दरक रहा है इंडी एलायंस
अजय सेतिया
दरक रहा है इंडी एलायंस
लोकसभा चुनावों में ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, शरद पवार और स्टालिन के चलते इंडी एलायंस में नई जान आ गई। ऐसा नहीं है कि इसमें कांग्रेस की भूमिका नहीं है। काग्रेस ने भी केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में अपने बूते पर बेहतर प्रदर्शन करके दिखाया है। कांग्रेस को मिली 99 सीटों में से इन छह राज्यों में कांग्रेस ने 51 सीटें हासिल की हैं। अखिलेश यादव के साथ उत्तर प्रदेश में, शरद पवार के साथ महाराष्ट्र में और स्टालिन के साथ तमिलनाडु में गठबंधन के चलते कांग्रेस ने 27 सीटें हासिल की हैं। अगर कांग्रेस का इन क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन नहीं होता तो, कांग्रेस 70 के आसपास ही अटक जाती। लेकिन चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया कि जैसे राहुल गांधी के प्रभावशाली नेतृत्व के चलते इंडी एलायंस को 233 सीटें मिली हैं, इस बात का एहसास ममता बनर्जी को चुनावों से पहले ही हो गया था, इसलिए उन्होंने बंगाल में कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग नहीं किया। उनकी आशंका के अनुसार ही विपक्ष के नेता का दर्जा प्राप्त करने के बाद राहुल गांधी ने स्वयं को इंडी एलायंस के सभी दलों का नेता मानना शुरू कर दिया है। हालांकि यह बात सही है कि इंडी एलायंस के नेताओं की बैठक में राहुल गांधी को विपक्ष के नेता का पद संभालने का आग्रह किया गया था, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह इंडी एलायंस के घटक दलों के नेताओं को दिशा निर्देश देना शुरू कर दें। पिछले दिनों जब राहुल गांधी के इशारे पर कांग्रेस के सांसद वेल में आ गए थे, तो उन्हें अखिलेश यादव को भी अपने सांसदों को वेल में भेजने का इशारा करते देखा गया, जबकि अखिलेश यादव इसके पक्ष में कतई नहीं थे। राहुल गांधी के इस तरह डिक्टेट करने की शैली से इंडी एलायंस के दो बड़े नेता अखिलेश यादव और ममता बनर्जी असहज हैं। 27 जुलाई को नीति आयोग की बैठक में किया गया ममता बनर्जी का ड्रामा इंडी एलायंस के भीतर चल रही गुटबाजी का ही परिणाम था। हालांकि इसे देखा इस नजर से गया कि उन्होंने इस मंच का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने के लिए प्रयोग किया। उन्होंने नीति आयोग की बैठक से यह कहते हुए बहिष्कार कर दिया कि उनका माइक बंद कर दिया गया था। उन्हें बोलने नहीं दिया गया, बैठक में उन्हें बोलने नहीं दे कर उनकी नहीं, बल्कि बंगाल की बेइज्जती की गई है। बैठक में ऐसा कुछ हुआ या नहीं हुआ, उसे उन्होंने बंगाल की अस्मिता से जोड़ दिया। उनका आरोप था कि बाकी मुख्यमंत्री 20-20 मिनट बोल रहे थे, लेकिन उन्हें सिर्फ पांच मिनट ही बोलने दिया गया। यह बात उन्होंने नीति आयोग के कार्यालय से निकल कर संसद मार्ग पर मीडिया के सामने कही थी। हालांकि ममता बनर्जी बैठक में जाएँगी और वहां से बहिष्कार करके आएंगी, यह समाचार एक दिन पहले ही मीडिया में आ चुका था। यह खबर भी आ चुकी थी कि वह बंगाल की मांगों के अलावा बजट में गैर एनडीए शासित राज्यों के साथ हुए तथाकथित भेदभाव को बैठक में उठाएंगी। और यह हुआ भी, ममता बनर्जी ने बैठक में इस मुद्दे को उठाया और यह भी कहा कि वह बंगाल के साथ साथ सभी गैर एनडीए शासित राज्यों की ओर से बोल रही हैं। उन्होंने यह दर्शाने का प्रयास किया कि वह इंडी एलायंस की नेता के तौर पर बैठक में बोल रही हैं और उन सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं, जिनके मुख्यमंत्रियों ने बैठक का बायकाट किया है। बैठक के भीतर से उन्होंने एक बड़ा मैसेज दिया है, मैसेज यह है कि वह राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती देती हैं। इंडी एलायंस के मुख्यमंत्रियों से बैठक का बायकाट करवाने का निर्णय राहुल गांधी का था। ममता बनर्जी ने राहुल गांधी के निर्णय को नहीं माना और यह संदेश दिया कि वह इंडी एलायंस के बाकी मुख्यमंत्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
