और तलाक का सरकारी पंजीकरण कराना हुआ अनिवार्य 

असम में अब निकाह और तलाक का सरकारी पंजीकरण कराना हुआ अनिवार्य 

असम में अब निकाह और तलाक का सरकारी पंजीकरण कराना हुआ अनिवार्य असम में अब निकाह और तलाक का सरकारी पंजीकरण कराना हुआ अनिवार्य 

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा लगातार ऐसे निर्णय ले रहे हैं, जिनकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। असम सरकार ने गुरुवार (29 अगस्त) को मुस्लिमों के विवाह और तलाक के पंजीकरण के कानून को निरस्त करने के लिए एक बिल पास किया है, जिसमें मुस्लिम निकाह और तलाक के पंजीकरण के लिए 1935 के अधिनियम को समाप्त कर दिया गया है। इस विधेयक के अनुसार, मुस्लिमों में निकाह और तलाक का सरकारी पंजीकरण करवाना अब अनिवार्य कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ने बहु निकाह और बाल निकाह समाप्त करने की भी बात कही है। इसके अतिरिक्त विधानसभा में जुमे की नमाज के लिए मिलने वाली दो घंटे की छूट को भी समाप्त कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ने यह कहते हुए इसे बंद कर दिया कि असम विधानसभा की उत्पादकता उनकी प्राथमिकता है और यह नियम औपनिवेशिक बोझ का प्रतीक था। असम में यह प्रथा वर्ष 1937 से चली आ रही थी, जिसे मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला ने शुरू किया था।

असम सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों से मुस्लिम और उन्हें वोट बैंक मानने वाले नेता व बुद्धिजीवी तिलमिला गए हैं। जैसे ही असम विधानसभा में जुमे की नमाज के लिए मिलने वाली दो घंटे की छूट को समाप्त किया गया, उनके तेवर तीखे हो गए। इससे एक बार फिर इनका चरित्र पूरे देश के सामने खुलकर सामने आ गया। राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव कोलकाता रेप और हत्या के मामले में 20 दिन से चुप थे, लेकिन नमाज़ के लिए एक मिनट में बोल पड़े। इन्होंने यहां तक कह दिया कि जब तक हम हैं, कोई माई का लाल मुसलमानों का बाल भी बांका नहीं कर सकता। कुछ समय पहले झारखंड विधानसभा से भी समाचार आया था कि नमाज़ अदा करने के लिए परिसर में एक कमरा अलग कर दिया गया है। 

एआईएमआईएम के राष्ट्रीय प्रवक्ता वारिस पठान कह रहे हैं कि भाजपा और हिमंत बिस्व सरमा मुसलमानों के विरुद्ध हैं। नमाज़ की छुट्टी समाप्त करना संविधान की मूल प्रस्तावना के विरुद्ध है। मुसलमानों को संविधान में अपने मजहब के अनुसार चलने का अधिकार है। कुछ दिन पहले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने तो वक्फ संशोधन को भी संविधान का उल्लंघन बताया है। बार बार संविधान की दुहाई देने वाले इन नेताओं को यह तो पता होगा कि संविधान की मूल प्रस्तावना में कहीं नहीं लिखा कि मुसलमानों को असम विधानसभा में नमाज़ के लिए 2 घंटे की छुट्टी दी जाएगी और संविधान में वक्फ बोर्ड का तो कहीं उल्लेख तक नहीं है। मुसलमानों को अपने मजहब के अनुसार चलने का अधिकार है, लेकिन सरकार के खर्चे और दूसरों को परेशानी देकर नहीं। फ़ारूख अब्दुल्ला कह रहे हैं सब रिलिजनों का आदर होना चाहिए। उन्होंने नमाज़ की छुट्टी समाप्त करने की आलोचना की। फारूख अब्दुल्ला शायद भूल गए कि किस प्रकार 1990 में बर्बरता करके हिंदुओं को कश्मीर से खदेड़ा गया था। तब सभी रिलिजंस के सम्मान की बात उनके ध्यान में क्यों नहीं आयी?

असम में नए कानून से बाल निकाह और पॉलीगेमी पर लगेगी रोक

असम के राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री जोगेन मोहन ने असम मुस्लिम निकाह और तलाक का अनिवार्य पंजीकरण विधेयक, 2024 विधानसभा में प्रस्तुत किया। विधेयक पर हुई बहस का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि काजियों द्वारा किए गए सभी पहले के निकाह पंजीकरण वैध रहेंगे और केवल नए निकाह के लिए यह कानून लागू होगा। नये निकाह के लिए पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से मुस्लिम पर्सनल लॉ और इस्लामी रीति-रिवाजों से होने वाले निकाहों में कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। सीएम ने कहा कि नये कानून लागू होने से अन्य रिलिजंस की तरह ही अब इस्लाम में भी बाल निकाह पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग जाएगा। राजस्व और आपदा प्रबंधन मंत्री जोगेन मोहन ने कहा कि इससे पॉलीगेमी पर रोक लगाने एवं विवाहित महिलाओं को वैवाहिक घर में रहने, भरण-पोषण आदि के अपने अधिकार का दावा करने में सक्षम बनाने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के कानून बनने से विधवाओं को अपने शौहर की मृत्यु के बाद अपने उत्तराधिकार के अधिकार, अन्य लाभ और विशेषाधिकारों का दावा करने में सक्षम बनाने में भी सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह विधेयक कानून बनने के बाद पुरुषों को निकाह के बाद पत्नियों को छोड़ने से भी रोकेगा। इसके साथ ही निकाह संस्था को और भी मजबूत करेगा। बता दें कि भारतीय कानून के अनुसार, बाल विवाह पूरी तरह से गैरकानूनी है।

जानिए, क्या है असम में जनसांख्यिकी अनुपात

इससे पहले मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा असम में जनसांख्यिकी में बदलाव को लेकर चिंता जता चुके हैं। उन्होंने कहा था कि असम में मुस्लिम जनसंख्या बढ़कर 40 प्रतिशत तक हो गयी है। वर्ष 1951 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 12 प्रतिशत थी। कई ऐसे जिले हैं, जो मुस्लिम बहुल हो गये हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, असम में हिन्दुओं की जनसंख्या 61.5 प्रतिशत थी, जबकि मुस्लिमों की 34.22 प्रतिशत थी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, असम के 32 जिलों में से 11 मुस्लिम बहुल जिले हैं। ये जिले धुबरी, गोलपारा, बारपेटा, मोरीगांव, नागांव, होजई, करीमगंज, दक्षिण सलमारा-मनकाचर, हैलाकांडी, दारंग और बोंगाईगांव हैं। 2001 की जनगणना में असम में असमिया समुदाय लगभग 47 प्रतिशत था, जो वर्ष 2016 में घटकर लगभग 40 से 45 प्रतिशत के बीच रह गया है। इससे पहले मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा बांग्लादेशी घुसपैठ और जनजातियों के कन्वर्जन का मामला भी उठा चुके हैं।

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