महान योद्धा पृथ्वीराज चौहान

महान योद्धा पृथ्वीराज चौहान

राम गोपाल पारीक

महान योद्धा पृथ्वीराज चौहानमहान योद्धा पृथ्वीराज चौहान

 

हर हार हमें कुछ कहती है,

ना सीखा मैंने गौरी से।

अपने संस्कारों में बंधा रहा,

धोखा खाया उसे बैरी से॥

 

यह मेरी ऐसी गलती थी,

हर बार उसे क्यों क्षमा किया। 

गौरी ने मिल गद्दारों से,

मुझ पर ही छल से वार किया॥

 

बंदी बनकर भी झुका नहीं,

ना गौरी मुझे झुका पाया।

इन आग उगलती आंखों का,

वह तेज जरा ना सह पाया॥

 

कर दिया मुझे फिर दृष्टिहीन,

इन जलती गर्म सलाखों से।

गौरी ने हारों का बदला,

ले लिया फोड़ इन आंखों से॥

 

बोला बरदाई सुनो मित्र,

योद्धा ना कभी मरा करते।

गौरी से बदला लेना है,

हर कतरा खून बहा करके॥

 

बरदाई बोला गौरी से,

वह ऐसा खेल दिखाएगा।

अंधा है मेरा मित्र मगर,

आवाज पे तीर चलाएगा॥

 

अंधा क्या तीर चलाएगा,

यह खेल है तीरंदाजी का।

दोनों की मृत्यु साथ होगी,

परिणाम रहेगा बाजी का॥

 

गौरी बैठा है मित्र वहां,

मैं अंगुली बांस गिनाता हूं।

तुम अंधी आंखों से देखो,

मैं सारा दृश्य दिखाता हूं॥

 

जब तीर लगा था गौरी को,

बरदाई इतना कह पाया।

हम मरते मरते मार गए,

वह जीते जी ना कर पाया।

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