कहां गए गुरुकुल?
कहां गए गुरुकुल?
1858 में लॉर्ड मैकॉले ने इंडियन एजूकेशन एक्ट बनाया। एक्ट ड्राफ्ट करने से पहले उसने भारत की शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण करवाया। लूथर, लिटनर और थॉमस मुनरो आदि अंग्रेज अधिकारियों ने भारत के अलग अलग क्षेत्रों का अलग अलग समय में सर्वे किया। लिटनर, जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया, उसने लिखा कि यहाँ 97% साक्षरता है। और मुनरो, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100% साक्षरता है। उन्हें यहॉं की शिक्षा व्यवस्था देखकर भी बड़ा आश्चर्य हुआ।
इन सर्वेक्षणों और अध्ययन से मैकॉले ने निष्कर्ष निकाला कि यदि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी। तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन मस्तिष्क से अंग्रेज पैदा होंगे और जब वे इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे।
मैकॉले का कहना था कि, “जैसे किसी खेत को कोई फसल लगाने से पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है, वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।” इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया। जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता, जो समाज की तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी। फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया गया। गुरुकुलों में पढ़ाने वाले गुरुओं को मारा पीटा गया और जेल में डाला गया। गुरुकुलों में आग लगा दी गई। इस प्रकार एक षड्यंत्र के अंतर्गत गुरुकुलों को समाप्त कर दिया गया।
1850 में भारत में 7 लाख 50 हजार गॉंव थे, तो 7 लाख 32 हजार गुरुकुल। अर्थात् हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल। ये गुरुकुल ज्ञान के अद्वितीय केंद्र हुआ करते थे। यहॉं अग्नि विद्या (Metallurgy), वायु विद्या (Flight), जल विद्या (Navigation), अंतरिक्ष विद्या (Space Science), पृथ्वी विद्या (Environment), सूर्य विद्या (Solar Study), चन्द्र व लोक विद्या (Lunar Study), मेघ विद्या (Weather Forecast), पदार्थ विद्युत विद्या (Battery), वाणिज्य (Commerce), कृषि (Agriculture), पशुपालन (Animal Husbandry), पक्षिपलन (Bird Keeping), पशु प्रशिक्षण (Animal Training), यान यन्त्रकार (Mechanics), रथकार (Vehicle Designing), रतन्कार (Gems), सुवर्णकार (Jewellery Designing), वस्त्रकार (Textile) और कुम्भकार (Pottery) जैसे अनेक विषय पढ़ाए जाते थे।
इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क थी। इनका संचालन समाज द्वारा आपसी सहयोग से किया जाता था। लेकिन इस पूरी व्यवस्था को बर्बाद करके इंग्लिश मीडियम कॉन्वेंट स्कूल हम पर लाद दिए गए। कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खुला। उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था। बाद में कलकत्ता यूनिवर्सिटी, बम्बई यूनिवर्सिटी और मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयीं। परतंत्रता के समय की ये तीनों यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं।
मैकॉले का अपने पिता को लिखा एक पत्र बहुत प्रसिद्ध हुआ। उसमें वो लिखता है, “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे, लेकिन मस्तिष्क से अंग्रेज होंगे। इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा। इनको अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में, तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ, इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखे पत्र की सच्चाई इस देश में अब स्पष्ट दिखाई दे रही है। आज हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है। लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। दुनिया में आज 204 देश हैं, जबकि अंग्रेजी केवल 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है। फिर यह अंतर्राष्ट्रीय भाषा कैसे हुई? देखा जाए तो शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध भाषा नहीं है। यहॉं तक कि अंग्रेजों की बाइबिल भी अंग्रेजी में नहीं थी। ईसा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईसा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि बांग्ला भाषा से काफी मिलती जुलती थी। लेकिन समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा भी अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। मैकॉले जानता था, जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है, वह धीरे धीरे पहले अपनी संस्कृति और फिर देश के स्वाभिमान से भी कट जाता है। वह भूल जाता है उसका “स्व” क्या है। दुर्भाग्य की बात है कि स्वाधीनता के बाद भी मैकॉले की नीतियों का ही पोषण होता रहा क्योंकि स्वाधीनता के बाद सत्ता जिनके हाथ में आई, वे भी मैकॉले की कक्षा के ही छात्र थे। मैकॉले अपनी रणनीति में सफल रहा।