श्रीराम जन्मभूमि का इतिहास : 492 वर्षों में आए कई मोड़

श्रीराम जन्मभूमि का इतिहास : 492 वर्षों में आए कई मोड़

श्रीराम जन्मभूमि का इतिहास : 492 वर्षों में आए कई मोड़श्रीराम जन्मभूमि का इतिहास : 492 वर्षों में आए कई मोड़

  • 84 खम्भों पर आधारित मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था ‘विक्रमादित्य’ ने
  • औरंगजेब ने पूजा वाले चबूतरे पर खुदवाया था गड्ढा
  • बाबरनामा में उल्लेख, मंदिर तोड़ बांधी थी मस्जिद

जयपुर। अयोध्या राम मंदिर के 492 वर्षों के इतिहास में 5 अगस्त 2020 का दिन हमेशा हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में लिखा जा चुका है। किंतु इससे पूर्व उस इतिहास को भी संपूर्ण भारत व भारतीयों को जानना चाहिए जिस कारण से यह दिन इतिहास के पन्नों पर अमिट हो गया। इसकी बानगी भारतीयों के मुख से निकल रहे ‘जय श्रीराम’, ‘जय श्रीराम’ नारों के रूप में चारों और गूंज रही है।

वैसे तो 492 वर्षों के इतिहास में कई मोड़ आए। विशेषतौर से 9 नवंबर 2019 का दिन जब पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। अयोध्या जमीन विवाद मामला देश के सबसे लंबे चलने वाले केस में से एक रहा। इस विवाद की नींव कब पड़ी और अब तक के इतिहास के अहम पड़ाव कौन से रहे यह जानना और भी आवश्यक हो जाता है।

लगभग 2000 वर्ष पूर्व शकारि विक्रमादित्य ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर 84 खम्भों पर आधारित एक भव्य श्रीराम मंदिर बनवाया था। महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद ने 1033 में अयोध्या पर आक्रमण कर दिया। किंतु आसपास के राजाओं और दिगम्बरी व अखाड़े के साधुओं ने मिलकर उसे पराजित कर दिया। इसके बाद बहराइच में राजा सुहेलदेव के साथ हुए युद्ध में सालार का वध कर दिया गया। इसके बाद मुगलों ने राम मंदिर पर आक्रमण किया।

बाबर का ‘राम मंदिर’ तोड़ने का घृणित आदेश—
यहबात है सन 1528 की, जब मुगल बादशाह बाबर ने अपने सिपहसालार मीर बांकी को श्रीराम मंदिर तोड़ने का घृणित आदेश दिया और मंदिर के ऊपर एक मस्जिद का निर्माण करवाया। लखनऊ गजेटियर के अंक 36 और पृष्ठ संख्या 3 के अनुसार ”श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर को बचाने के लिए हिन्दुओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी। 1 लाख 74 हजार हिन्दू वीरों की लाशें गिर जाने के बाद ही मीर बांकी मंदिर में प्रवेश कर सका। तोप के गोले दागकर ही उस मंदिर की दीवारों को गिराया जा सका”

उस समय बद्रीनाथ यात्रा पर जा रहे भीठी नरेश मेहताबसिंह को जैसे ही मंदिर पर आक्रमण की खबर लगी, वे तीर्थयात्रा स्थगित कर अपने 1 लाख 74 हजार सैनिकों सहित युद्ध में चले गए। लगभग 70 दिनों तक चले इस युद्ध में मेहताबसिंह भी अपने हजारों सैनिकों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए।

इतिहास के पन्ने बताते हैं कि बाबर के समय जिसका कार्यकाल मात्र तीन साल रहा (1528 से 1530), में चार युद्ध हुए। जिनमें भीठी नरेश मेहताबसिंह, हंसवर के राजगुरु देवदीन पांडेय और हंसवर के राजा रणविजय सिंह के साथ बाबर का भीषण युद्ध हुआ।

मंदिर तोड़ इसी मलबे से बांधी मस्जिद—
बाबर द्वारा लिखित आत्मकथा ‘बाबरनामा’ की पृष्ठ संख्या 173 पर उल्लेख मिलता है कि ”हजरत फजल अब्बास मूसा आशिक्रात कलंदर की अनुमति से इस मंदिर को तोड़कर इसी की सामग्री और मलबे से मस्जिद बांधी गई है।”

