टमाटर-प्याज के साथ टोकरी में बम लेकर चलती थीं क्रांतिकारी दुर्गा भाभी

टमाटर-प्याज के साथ टोकरी में बम लेकर चलती थीं क्रांतिकारी दुर्गा भाभी

रुचि श्रीमाली 

टमाटर-प्याज के साथ टोकरी में बम लेकर चलती थीं क्रांतिकारी दुर्गा भाभीटमाटर-प्याज के साथ टोकरी में बम लेकर चलती थीं क्रांतिकारी दुर्गा भाभी

दुर्गा भाभी भारत की एक महान स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी थीं। उनके पति भगवती चरण बोहरा क्रान्तिकारी संगठन के सदस्य थे। इसी कारण से अन्य सदस्य उन्हें भाभी (बड़े भाई की पत्नी) कहकर बुलाते थे। इस तरह, भारतीय क्रांतिकारियों में उनका नाम “दुर्गा भाभी” पड़ गया। उनका पूरा नाम दुर्गावती देवी था।

दुर्गावती का जन्म प्रयाग में न्यायाधीश पंडित बाँके बिहारी नागर के घर 7 अक्टूबर 1907 को हुआ था। जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माँ का देहान्त हो गया। उनका लालन पालन बुआ ने किया। 11 वर्ष आयु में ही दुर्गावती का विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा से हो गया। भगवती चरण बोहरा के पिता शिवचरण रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे। उन्हें ‘रायबहादुर’ की उपाधि भी मिली थी। किन्तु भगवती के मन में तो शुरू से ही अंग्रेजों को बाहर निकालने की धुन सवार थी। अतः वे क्रान्तिकारी आन्दोलन में शामिल हो गये। दुर्गा भाभी ने भी पति के काम में साथ दिया। श्वसुर शिवचरण ने दुर्गा भाभी को 40 हज़ार व पिता बांके बिहारी ने 5 हज़ार रुपये संकट के दिनों में काम आने के लिए दिए थे। यह राशि दंपत्ति ने क्रांतिकारी गतिविधियों में लगा दी।

मार्च, 1926 में भगवतीचरण बोहरा व भगतसिंह ने संयुक्त रूप से ‘नौजवान भारत सभा’ का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की। सैकड़ों नौजवानों ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राणों को बलिदान वेदी पर चढ़ाने की शपथ ली। भगतसिंह व भगवतीचरण बोहरा सहित सभी सदस्यों ने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए।

बोहरा बम बनाने में विशेषज्ञ थे, तो दुर्गा देवी भी बम बनाना और पिस्तौल चलाना जानती थीं। बोहरा कार्य से बाहर या भूमिगत रहते, तो पीछे सूचना के आदान-प्रदान का काम दुर्गा भाभी ही करतीं। वे बम व बम बनाने की सामग्री भी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जातीं। महिला होने से पुलिस को उन पर शक नहीं होता था। कहते हैं कि वे टमाटर-प्याज के साथ टोकरी में बम लेकर चलती थीं।

जब क्रान्तिवीरों ने लाहौर में पुलिस अधिकारी साण्डर्स का दिनदहाड़े वध किया, तो उनकी खोज में पुलिस चप्पे- चप्पे पर तैनात हो गयी। ऐसे में उन्हें लाहौर से निकालना बहुत आवश्यक था। तब दुर्गा भाभी सामने आयीं। भगतसिंह ने बाल कटा लिए, हैट लगा एक आधुनिक युवक बन गये, उनके साथ दुर्गा भाभी अपने छोटे शिशु शचीन्द्र को गोद में लेकर बैठीं। सुखदेव नौकर बने, चन्द्रशेखर आजाद ने भी वेष बदल लिया। इस प्रकार पुलिस की आँखों में धूल झोंककर वे लाहौर से निकल पाए। इतना ही नहीं 1929 में जब भगतसिंह ने विधानसभा में बम फेंकने के बाद आत्मसमर्पण किया था, तो दुर्गा भाभी ने भगतसिंह और उनके साथियों की जमानत के लिए अपने सारे गहने तक बेच दिए थे।

दुर्गा भाभी के जीवन में सर्वाधिक दुखद क्षण तब आया, जब उनके पति भगवती बोहरा की रावी के तट पर बम परीक्षण करते समय 28 मई, 1930 को मृत्यु हो गई। साथियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दे, वहीं उनकी समाधि बना दी। दुर्गा भाभी पति के अन्तिम दर्शन भी नहीं कर सकीं। फिर भी धैर्य नहीं खोया। क्रान्तिकारी आन्दोलन में सहयोग देती रहीं।

दुर्गा भाभी को भारत की ‘आयरन लेडी’ भी कहा जाता है। बहुत ही कम लोगों को यह बात पता होगी कि जिस पिस्तौल से चंद्रशेखर आजाद ने स्वयं को गोली मारकर स्वबलिदान दिया था, वह पिस्तौल दुर्गा भाभी ने ही आजाद को दी थी। 12 सितम्बर 1931 को वे पुलिस की पकड़ में आ गईं। उन्हें 15 दिन तक जेल में और फिर तीन वर्षों तक शहर में ही नजरबन्द कर दिया गया।

भगतसिंह, सुखदेव, आजाद, राजगुरू की मृत्यु के बाद दुर्गा भाभी अकेली पड़ गईं। वे 1936 में गाजियाबाद में प्यारेलाल कन्या विद्यालय में पढ़ाने लगीं। कुछ समय तक वे कांग्रेस से भी जुड़ीं। किन्तु शीघ्र ही उससे उनका मोहभंग हो गया। फिर 20 जुलाई 1940 को लखनऊ में उन्होंने एक बाल विद्यालय खोला। लखनऊ में ही उन्होंने “शहीद स्मारक शोध केन्द्र एवं संग्रहालय” की भी स्थापना की। अपने अंतिम समय तक वे गाजियाबाद में गरीब बच्चों को पढ़ाती रहीं। 15 अक्टूबर 1999 को उन्होंने देवलोक को प्रस्थान किया।

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