इतिहास से अनभिज्ञ मुस्लिम शासकों के वंशज

अजय सेतिया
इतिहास से अनभिज्ञ मुस्लिम शासकों के वंशज
अबू आजमी का आभार जताना चाहिए कि उन्होंने औरंगजेब के गड़े मुर्दे उखाड़ने का अवसर दे दिया है। आप को भारत तो क्या दुनियाभर में औरंगजेब या बाबर की आलोचना करता हुआ कोई मुसलमान नहीं मिलेगा। इसलिए अगर अबू आजमी ने औरंगजेब की प्रशंसा की है, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए या उसके बाद आल इंडिया मजलिस-ए-इतिहाद की बिहार ईकाई के अध्यक्ष अफ्तरूल इमाम ने उन की प्रशंसा के पुल बांधे तो आश्चर्य क्यों करना चाहिए। लेकिन देखना यह चाहिए कि औरंगजेब की प्रशंसा में झूठ का सहारा क्यों लिया जा रहा है। जैसे अबू आजमी ने कहा कि औरंगजेब के समय भारत सोने की चिड़िया था और औरंगजेब ने भारत की सीमाएं अफगानिस्तान से लेकर बर्मा तक फैला दी थीं, तो ये दोनों ही झूठ हैं। भारत इस तरह सीमाओं में बंधा हुआ देश नहीं था, जगह जगह हिन्दू शासकों की परिधि थी, लेकिन भारत सांस्कृतिक रूप से एक राष्ट्र इन सीमाओं में पहले से था। यह अवश्य कहा जा सकता है कि हिन्दू शासकों को परास्त करके औरंगजेब ने अपना शासन वहां से वहां तक बढ़ा लिया था। जहां तक भारत के सोने की चिड़िया होने की बात है, तो इस का वर्णन तो ऋग्वेद तक में आता है, महाभारत में आता है, तब तो इस्लाम का नामोनिशान तक नहीं था। पहले अरब और फिर मुगल आक्रान्ताओं ने भारत पर हमले ही इसलिए किए थे, क्योंकि भारत सोने की चिड़िया था। इसी तरह अफ्तरूल इमाम का यह कहना कि औरंगजेब ने टोपियां सिल कर अपनी आजीविका चलाई, उसने करों का प्रयोग स्वयं के लिए नहीं किया, सिवा झूठ के और कुछ नहीं है। कुछ इतिहासकारों ने अपने एजेंडे के अंतर्गत औरंगजेब को महान बताने के लिए इस तरह के बेसिर पैर के झूठ गढ़े। अगर यह सच है, तो फिर औरंगजेब के हरम में 3772 औरतें थीं, उनका खर्चा कौन उठाता था, क्या वह भी औरंगजेब टोपियां सिल कर वहन करता था?
कांग्रेस के सांसद इमरान मसूद और कांग्रेस के एक बड़े नेता उदय राज ने भी औरंगजेब की प्रशंसा के पुल बांधे हैं, हालांकि राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के स्तर से कोई टिप्पणी नहीं आई है। न उन्होंने औरंगजेब की प्रशंसा की है, न अबू आजमी और अपने दोनों नेताओं के बयानों का खंडन किया है। द्रमुक नेता जब सनातन धर्म के विरुद्ध बोलते हैं, तब भी कांग्रेस के शीर्ष नेता चुप्पी साध लेते हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने न सिर्फ अबू आजमी के बयान का समर्थन किया है, बल्कि उससे भी आगे बढ़कर कहा कि कुछ लोग अगर सोचते हैं कि कि अबू आजमी के विधानसभा से निलंबन से सच की जुबान पर कोई लगाम लगा सकता है, तो वे गलत सोचते हैं। इसका अर्थ है कि अबू आजमी की तरह अखिलेश यादव भी औरंगजेब को क्रूर शासक नहीं मानते, वह भी अबू आजमी की तरह औरंगजेब को महान शासक मानते हैं। अखिलेश यादव ने साबित किया है कि भारत के तथाकथित सेक्युलर हिन्दू नेता मुस्लिम वोट बैंक के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहते हैं। भारत का विभाजन रिलिजन के आधार पर हुआ, जिन लोगों ने पाकिस्तान की मांग के लिए वोट किया, उनमें से अधिकतर भारत में रह गए, क्योंकि भारत के मुसलमान स्वयं को मुगल शासकों का वंशज मानते हैं और उनके हर बुरे काम को भी अच्छा मानते हैं। इनमें कसूर शायद उन मुसलमानों का भी नहीं है, जो रिलिजन के आधार पर पाकिस्तान बन जाने के बाद भी भारत में रह गए। बल्कि कसूर स्वाधीनता के बाद मुगलों को महान बनाने के लिए लिखवाए गए इतिहास का है। वरना देश की स्वाधीनता से पहले से की पुस्तकों में औरंगजेब जैसे मुगल शासकों को क्रूर शासक के तौर पर ही लिखा गया था। बल्कि दुनिया भर के इतिहासकारों ने भारत के मुगलकाल को इतिहास के रक्तरंजित काल के रूप में लिखा है। इतिहास की सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए था, लेकिन हमने सच्चाई को स्वीकार नहीं किया। बल्कि स्वाधीनता के बाद इतिहास से छेड़छाड़ कर करके औरंगजेब जैसे क्रूर मुगल शासकों का महिमामंडन किया, जिससे भारत में रह गए मुसलमानों को ही नहीं हिन्दुओं को भी भ्रमित किया गया।
