हिंदवी स्वराज स्थापना : माता जीजाबाई का सपना जो शिवाजी ने साकार किया

हिंदवी स्वराज स्थापना : माता जीजाबाई का सपना जो शिवाजी ने साकार किया

तृप्ति शर्मा 

हिंदवी स्वराज स्थापना : माता जीजाबाई का सपना जो शिवाजी ने साकार कियाहिंदवी स्वराज स्थापना : माता जीजाबाई का सपना जो शिवाजी ने साकार किया

ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी (1674) के दिन संपन्न हुआ शिवाजी महाराज का राज्यारोहण किसी व्यक्ति का नहीं था, अपितु यह तो घोषणा थी, हिंदवी स्वराज की स्थापना की, हिंदू संस्कृति के पुनरुत्थान की और विश्व धर्म की पुनः प्रतिस्थापना की। सनातन काल से हिंदू राष्ट्र ने जिस आदर्श की परिकल्पना की, वही आदर्श, मानव रूप धरकर सिंहासनारूढ़ हुआ था। आज 20 जून 2024 को हिंदू साम्राज्य दिवस के अवसर पर इस अतुल्य राष्ट्र पुरुष का स्मरण हमारे राष्ट्र के लिए संजीवनी के समान है।

उस समय राष्ट्रमाता जीजाबाई के हृदय में एक कसक थी। वह खिन्न मन से अपने वीर योद्धा, देशभक्त पति शाहजी भोंसले से बार-बार प्रश्न करती थीं -आप मलेच्छों के लिए एक के बाद एक जीत प्राप्त कर रहे हैं, हिंदुओं का ही रक्त बहा रहे हैं, आप क्यों नहीं स्वराज के लिए प्रयत्न करते? शाहजी भी यही चाहते थे, परंतु वह अपने साथियों की पलायनता और विश्वासघात से हतोत्साहित थे। 

हमारी आपसी फूट व ईर्ष्या का दुश्मनों ने सदैव लाभ उठाया है। वही उस समय भी हो रहा था। बीजापुर के बहुत से मराठा सरदारों ने बीजापुर के निजाम की अधीनता स्वीकार की और उनके साथ मिलकर अपने ही भाइयों का घर लूटकर स्वयं का भरने लगे। शाहजी व्यथित मन से जीजाबाई की ओर देखते, परंतु इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते। जीजाबाई पति की मनोदशा समझ गई थीं। उन्होंने पति की विवशता को शक्ति बना, अपने अदम्य साहस और राष्ट्रभक्ति से अपने पुत्र शिवाजी को ऐसे संस्कार दिए कि वे हिंदू धर्म के प्रोज्ज्वल, प्रबल प्राण बन गए। 

दैवीय शक्ति के अवतार बाल शिवाजी राजे अपनी माता से पूछते थे- आप सामने वाले किले पर लगे हरे झंडे को क्यों देखती रहती हैं? आप किन विचारों में खोई रहती हैं? सब लोग इतने डरे सहमे क्यों हैं? यह शहर इतना सुनसान क्यों है? जीजाबाई कुछ ना बोलतीं। परंतु मन में आश्वस्त अवश्य होतीं क्योंकि शिवाजी की इस जिज्ञासा में उन्हें समस्या का समाधान दिखाई देता था। वे रामायण और महाभारत की कहानी सुना कर उन्हें धर्म का मर्म तो समझा ही रही थीं, साथ ही वीर योद्धा व संगठन की कार्य प्रणाली भी सिखा रही थीं। तीर तलवार ही शिवा के खिलौने थे। 11 वर्ष की आयु में शिवाजी एक निपुण योद्धा बन गए और जब पहला किला (तोरणा) विजय किया, तब मात्र 15 वर्ष के थे।

मुगलों के अत्याचार से पीड़ित प्रजा की वेदना को देखकर उनमें विलक्षण शौर्य भर गया। उन्होंने संकल्प लिया कि मातृभूमि को शत्रु पदचापों से अब और आक्रांत नहीं होने दूंगा। और वास्तव में जिसके सिर पर मां भवानी का हाथ हो, इतनी दृढ़ व साहसी मां का साथ हो, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं। शिवाजी को देशभक्ति और शौर्य अपनी माता से, आत्मविश्वास व मनोबल अपने पिता से, तो राजनीति की शिक्षा गुरु से मिली। एक अन्य गुण जो उन्हें सभी वीरों से अलग करता है, वह है उनकी युक्ति। जहां शक्ति काम नहीं आती थी, वहां युक्ति का प्रयोग किया जाता था। यह उनका नैसर्गिक गुण था, जो किसी दिव्य शक्ति से प्रेरित था। आगरा की कैद से फलों की टोकरी में बैठ कर निकल जाना या सिद्धी जोहर के सख्त घेरे को तोड़कर पन्हालगढ़ से निकल जाना कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि वे विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे राह बना लेते थे। वे स्वराज की ओर कदम बढ़ाते जा रहे थे। अफजल खान का वध, लाल महल से शाइस्ताखां को भगाना, अपने पिता को निजाम के बंदीगृह से छुड़वाना, ये सब घटनाएं बताती हैं कि वे निपुण कूटनीतिज्ञ भी थे। उनका मार्ग बहुत कठिन और कष्टप्रद था। स्वराज के लिए आशीर्वाद देते हुए उनके पिता ने उनको सचेत भी किया था कि यह मार्ग बहुत त्याग और कष्ट वाला होगा, जिसको शिवाजी ने सहर्ष स्वीकार किया और जीवन का अधिकतर समय घोड़े की पीठ पर ही बिताया। एक किले से दूसरे किले भगवा फहराते हुए आगे बढ़ते गए। अब हिंदू धर्म में पुनर्चेतना आ गई थी। शिवाजी की सफलता से प्रजा खुशहाल हो गई थी। शिवाजी महाराज ने 1674 में रायगढ़ के किले में राज्याभिषेक के साथ छत्रपति की पदवी ग्रहण की। माता जीजाबाई का चिर संचित सपना “हिंदू पद पादशाही” स्थापित करना, साकार हो गया। शिवाजी के शौर्य से दिल्ली तक कांप उठी। 

वे धर्म रक्षा के लिए सूर्य बनकर चमके।

उन्होंने स्वराज के लिए निजी जीवन के सारे सुख त्याग दिए। राज्य को सुदृढ़ बनाने के लिए समुद्री मार्ग सुरक्षित किए।

और हम आज शायद स्वतंत्रता, भारत के ‘स्व’ और गौरव का अर्थ ही भूल गए। हिंदू साम्राज्य स्थापना दिवस के 350 वर्षों के बाद भी हिंदुत्व की बात करने वालों को शत्रु से अधिक अपने ही भाइयों का विरोध सहना पड़ता है। अभी भी समय है, हम शिवाजी महाराज द्वारा साकार किए गए हिंदू पद पादशाही के भाव को सुरक्षित रखने का प्रण करें। अपने स्वत्व का ध्यान और अभिमान करें।

Print Friendly, PDF & Email
Share on

1 thought on “हिंदवी स्वराज स्थापना : माता जीजाबाई का सपना जो शिवाजी ने साकार किया

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *