गांवों में धूमधाम से मनायी गई हाळी अमावस्या, बच्चों ने खेतों में जोते हल
गांवों में धूमधाम से मनायी गई हाळी अमावस्या, बच्चों ने खेतों में जोते हल
जोधपुर। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में बुधवार को हाळी अमावस्या परंपरागत रीति रिवाजों के साथ मनाई गई। इस दौरान गांवों में बच्चों द्वारा खेतों में हल जोता गया।
वैशाख बदी अमावस्या पर लोगों ने घरों में खळ पूजन किया, वहीं मंदिरों में भी दान-पुण्य के दौरान महिलाओं की अच्छी भीड़ दिखाई दी। इसके साथ ही किसानों ने हाळी अमावस्या पर शगुन देखकर अच्छे समय की आस लगाई। बुजुर्गों ने मंदिर में सामूहिक रूप से अनाज की पूजा-अर्चना की। इस दौरान आगामी मानसून में सुकाल के संबंध में अनुमान लगाए गए। इस अवसर पर बुजुर्गों के साथ-साथ युवा व बच्चे भी उपस्थित थे। युवाओं व बच्चों ने बुजुर्गों से प्राचीन समय से आ रही इस प्रथा के संबंध में जानकारी ली तथा सुकाल जानने के हुनर के गुर सीखे। परंपरागत रीति-रिवाजों को अनवरत जारी रखने के लिए बच्चों ने मिलजुलकर खेतों में हल चलाया। सुबह से ही टोकरियों की टन-टन की आवाजें व स्थानीय गीतों की धुनें सुनाई दीं।
हाळी अमावस्या पर बनाई खीच
हाळी अमावस्या से सदियों से चली आ रही प्रथा के अनुसार सभी महिलाएं रात में सोने से पहले बाजरी, मूंग, मोठ को बड़े बर्तन में भिगो कर रखती हैं। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ओखली में उसे छड़ती हैं तथा इन सभी खाद्यान्नों को मिलाकर खीच बनाती हैं, साथ ही घरों में ग्वारफली की सब्जी व कढ़ी आदि कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। वहीं हाळी अमावस्या पर घर के आंगन व सभी देवस्थानों के आगे बाजरी, मूंग, मोठ इत्यादि की ढेरियां बनाकर इसमें हरे फल व प्याज आदि रखकर इसे आकर्षक रूप से सजाया जाता है। वहीं घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा ढेरियों में से अनाज के कुछ दाने उठाए जाते हैं, अगर ये दाने विषम संख्या में आते हैं तो लोगों इसे सुकाल की संभावना मानते हैं।
बच्चे खेलते हैं बैल-किसान
हाळी अमावस्या पर रात्रि के समय घोर अंधेरे में खुले मैदान में बच्चे एकत्रित होकर बैल किसान खेल खेलते हैं। इनमें अधिकतर बच्चे बैल बनकर खेत रूपी मैदान में फसल चरने का उपक्रम करते हैं, वहीं दो व तीन बच्चे किसान बनकर उन्हें ढूंढने का प्रयास करते हैं। खेल के माध्यम से बच्चों के रूप में भावी किसान तैयार करने का प्रयास किया जाता है।