इतिहास के प्रोफेसर डाक्टर मक्खन लाल बताते हैं कि औरंगजेब को जानने के लिए दो प्रामाणिक पुस्तकें हैं, एक है ‘फतवा-ए-आलम गिरी’ और दूसरी है ‘मासर-ए-आलम गिरी’, मासर-ए-आलम गिरी औरंगजेब के दरबार का ऑफिशियल कोर्ट का रिकॉर्ड है। जिसे स्वयं शाकीम मुस्ताख खान ने फारसी में लिखा था, जो कि औरंगजेब के दरबार की आधिकारिक कार्यवाही लिखते थे। सर यदुनाथ सरकार ने उसका जस का तस अंग्रेजी में अनुवाद किया है। डॉ. मक्खन लाल का दावा है कि किसी ने उनके अनुवाद या पुस्तक को अभी तक चैलेंज नहीं किया है। इस पुस्तक के हवाले से उन्होंने कहा है कि औरंगजेब ने एक शासक के नाते सिर्फ लूटपाट के लिए नहीं बल्कि इस्लाम को स्थापित करने के लिए मन्दिर तोड़े। इसी पुस्तक में लिखा है कि 2 सितंबर 1669 को दरबार में बताया गया कि उसके आदेश के अनुसार काशी के विश्वनाथ मन्दिर को तोड़ दिया गया है। इसी पुस्तक में लिखा गया है कि उसके आदेश से प्रोफेट मोहम्मद में आस्था स्थापित करने के लिए मथुरा का मन्दिर तोड़ दिया गया है। मन्दिर में रखी सोने से लथपथ मूर्तियों को आगरा ला कर बेगम साहिब की मस्जिद की सीढ़ियों में लगा दिया गया है, और मथुरा का नाम बदल कर इस्लामाबाद कर दिया गया है। इसलिए यह तर्क दिया जाना कि हर शासक क्रूर होता है, इसलिए उसने क्रूरता की होगी, ठीक नहीं है।
औरंगजेब की क्रूरताएं इस्लाम के लिए लिए थीं, वह सारी दुनिया को मुस्लिम बना देना चाहता था। इसलिए उसने जितना संभव हो सका मन्दिर तोड़े। यह जो कहा जाता है कि औरंगजेब ने मस्जिदें भी तोडीं, बिलकुल आधारहीन है। यह जो कहा जाता है कि औरंगजेब ने मन्दिर बनवाए, वह भी पूरी तरह गलत है। इसका कोई प्रमाण नहीं है। वह सिर्फ बादशाह बनने के बाद क्रूर था, ऐसा नहीं है, बल्कि बादशाह बनने से पहले भी वह हिन्दू विरोधी था। बादशाह बनने से पहले ही उसने मन्दिरों को तुड़वाया, अकबर ने हिन्दुओं पर जजिया बंद कर दिया था, औरंगजेब ने दुबारा हिन्दुओं पर जजिया लगाया और उन हिन्दू रिवेन्यू अफसरों को हटा दिया गया, जो मुसलमान बनने को तैयार नहीं हुए।
औरंगजेब के हिन्दू विरोधी और क्रूर होने की एक मिसाल उसके बादशाह बनने से पहले की भी है। शाहजहां ने औरंगजेब को गवर्नर बना कर गुजरात भेजा था। गुजरात में एक जौहरी था शान्ति दास, जो मुगल बादशाहों को हीरे जवाहारात को बेचता था। उसने एक बहुत ही सुंदर भव्य मन्दिर बनाया था। औरंगजेब ने उस मन्दिर के एक हिस्से को तुड़वा दिया, और उसमें मस्जिद बनवा दी। इतना ही नहीं, मन्दिर में गाय की हत्या भी करवाई। शान्ति दास, क्योंकि हीरों का व्यापारी था, उसके बादशाह से भी संबंध थे, उसने शाहजहां को चिट्ठी लिखी कि उसका क्या कसूर है कि उसका मन्दिर तोड़ा गया और अपवित्र किया गया। हालांकि शाहजहां ने स्वयं 88 मन्दिरों को तोड़ने का आदेश दिया था। इसके बावजूद गुजरात व्यापार के लिए महत्वपूर्ण था, इसलिए शाहजहां ने औरंगजेब को गुजरात से वापस बुलाकर वहां अपने दूसरे बेटे दारा शिकोह को गवर्नर बना कर भेज दिया। शान्ति दास को मन्दिर का स्थान वापस देने के आदेश भी हुए, लेकिन शान्ति दास ने कहा कि जहां गौहत्या हो गई है, वह स्थान अपवित्र हो चुका है। औरंगजेब अपने पिता शाहजहां को बंदी बनाकर बादशाह बना था। इसीलिए अखिलेश यादव ने जब अपने पिता मुलायम सिंह को अध्यक्ष पद से हटा कर समाजवादी पार्टी की सल्तनत अपने हाथ में ली थी, तो उन्हें औरंगजेब कहा गया था। औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह की हत्या करके उसका सिर शाहजहां को जेल में तोहफे के तौर पर भेज दिया था। जिस तीसरे भाई के साथ षड्यंत्र करके औरंगजेब ने दारा शिकोह को मरवाया, बाद में अपने उस तीसरे भाई की भी हत्या कर दी, अपनी बहन की भी क्रूरता से हत्या कर दी थी। इसीलिए शाहजहां ने लिखा था कि खुदा ऐसा कमबख्त बेटा किसी को न दे। मासर-ए-आलम गिरी में उदयपुर के मन्दिरों की पूरी सूची है। जिस संभाजी महाराज पर बनी फिल्म ‘छावा’ में औरंगजेब का काला चेहरा उजागर किया गया है, जिस पर अबू आजमी ने उन्हें क्रूर मानने से मना कर दिया।