नीति आयोग की बैठक में माइक बंद कर देने का ड्रामा भी ममता बनर्जी ने राहुल गांधी की बराबरी के लिए किया है, जो राहुल गांधी लोकसभा में कई बार कर चुके हैं। माइक बंद कर देने वाला यह ड्रामा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में खूब बिक रहा है। राहुल गांधी इस ड्रामे से अंतर्राष्ट्रीय अखबारों में कई बार सुर्खियाँ बन चुके हैं। असल लड़ाई राहुल गांधी और ममता में चल रही है कि नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा गालियाँ कौन निकाल सकता है। जबकि सच्चाई यह है कि बैठक में किसी का भी माइक बंद नहीं किया गया था। बल्कि ममता बनर्जी को आउट आफ टर्न बोलने दिया गया था। शेड्यूल के अनुसार ममता बनर्जी को दोपहर बाद बोलना था, लेकिन वह पहले बोलने पर अड़ गईं, तो उन्हें आउट आफ टर्न बोलने दिया गया। हर मुख्यमंत्री का समय पहले से निर्धारित था जिसे उनके सामने रखी स्क्रीन पर दर्शाया गया था, किसी भी मुख्यमंत्री को उसका टाइम समाप्त हो जाने के बाद बोलने से नहीं रोका गया, सिर्फ उसके सामने रखी स्क्रीन पर टाइम आउट लिखा आ गया था। ममता बनर्जी ने अपने भाषण में नरेंद्र मोदी पर तानाशाही करने का आरोप लगाया, उन्होंने बजट में राज्यों के साथ भेदभाव का मुद्दा भी उठाया और यह भी कहा कि वह विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों की ओर से बोल रही हैं। जबकि उन्हें राहुल गांधी या अन्य किसी मुख्यमंत्री ने बैठक में उनकी तरफ से बोलने को नहीं कहा था। साफ़ है कि ऐसा कह कर वह राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती दे रही थीं।
इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि ममता बनर्जी ने इंडी एलायंस के भीतर भारी गुटबाजी शुरू कर दी है। नीति आयोग की बैठक में जाने से पहले वह दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर जा कर जेल में बंद अरविन्द केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल से मिलीं और एक मैसेज दिया कि वह केजरीवाल के साथ हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण घटना यह हुई कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी बैठक में शामिल होने के संकेत दिए थे, हालांकि राहुल गांधी के फोन के बाद वह भी मीटिंग में नहीं आए। ममता बनर्जी राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं, इसलिए सिर्फ इतना नहीं है कि जब इंडी एलायंस के मुख्यमंत्रियों ने बैठक के बायकाट की घोषणा की तो उन्होंने राहुल गांधी का निर्णय मानने से मना कर दिया, बल्कि इंडी एलायंस के भीतर वह अखिलेश यादव, अरविन्द केजरीवाल और हेमंत सोरेन को साथ लेकर एक ग्रुप बना रही हैं। अलग लाइन अपनाने का प्रयास अरविन्द केजरीवाल भी करते रहे हैं। जब ममता बनर्जी ने बंगाल में कांग्रेस से सीट शेयरिंग से इन्कार किया, तो केजरीवाल ने भी पंजाब में कांग्रेस से सीट शेयरिंग से इन्कार कर दिया था। लेकिन दिल्ली में करारी हार और जमानत न मिलने से केजरीवाल की सारी हेकड़ी निकल गई। जबकि दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को हरा कर कांग्रेस और राहुल गांधी को बंगाल में उनकी हैसियत दिखा दी। इसलिए वह राहुल गांधी से अलग लाइन अपना रही हैं। जबकि दूसरी तरफ केजरीवाल बहुत कमजोर पड़ चुके हैं, कांग्रेस ने उनसे किनारा कर लिया है। दिल्ली और हरियाणा प्रदेश कांग्रेस ने घोषणा कर दी है कि वे विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करके नहीं लड़ेंगे। लोकसभा चुनावों में भी राहुल गांधी ने अरविन्द केजरीवाल के साथ मंच साझा नहीं किया था। लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद अरविन्द केजरीवाल इंडी एलायंस से सहायता मांग रहे हैं, लेकिन कांग्रेस इस सहायता में बड़ी बाधक है। संसद सत्र शुरू होने से पहले हुई इंडी एलायंस की बैठक में संजय सिंह ने केजरीवाल के लिए इंडी एलायंस से सहायता माँगी। केजरीवाल से एकजुटता दिखाने के लिए आम आदमी पार्टी ने 30 जुलाई को एक रैली का आयोजन किया है, जिसमें ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव तो हिस्सा ले रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी हिस्सा नहीं ले रहे।