मन में सद्भावना रखकर एक दूसरे की सहायता करते हुए जीवन जीना भी एक यज्ञ- डॉ. मोहन भागवत

मन में सद्भावना रखकर एक दूसरे की सहायता करते हुए जीवन जीना भी एक यज्ञ- डॉ. मोहन भागवत

मन में सद्भावना रखकर एक दूसरे की सहायता करते हुए जीवन जीना भी एक यज्ञ- डॉ. मोहन भागवतमन में सद्भावना रखकर एक दूसरे की सहायता करते हुए जीवन जीना भी एक यज्ञ- डॉ. मोहन भागवत

अलवर, 18 सितम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि मन में सद्भावना रखकर एक दूसरे की सहायता करते हुए जीवन जीना भी एक यज्ञ है। हमारी संस्कृति यज्ञमय संस्कृति है। यज्ञ में समर्पण का भाव होता है। अपने पास जो है, वो जहां दे रहे हैं, वहीं से आएगा। उन्होंने कहा कि हम यज्ञ में पंच महाभूतों के लिए आहुति देते हैं, लेकिन इनके लिए काम करना भी समझ में आना चाहिए। जैसे वृक्षारोपण का बड़ा अभियान चल रहा है, क्योंकि वृक्षों ने हमको दिया है, वो नष्ट नहीं हो, इसलिए पेड़ लगाना चाहिए। समाज में जो हमारे बंधु हैं, गरीब हैं, पिछड़े हैं, उनकी उन्नति के लिए हमें अपने प्रयास करने चाहिए। अपने पास जो है, वो देकर उनको ऊपर उठाना चाहिए, क्योंकि ये सब हैं, इसलिए हमारी रक्षा होती है। 

डॉ. भागवत मंगलवार को कोटपूतली-बहरोड़ जिले में पावटा के पास बावड़ी स्थित बालनाथ आश्रम में बोल रहे थे। इससे पहले वे आश्रम में चल रहे श्री महामृत्युंजय महायज्ञ में सम्मिलित हुए और देश में सुख-शांति, सुरक्षा और प्रगति के लिए यज्ञ मण्डप में स्थित शिव परिवार का विधिवत पूजन किया। 

डॉ. भागवत ने वर्तमान परिस्थितियों में देश पर आने वाले संकटों का उल्लेख करते हुए कहा कि संकटों में शक्ति नहीं है कि वे भारत को मिटा सकें। भारत जमीन मात्र नहीं है। भारत में सनातन है। भारत के साथ सनातन धर्म है। सनातन धर्म के साथ भारत है। संघ के शताब्दी वर्ष में व्यक्ति निर्माण के बारे में बताते हुए सरसंघचालक ने कहा, बहुत सारे विचार दुनिया में हैं, उनके अनुसार चलने वाले लोग भी इस दुनिया में हैं। परन्तु ‘एक विचार पैदा होकर सौ वर्ष चलने के बाद उन विचारों पर चलकर सत्य सिद्ध करने वाला आदमी उनके यहां नहीं है। हमारे यहां यह कृपा है कि आदिकाल से अभी तक ऐसे अनेकों लोग हुए हैं, जो प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। उनको हम कार्य करते हुए देखते हैं, इसलिए हमारी श्रद्धा रहती है। ऐसा ही एक उल्लेख गुरुदेव के बारे में किया गया है। उनकी कृपा है, इसलिए आज के इस यज्ञ का महत्व समझकर हम अपने जीवन को भी इन सब प्रकारों से, जैसे- बिना किसी भेद के जातिवाद ना देखते हुए, भाषा प्रांत ना देखते हुए एक दूसरे के प्रति स‌द्भावना मन में रखकर एक दूसरे की सहायता करते हुए जीवन जीते हैं, यह भी एक यज्ञ है। इस यज्ञ के बाद वो यज्ञ हमें सतत चालू रखना है। इस भारतभूमि की सेवा करना हमारा कर्तव्य है।

सरसंघचालक डॉ. भागवत ने गुरुपीठ परिसर में बिल्वपत्र का पौधा लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। इस अवसर पर क्षेत्र संघचालक डॉ. रमेश अग्रवाल, क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम, प्रांत प्रचारक बाबूलाल सहित अखिल भारतीय, क्षेत्र, प्रांत के वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे।

इस अवसर पर महंत बस्तीनाथ ने सरसंघचालक को राष्ट्र की समृद्धि, सनातन की विजय तथा सर्व हिन्दू समाज की एकता के भाव को रखते हुए स्वर्णमण्डित सिद्ध श्रीयंत्र भेंट किया साथ ही प्रतीक चिन्ह और दुपट्टा पहनाकर आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए यज्ञ परम्परा का निर्वहन किया जा रहा है। यज्ञ में बिना किसी भेदभाव और छुआछूत के सर्व हिन्दू समाज भाग ले रहा है।

अपने प्रवास के अंतिम दिन सरसंघचालक, स्वयंसेवक रमेश यादव और संघ के वरिष्ठ प्रचारक परमानंद के यहां पहुंचे और परिजनों से आत्मीय परिचय प्राप्त किया। परिवारजनों ने उनका भावपूर्ण स्वागत व सम्मान किया। सरसंघचालक ने संघ के वरिष्ठ प्रचारक परमानंद के निवास स्थान पर निर्माणाधीन मंदिर परिसर के बाहर बिल्वपत्र का पौधा लगाया। इसके बाद अलवर कार्यालय पहुंचे और प्रांत स्तर के कार्यकर्ताओं की बैठक में कार्य की पूछताछ की और देर सायं ट्रेन से दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।

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