53 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद हिन्दुओं को मिला लाक्षागृह

53 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद हिन्दुओं को मिला लाक्षागृह

53 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद हिन्दुओं को मिला लाक्षागृह

53 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद हिन्दुओं को मिला लाक्षागृह

बागपत में लाक्षागृह और बदरुद्दीन शाह की मजार विवाद के मामले में एडीजे कोर्ट ने हिन्दुओं के पक्ष में निर्णय सुनाया है। कोर्ट के निर्णय के अनुसार मामले में हिन्दू पक्ष की जीत हुई है। कोर्ट ने 100 बीघा जमीन का अधिकार हिन्दुओं को दे दिया है।

मामले में कोर्ट ने 10 से अधिक हिन्दू पक्ष के गवाहों की गवाही दर्ज की थी। सिविल जज शिवम द्विवेदी ने मुस्लिम पक्ष का केस खारिज कर दिया था। पिछले 50 से अधिक वर्षों से हिन्दू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के बीच कोर्ट में मुकदमा चल रहा था। यह महाभारत काल से जुड़े लाक्षागृह का मामला है, जिसे मुस्लिम समाज लाक्षागृह नहीं, बल्कि शेख बदरुद्दीन की मजार बताता था। इसका वाद 1970 से बागपत सिविल कोर्ट में चल रहा है। जिस पर बागपत की सिविल कोर्ट ने निर्णय सुनाया।

31 मार्च, 1970 में दर्ज इस वाद की सुनवाई 05 फरवरी, 2024 को पूरी हुई। इतने लंबे समय में अदालत में लगभग 875 तारीखें लगीं, जिनमें वादी और पैरोकारों ने अपने-अपने तर्क रखे। हिन्दू पक्ष को अपनी ही प्राचीन धरोहर को पाने के लिए 53 वर्ष आठ माह 20 दिन का समय लग गया, तब जाकर सिद्ध हुआ कि यह महाभारतकाल का लाक्षागृह ही है।

बागपत के बरनावा क्षेत्र की पहचान महाभारत में उल्लेखित वारणावत के रूप में की गई है। बरनावा हिंडन और कृष्णा नदी के किनारे बसा गांव है। यहां लगभग 100 फीट ऊंचा और 100 बीघा जमीन में एक बड़ा टीला है। पौराणिक मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह बनवाया गया था। इस टीले के पास एक गुफा भी है। बताया जाता है कि यही वह प्राचीन गुफा है, जहां आग की लपटों से बचने के लिए पांडवों ने शरण ली थी। पुरातत्व विभाग ने क्षेत्र का सर्वेक्षण भी किया था। यहां महाभारत कालीन सभ्यता और संस्कृति के अवशेष भी एएसआई को मिल चुके हैं। यह जगह एएसआई के संरक्षण में ही है। लाक्षागृह के पास एक गुरुकुल और कई भव्य यज्ञशालाएं भी हैं।

1952 में हस्तिनापुर एएसआई डायरेक्टर की देखरेख में यहां सर्वे हुआ था। यहां 4500 वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन यानी मृदुभांड भी मिले थे। दूसरी बार 2018 में विवाद उभरने के बाद टीले का उत्खनन भी शुरू हुआ था। कई मूर्तियां और हड्डियां भी यहां मिली हैं, जो प्राचीन काल के अवशेषों की ओर इशारा करती हैं।

मुस्लिम पक्ष इसे शेख बदरुद्दीन की मजार और उनकी कब्रिस्तान का क्षेत्र बताता है। 1970 में हिन्दू मुस्लिम पक्ष के बीच विवाद के बाद यह मामला मेरठ सिविल कोर्ट में दायर हुआ था, फिर बागपत एडीजे कोर्ट स्थानांतरित किया गया। महाभारत सर्किट के अंतर्गत स्थल को विकसित करने की योजना यूपी सरकार ने बनाई है।

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