बाबर के बाद इसके बेटे हुमायूं के शासनकाल में (1530 से 1556) के मध्य 10 युद्ध हुए। इनमें राजा रणविजय सिंह की महारानी जयकुंवरि व स्वामी महेशानंद ने निरन्तर प्रयास कर तीन वर्षों के लिए श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त करवाया। लेकिन आगे चलकर वे भी युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए। फिर आया हूमायूं का बेटा अकबर, इसके समय (1556-1600) में लगभग 20 युद्ध हुए।

अकबर के काल में कोयंबटूर के रामानुज सम्प्रदाय के स्वामी बलराम आचार्य ने जन्मभूमि को मुक्त करवाने के प्रयास किए। उनके नेतृत्व में हिन्दू समाज ने 20 बार युद्ध किया। अंत में अकबर ने पराजय स्वीकार कर वहां पूजा पाठ करने दी। हिन्दुओं के प्रबल सामर्थ्य के चलते वहां शाहजहां के काल तक निर्विघ्न पूजा होती रही।

औरंगजेब ने पुन: ध्वस्त किया राम मंदिर—
किंतु औरंगजेब के काल (1658-1707) में सर्वाधिक 30 बार युद्ध हुए। जिनमें बाबा वैष्णवदास, गुरु गोविन्द सिंह जी, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदम्बा सिंह आदि ने हिन्दू पक्ष की ओर से युद्ध किए।

औरंगजेब ने श्रीराम मंदिर को पुनः ध्वस्त किया। उस समय बाबा वैष्णव दास व गुरु गोविन्द सिंह जी ने मुगल सेना को बुरी तरह से हराया। 1664 में जब औरंगजेब स्वयं बड़ी सेना लेकर आया और उस चबूतरे पर गड्ढा खुदवा दिया, जिस पर ‘रामलला’ की पूजा होती थी।

जब मौलवी ने मुस्लिमों को समझाया ‘राम की पैदाइशी जगह सुपुर्द करें’—
अंग्रेजी शासन के दौरान कर्नल हंट ने लखनऊ गजेटियर में लिखा ”हिन्दुओं के निरंतर हमलों से तंग आकर नवाब ने हिन्दू- मुसलमान को साथ साथ भजन पूजा और नमाज़ की अनुमति दी, लेकिन संघर्ष चलता रहा।”

इधर, सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीयता की भावना चरम पर थी। एक मौलवी आमीर अली ने फैजाबाद और अयोध्या के मुसलमानों को एकत्र कर बहुत समझाया। ”बहादुर शाह को ‘बादशाह’ हिन्दुओं ने बनाया है। वे हमारे लिए अपना खून बहा रहे हैं। इसलिए श्रीराम की पैदाइशी जगह पर जो बाबरी इमारत बनी है, वह उन्हें सुपुर्द कर देनी चाहिए”।

अंग्रेजों ने गुस्से में दे दी आमीर अली और बाबा रामचरण दास को फांसी-
किंतु अंग्रेजी सरकार यह सहन न कर सकी। उसे देश में अमन- चैन नहीं, अशांति और भय का वातावरण चाहिए था। तब सरकार ने मौलवी आमीर अली और उनके मित्र बाबा रामचरणदास को 18 मार्च 1858 को फांसी दे दी। सुल्तानपुर गजेटियर में कर्नल मार्टिन ने इस घटना का उल्लेख किया है। वे लिखते हैं कि ”अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बनाई गई बाबरी मस्जिद को मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं को वापस किए जाने का समाचार सुनकर हम लोग घबरा गए। हमें विश्वास हो गया कि हिंदुस्तान से अब अंग्रेज समाप्त हो जाएंगे। लेकिन अच्छा हुआ कि आमीर अली और बाबा रामचरण दास को फांसी पर लटका दिया गया।”

किंतु भारत के लोग चुप नहीं बैठे। बाबा फकीर सिंह खालसा के नेतृत्व में 30 नवंबर 1858 को दो दर्जन निहंग सिखों ने ढांचे पर मुस्लिमों को हटाकर कब्जा कर लिया और हवन यज्ञ करने के साथ ही दीवारों पर ‘राम नाम’ भी लिख दिया। इसको लेकर तत्कालीन अवध के थानेदार शीतल दुबे ने बाबरी के मुस्लिम अधिकारी की शिकायत पर 25 निहंग सिखों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की थी। राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की कॉपी की पृष्ठ संख्या 164 पर इस एफआईआर का उल्लेख किया गया है।

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